ग्राउंड रिपोर्ट: 21वीं सदी में भी बिहार के लोग क्यों हैं बाढ़-सुखाड़ की विभीषिका से त्रस्त

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उत्तर में हिमालय की बारहमासी एवं मध्य में गंगा नदी तंत्र से आच्छादित बिहार के लिए वर्ष 2019 का मानसून अभिशाप साबित होती जा रही है। इस वर्ष उत्तरी बिहार के एक दर्जन के करीब जिले ( अररिया, सुपौल, पूर्णिया, मधेपुरा, कटिहार, दरभंगा, नरकटियागंज, मोतिहारी, दरभंगा, मधुबनी, पूर्वी और पश्चिमी चम्पारण, सीतामढ़ी एवं भागलपुर जिले की नौगछिया अनुमंडल) बाढ़ में डूबे हुए है तो वही दक्षिणी बिहार के 2 दर्जन से अधिक जिले सुखाड़ झेलने को अभिशप्त है। बाढ़ग्रस्त जिलों में विशाल जलराशि के कारण करीब 40 लाख लोगों के प्रभावित होने की बात कही जा रही है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इस आपदा के फलस्वरूप करीब 200 लोगों ने अपनी जान गवाई है।

वहीँ घरों और खेतों में पानी भर जाने से लोग ऊँचे स्थानों की ओर पलायन को विवश है। साथ ही किसान मवेशियों के लिए चारे की किल्लत का सामना कर रहे है। बाढ़ की समस्या केवल उत्तर बिहार तक सीमित नहीं है। केंद्रीय बिहार के कुछ हिस्से भी सोन, पुनपुन तथा गंगा नदी के कारण बाढ़ से प्रभावित है। केंद्रीय बिहार में उत्तर बिहार से बाढ़ की समस्या कुछ कम है, फिर भी इसे एक सिरे से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

बाँध का काम अधूरा

नौगछिया अनुमंडल के कुछ किसानों का कहना था कि साल दर साल आती बाढ़ को रिंग बाँध बनाकर रोका जा सकता है। प्रशासनिक उदासीनता के कारण जिले में बन रही बाँध का काम अधूरा पड़ा हुआ है। यदि बाँध का काम समय रहते पूरी हो गई होती तो हम साल में 2 से 3 फसल उगा सकते है। साथ ही किसानो का कहना था कि बाढ़ के कारण ग्रामीण इलाकों का संपर्क जिला मुख्यालय से टूट सा जाता है एवं पूरी जीवन-तंत्र ठप्प हो जाती है। 

राज्य के दक्षिणी हिस्सों सहित करीब दो दर्जन से अधिक जिलों में फैली सुखाड़ ने किसानो के माथे पर चिन्ता की लकीर खींच दी है। इन जिलों में औसत से काफी कम बारिश होने के कारण मिट्टी में नमी की काफी कमी देखी जा रही है। इस कारण धान सहित सभी खरीफ फसलों के उपज में कमी की आशंका जताई जा रही है। इस सुखाड़ से मत्स्य उत्पादक भी चिंतित है। उनका मानना है कि तालाबों एवं जलाशयों में जल की कमी का स्पष्ट प्रभाव मत्स्य उत्पादन पर भी होगा। विशेषज्ञों के अनुसार मानसून में कमी से जमीन की नमी में गिरावट होगी, जिसका रबी के फसल एवं जमीन के उपजाऊपन पर दूरगामी असर होगा। 

बिहार में बाढ़-सुखाड़ का कारण

उत्तर में ऊंचाई पर बसे हिमालयी राज्य नेपाल से विशाल जलराशि लुढ़क कर बिहार में प्रवेश कर जाती है। यह जलराशि पुरे उत्तरी बिहार में फ़ैल जाती है जो कि अंततः बाढ़ में परिणत हो जानमाल का व्यापक नुकसान करती है। वास्तव में बाढ़ बिहार के लिए एक सालाना रूटीन बन गई है। बिहार सरकार इस आपदा का आरोप नेपाल पर लगाकर खुद बचती आई है। मामले के तह तक जाने पर हम पाते है कि बिहार की बाढ़ की आपदा कोई उतनी भी जटिल नहीं है जिसका समाधान न किया जा सके। विश्व के अनेक देशों ने बेहतर तटबंध बनाकर बाढ़ की समस्या का स्थायी समाधान ढूंढ निकाला है। 

इसके साथ राज्य 2 दर्जन से अधिक जिले सुखाड़ से प्रभावित है। इस बार अलनीनो की बारिश के लिए सकारात्मक होने के बावजूद मॉनसूनी बादल राज्य में नहीं दिखी। यदि हम पिछले 20 वर्षों के बारिश का आकलन करते है तो पाते है कि कुछ वर्षों को छोड़कर साल दर साल मानसून में कमी आती जा रही है। इसका एक कारण अंधाधुन्द वनो की कटाई एवं अंधाधुंध निर्माण भी बताया जा रहा है। साथ ही राज्य में पिछले 2 दशक में ईंधन के खपत में कई गुना वृद्धि हो चुकी है।

