Thursday, October 3, 2024
Homeपॉलिटिक्सजेडीयू का नारा, जानिए क्यूं करें विचार, कितना ठीक है नीतीश कुमार

जेडीयू का नारा, जानिए क्यूं करें विचार, कितना ठीक है नीतीश कुमार

बिहार में 2005 से अबतक लगभग पुरे समय जनता दल (यूनाइटेड) के नीतीश कुमार जी सत्ता में बने हुए हैं। कुछ समय के लिए इन्होंने अपने पार्टी के दलित नेता जीतनराम माँझी को मुख्यमंत्री बनाया। लेकिन सत्ता में ढ़ीली होती पकड़ को देखकर इन्होंने जीतनराम माँझी को सत्ता से हटाकर खुद सत्तासीन हुए। इनका साथ भारतीय जनता पार्टी, जो की राजग की सबसे बड़ी घटक दल हैं, दे रही है। बदले परिस्थितियों में कुछ समय के लिए नीतीश ने अपने धुर विरोधी लालु प्रसाद यादव के पार्टी राजद के साथ गठबंधन कर सरकार चलाई, लेकिन ये सरकार कुछ समय ही चल पाई, करीब डेढ़-पौने दो वर्ष।

नीतीश कुमार ने राजद के ऊपर सहयोग न करने एवं भ्रष्टाचार का आरोप लगा गठबंधन तोड़ दी एवं पुनः राजग में शामिल हो गए। यह अलग बात हैं कि बाद में भाजपा के सुशील कुमार मोदी पर भी सृजन घोटाले का आरोप लगा। स्पष्टतः पिछले 14 वर्षों से नीतीश कुमार या उनकी पार्टी किसी न किसी रूप में सत्ता में बनी हुई हैं। भारतीय जनता पार्टी करीब 12 वर्षों से सत्तासीन है, या ये कहे कि नीतीश कुमार के सहयोगी रहे है।

दरोगा ने खरीदी शराब, कैदी ने सूचना देकर करवा दिया गिरफ्तार

नीतीश ने 2005 में लालुजी के लंबे शासन को जंगलराज बताकर सत्ता पाई। उन्होंने आमजन से बहुत सारे वादे किए एवं उसकी कार्यान्वयन का दिलाशा आमजन को दिया। यह बात जोरशोर से प्रचारित की गई कि जंगलराज़ युग समाप्त हुआ, सुशासन का युग आरम्भ हुआ। तो आइए, हम कुछ मूल क्षेत्रों की स्तिथि से नीतीश कुमार नीत राजग के कार्यकाल का आकलन करने की कोशिश करते हैं।

बिगड़ती कानून-व्यवस्था एवं भ्रष्टाचार

छिटपुट घटनाओं को छोड़ दे तो, 2005 में नीतीश कुमार के सत्तासीन होने के बाद अपराध पर कुछ समय के लिए विराम लग सा गया था। लेकिन, नीतीश कुमार के सम्पूर्ण शासनकाल को जब हम आंकने की कोशिश करते है तो पाते है कि बिहार के कानून व्यवस्था में जरुरी और व्यापक सुधार नहीं हो पाया है। जो नीतीश सरकार राजद के शासनकाल को जंगलराज़ बताते थे, आज हकीकत यह हैं कि अपराधी बेलगाम हो चुके हैं। अनेक मामलो में तो अपराधी का संबंध सीधे तौर पर नीतीश कुमार या सरकार में शामिल लोगों से पाया गया है। अपराधी की तो छोड़िए आजकल तो पुलिस-प्रशासन भी अपराध में लगे हुए हैं। सरकार-शासन मीडिया के बल पर इस महाजंगलराज को सुशासन बताने में लगे हुए हैं।

