Saturday, July 27, 2024
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विवेचना : सुप्रीम कोर्ट की समान नागरिक संहिता पर टिप्पणी

माननीय सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को ‘समान नागरिक संहिता’ पर टिप्पणी की है। जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने गोवा के एक निजी संपत्ति विवाद (पाउलो कौटिन्हो बनाम मारिया लिजा वैलींटना परेरा) की सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘यह आश्चर्यजनक है कि संविधान निर्माताओं ने राज्य के नीति निर्देशक तत्वों पर विचार करते हुए अनुच्छेद-44 के जरिए यह उम्मीद जताई थी कि राज्य, सभी नागरिकों के लिए पूरे भारत वर्ष में समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करेगी।

पीठ ने इस सुनवाई के दौरान गोवा का उदाहरण भी पेश किया। गोवा भारत का एकमात्र राज्य है जहाँ यह कानून लागू है। हालांकि कुछ अपवाद यहाँ भी है। साथ ही पीठ ने इस कानून के द्वारा कुरीतियों पर हुए प्रहार पर भी ध्यान दिलाया है। जिन मुस्लिम पुरुषों की शादियां गोवा में पंजीकृत हैं, वे बहुविवाह नहीं कर सकते। इसके अलावा इनके लिए मौखिक तलाक का भी कोई प्रावधान नहीं है। पीठ ने यह भी कहा क़ि हिन्दू कोड बिल 1956 में लागु किया जा चूका है। लेकिन, इस संबंध में आजतक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।

सुप्रीम कोर्ट ने कब कब की टिपण्णी

इससे पूर्व भी सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को यह कानून लागू करने के लिए प्रोत्साहित किया था। ये मामले है – मो० अहमद खान बनाम शाह बानो (1985), सरला मुद्गल व अन्य बनाम भारत सरकार मामला (1995) और जॉन वेल्लामैटम बनाम भारत संघ (2003)

क्या है समान नागरिक संहिता

समान नागरिकता संहिता का वर्णन संविधान के भाग 4 के अनुच्छेद 44 में है। भाग 4 को नीति-निर्देशक तत्व कहा जाता है। इस भाग में वर्णित निर्देशों को लागु करने के लिए सरकार बाध्य नहीं है। साथ ही इसे न्यायलय में चुनौती नहीं दी जा सकती है। परन्तु, एक बार लागु हो जाने के बाद इसे न्यायालय में चुनौती दिया जा सकता है। तो फिर एक सवाल उठता है कि इसका प्रावधान आखिर क्यों किया गया है?

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दरअसल, आज़ादी के बाद देश में अनेक विकट समस्याओं का सामना कर रही थी। साथ ही सरकार के खजाने में धन की कमी थी। हाल ही में देश विभाजन के दर्दभरी दास्तान से गुजरा था। इन हालातों में अनेक कानूनों और योजनाओं को लागू करना मुश्किल था। लेकिन, इन मसलों के बेहतरीन होने के कारण इन्हे ‘नीति निर्देशक तत्वों’ के अंतर्गत सम्मिलित कर लिया गया। साथ ही, निर्देशित किया गया कि भविष्य की सरकार संसाधनों कि उपलब्धता के अनुसार इसे लागु कर सकती है।

कुछ लोग विरोध में क्यों

फ़िलहाल देश में हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्मावलम्बियों के लिए हिन्दू कोड बिल लागू है। वही, इस्लाम धर्म को मानने वाले अपना फैसला शरीयत के हिसाब से करते है। इसकी देखरेख मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अधीन है। दूसरी ओर, ईसाई धर्म को मानने वालों के लिए भी एक अलग कानून है। इन निजी कानूनों के माध्यम से उत्तराधिकार, विवाह, तलाक़ जैसे पारम्परिक मुद्दों का समाधान किया जाता है। इसके लागू होने से रूढ़िवादी परम्पराओं को प्रशय मिलती है। हालांकि सरकार ने कानून बनाकर कुछ मामलो यथा, तीन तलाक़, बाल विवाह, दहेज़ प्रथा पर रोक लगा दी है। ये सुधार एक तरह से सरकार के ‘समान नागरिकता संहिता’ की ओर बढ़ता कदम ही माना जाता है। “समान नागरिक संहिता” के लागू होने से अनेक आडंबरों पर पूर्ण विराम लगने की संभावना है।

इस तरह के सुधार समाज में एक स्वच्छ वातावरण का निर्माण करते है। साथ ही, इससे आडंबर और कुरीतियों को रोकने में सहायता मिलती है। लेकिन तथाकथित धार्मिक ठेकेदार अपने निजी फायदे के लिए इसमें अड़ंगा डालते है। वोटबैंक की राजनीती का ध्यान रखकर राजनितिक दल भी इसे लागू करने से बचते आये है।

अंबेडकर, नेहरू और वर्तमान के कुछ पन्ने

बहुजन वर्ग का एक हिस्सा भी इस कानून को संदेह की दृष्टि से देखती आई है। उनका मानना है कि इसके लागू हो जाने के बाद उनके संविधान प्रदत अधिकारों पर प्रतिकूल असर होंगे। उन्हें प्राप्त विशेषाधिकारों को समाप्त करने कि मांग बलवती हो सकती है।

हालांकि संविधान निर्माता और सर्वश्रेष्ठ बहुजन विचारक डॉ अम्बेडकर इस कानून के पक्षधर थे। उन्होंने पाश्चात्य जगत के भांति ‘समान नागरिक संहिता’ की जोरदार वकालत की थी। लेकिन, कुछ रूढ़िवादी सांसदों के प्रबल विरोध के कारण यह कानून संसद से पारित न हो सका था। तत्पश्चात इसे नीति-निर्देशक तत्व में सम्मिलित कर भविष्य के लिए टाल दिया गया था। डॉ अम्बेडकर और नेहरू में हिन्दू कोड बिल, अनुच्छेद 370, समान नागरिक संहिता जैसे अनेक मुद्दों पर मतभेद थे। साथ ही रूढ़िवादी इन मुद्दों के खिलाफ लगातार विरोध कर रहे थे। इन्ही वजहों से, डॉ अम्बेडकर ने 27 सितम्बर 1951 को अपने कानून मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। बाद में प्रधानमंत्री नेहरू ने हिंदू कोड बिल को कई हिस्सों में तोड़कर लागू किया था।

आज विश्व के अनेक देश समान नागरिक संहिता लागू कर चुके है। उनमे से कुछ देश है, पाकिस्तान, बांग्लादेश, मलेशिया, तुर्की, इंडोनेशिया, सूडान और इजिप्ट इत्यादि।

डॉ आंबेडकर संविधान सभा में समान नागरिक संहिता पर

मुझे व्यक्तिगत रूप से यह समझ में नहीं आता है कि धर्म को यह विशाल, प्रशस्त क्षेत्राधिकार क्यों दिया जाना चाहिए, ताकि पूरे जीवन को प्रभावित किया जा सके और विधायिका को उस क्षेत्र में अतिक्रमण करने से रोका जा सके। आखिर, हम इस स्वतंत्रता के लिए क्या कर रहे हैं? हम अपनी सामाजिक व्यवस्था को सुधारने के लिए यह स्वतंत्रता पा रहे हैं, जो इतनी विषमताओं, भेदभावों और अन्य चीजों से भरी हुई है, जो हमारे मौलिक अधिकारों के साथ संघर्ष करती है।
-डॉ भीम राव अम्बेडकर (संविधान सभा में समान नागरिक संहिता पर बोलते हुए)

(Ambedkar And The Uniform Civil Code, Outlook. 14 August 2003)

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