उदाहरण के तौर पर कुछ दिनों पहले की एक घटना को देखे, जो कि सिवान के महिला कांस्टेबल के साथ घटित हैं। जिसे पुलिसकर्मियों ने खुद अंजाम दिया हैं। दिनदहाड़े महिला कांस्टेबल का सहकर्मी/ वरिष्ठ द्वारा रेप कर लाश को 3 दिनों तक सड़ने छोड़ देते हैं। पिता के बार-बार आग्रह के बावजूद सच्चाई से अवगत नही कराया जाता हैं। उसे एक वृद्ध महिला की लाश थमा दी जाती हैं। जबकि पिता बार-बार कह रहे थे कि ये उनकी बेटी की लाश नही है। आपकी राय में, क्या ये मामले को दबाने की कोशिश नहीं हैं? आपको अनगिनत ऐसे मामले पूरे बिहार में मिल जाएगी, जिसमे पुलिस सिर्फ खानापूर्ति कर मामले को दबाने की कोशिश की जाती रही है।

अपराध की घटनाएं

एक अन्य घटना में, पटना जिला के बाढ़ थाना अंतर्गत 6 जून की रात दर्जी का काम करने वाले मो। मुख्तार की बेटी 12 वर्षीय दामिनी खातून और 10 वर्षीय दिलखुश खातून की घर में घुसकर अपराधियों ने हत्या कर दी। डबल हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने में अभी तक पुलिस असफल है। इससे पूर्व भी मुजफरपुर शेल्टर होम प्रशासन की देखरेख में 11 बच्चियों की बलात्कार कर उन्हें गायब कर दिया गया था। मुजफ्फरपुर जेल की एक महिला कैदी अधिकारियों पर यौनाचार का आरोप भी लगा चुकी हैं।

बौद्ध धर्म के पवित्र स्थान बोधगया में 15 बाल लामाओं के साथ यौन शोषण की घटना बिहार की महिला सुरक्षा की पोल खोलती नज़र आती है। बिहार में नीतीश कुमार के शासनकाल में राज्य के सबसे बड़ी घोटाला, सृजन का खुलासा हुआ। विपक्ष के हंगामे के बाद, इस मामले को सीबीआई को सौंप दिया गया। बावजूद सीबीआई अभीतक ये मालूम करने में नाकाम रही है कि बिहार की सबसे बड़ी घोटाले में दोषी कौन हैं। राज्य की जनता अभी तक एक अदद गिरफ्तारी की बाट जोह रही हैं। वही बिहार में अवैध बंदूकों के कारोबार में भी पुलिस संलग्न पाई गईं। बिहार पुलिस के हथियार बांग्लादेश तक में अवैध रूप से तस्करी कर ले जाई गई।

बिहार के जेल में जन्मदिन का जश्न, मटन और चावल की दावत

बिहार पुलिस की तरफ से जारी किये गए आकंड़े ही राज्य सरकार पर कई पर सवाल उठा रहे हैं। बिहार पुलिस के मुताबिक 2018 में बिहार में मर्डर के 1521, अपहरण के 5168, रेप के 782, झपड़ के 5630, डकैती के 151, फिरौती के लिए अपहरण के 27 केस दर्ज हो चुके हैं। बढ़ते अपराध के दौर में भी, बिहार पुलिस जाँच में शिथिल नज़र आ रही हैं। साथ ही पुलिस पुरानी अनुसंधान प्रक्रिया को अपनाए हुए नज़र आती हैं। नतीजतन या तो अनुसंधान प्रक्रिया काफी लंबी खिंचती नज़र आती हैं, या अपराधी पुलिस की गिरफ्त से दूर ही रहते हैं।

नकारा स्वास्थ्य व्यवस्था

बिहार में हाल ही में सैकड़ो बच्चे #AES (एक्यूट एन्सेफलीटीस सिंड्रोम), जिसे इस क्षेत्र में चमकी बुखार के नाम से जाना जाता हैं, से ग्रस्त हो काल के गाल समा गए। ये बीमारी पूरे क्षेत्र में सालों से पैर पसारती रही हैं। इससे पिछले कई वर्षोँ से मौतें हो रही हैं। लेकिन सरकार की निरंकुशता के कारण, इस बीमारी से लड़ने के लिए कोई व्यवस्था नहीं किया गया। साल दर साल सरकार सिर्फ नए तकनीक एवं आधुनिक अस्पताल मुहैया कराने की घोषणा करती आई हैं। लेकिन धरातल पर इन घोषणाओ का क्रियान्वयन शून्य है। विपक्ष सरकार पर आरोप लगाती नज़र आई कि निजी अस्पतालों को फायदा पहुँचाने के लिए सरकारी अस्पतालों को पंगु बनाया जा रहा है। ये भी आरोप लगाया गया कि सत्तासीन लोग ही निजी अस्पतालों संचालन कर रही है।

बिहार में अपराध या अपराध में बिहार, खास पेशकश

नीतीश सरकार चमकी बुखार का कारण लीची को बताते रही। दूसरी ओर विशेषज्ञों के द्वारा लीची का इस बीमारी की वजह होने की बात एक सिरे से नकार दी गई। अभी हाल ही में नीति आयोग द्वारा प्रकाशित दस्तावेजों में बिहार के स्वास्थ्य व्यवस्था को निकृष्टम पाया गया। नीतीश सरकार के तानाशाही का एक और उदाहरण उस समय सामने आया जब 18 जून को वैशाली जिले के हरबंशपुर गांव के कुछ लोगों द्वारा राष्ट्रीय राजमार्ग बंद करने के आरोप में पुलिस ने 19 नामजद लोगों और 20 गैर नामजद लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया। ये लोग चमकी बुखार में अपने बच्चे खोने का विरोध कर रहे थे। क्या आमजन सरकार के नाकामियों के खिलाफ आवाज़ बुलंद नही कर सकती? अनेक महत्वपूर्ण मामले तो मुख्यधारा के मीडिया में अपनी जगह ही नही बना पाए रहे हैं। जिससे सरकार का दूसरा पक्ष आमजन तक नहीं पहुँच पा रही है।

पलायन करने को विवश

एक बात स्पष्ट हो जाती हैं कि 14 वर्षों तक सत्तासीन रहने के बावजूद नीतीश सरकार, राज्य के मूलभूत व्यवस्था को दुरुस्त नही कर पाई हैं। रोजी-रोटी के तलाश में राज्य का एक बड़ा हिस्सा पलायन करने को विवश हैं। बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य की खोज में भी बिहारवासी दर-दर की ठोकरे खाने को विवश हैं। इनके कार्यकाल में नवीन सिंचाई योजनाओं का भी पुर्ण अभाव रहा। शिक्षा, बिजली, उद्योग जैसे अनेक क्षेत्र आज भी 80 के दशक से आगे नही बढ़ पा रही यही। अनेको समस्याओं के जस के तस रहने के बावजूद, नीतीश कुमार खुद को सुशासन बाबू के रूप में प्रचारित करने से पीछे नही हटते।

आप सबसे एक सवाल~ क्या सुशासन की यही परिभाषा हैं?

(हमारी यह श्रृंखला आगे भी जारी रहेगी। हम एक क्षेत्र के लिए सिर्फ एक या दो लेख के माध्यम से आपके सामने प्रस्तुत होंगे। यह एक सप्रेम शुरुआत भर है। आप सबसे अनुरोध हैं कि अपनी कीमती राय जरूर दें।)

बिहार की शिक्षा व्यवस्था पर यह लेख आप जरूर पढ़ें- बिहार की गिरती शिक्षा व्यवस्था – कारण और निदान!

Badhta Bihar News
Badhta Bihar News
बिहार की सभी ताज़ा ख़बरों के लिए पढ़िए बढ़ता बिहार, बिहार के जिलों से जुड़ी तमाम अपडेट्स के साथ हम आपके पास लाते है सबसे पहले, सबसे सटीक खबर, पढ़िए बिहार से जुडी तमाम खबरें अपने भरोसेमंद डिजिटल प्लेटफार्म बढ़ता बिहार पर।
RELATED ARTICLES

1 COMMENT

अन्य खबरें