राज्य की बढ़ती आबादी के कारण भी वनों को काटकर कृषि क्षेत्र बनाने का चलन बढ़ा है। वनो/पेड़ों की कमी से मानसून आकर्षित नहीं हो पा रही है। साथ ही कई जिलों में तालाबों को पाटकर कृषि/आवास योग्य भूमि तैयार की गई है। इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण बेगूसराय का कांवर झील है। इन अतिक्रमणो के कारण भूजल में कमी होती जा रही है एवं सुरक्षित सिंचाई संसाधन भी सीमित होते चले जा रहे हैं। विगत वर्षों में बढ़ती आबादी के अनुरूप वन क्षेत्रों का विकास न होना भी इस सुखाड़ का एक बड़ा कारण है। 

कोशी बैराज एवं पर्यावरणीय परिवर्तन, नदियों के तल की सफाई 

औद्योगिकीकरण के पश्चात् जलवायु तेजी से परिवर्तित होती जा रही है। बदलती पर्यावरण के कारण बादल किसी जगह अतिकेन्द्रित हो जाती है तो कहीं-कहीं रुक नहीं पाती। इस कारण से बाढ़-सुखाड़ जैसी स्तिथि उत्पन्न हो रही है। साथ ही कोशी बैराज की सीमित जलधारण क्षमता होने के कारण अतिवृष्टि के समय अतिरिक्त जलराशि को प्रवाहित करना होता है। जो अंततः बिहार में आकर बाढ़ का रूप धारण कर लेती है। साथ ही बिहार में नदियों के तल में जमे गाद की सफाई काफी समय से नहीं की जा रही है। ये गाद बारिश के समय नदियों में उफान लाने का काम करती है। 

1954 में बिहार में तटबंधों की कुल लम्बाई 160 किलोमीटर से बढ़कर 1994 में 3465 किलोमीटर हो गया। परन्तु आश्चर्य की बात है कि इसी अवधि के दौरान बाढ़ का प्रकोप भी 25 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 90 लाख हेक्टेयर हो गया। दरअसल हमने तटबंध बनाने में प्रगति तो की, लेकिन नदी के तलछट में जमी गाद की सफाई की समुचित व्यवस्था नहीं की। नीदरलैंड ऐसी ही एक बेहतरीन उदाहरण है। नीदरलैंड ने अपने यहां तटबंधों के निर्माण के साथ पानी के बहाव के समुचित व्यवस्था की, जिस कारण यह देश पुरे विश्व में अपने बेहतरीन बाढ़ प्रबंधन के लिये जाना जाता है। साथ ही प्रकृति अनुकूल प्रबंधन से मानवीय संरचना के निर्माण की लागत भी कई गुना कम हो गई। दरअसल हमारे यहां के शीर्ष नेतृत्व में ही कही न कही बाढ़ से लड़ने की इच्छाशक्ति में कमी है। 

गिरता भूजल जलस्तर एवं जल का अतिरिक्त दोहन, कमजोर सिंचाई तंत्र 

राज्य की अधिकतर कृषि मानसून पर निर्भर करती है। राज्य में नदी तंत्र की प्रचुरता होने के बावजूद उन्नत सिंचाई तंत्र न होने के कारण मानसून की कमी होते ही सुखाड़ आ जाती है। राज्य के कुल भूमि के आधे से भी कम हिस्से में सिंचाई की व्यवस्था है। बिहार के मात्र 8 जिलों में बड़ी सिंचाई परियोजनाए है। ये जिले है – रोहतास, कैमूर, औरंगाबाद, बक्सर, भोजपुर, बांका तथा लखीसराय। पटना जिले के कुछ हिस्सों में भी नहर तंत्र की व्यवस्था है। साथ ही राज्य के 8 जिलों के अनेक हिस्सों में नहरतंत्र रखरखाव के अभाव में रसातल में धंसती नज़र आती है।

कुछ जगहों पर किसानों द्वारा आपसी तालमेल से इन नहरों की मरम्मत की जा रही है। इन नहरों के तटबंध रखरखाव के अभाव में अपक्षय का शिकार होती जा रही है। साथ ही, लॉकिंग सिस्टम के ख़राब होने के कारण जल का सुप्रबंधन नहीं हो पाता, जिससे कुछ क्षेत्र अतिसिंचाई तो कुछ सुखाड़ जैसे हालातों का सामना करते है। राज्य के अधिकतर हिस्सों में बोरिंग से सिंचाई के कारण भूजल स्तर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।

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साथ ही आधुनिकता की दौर में समरसेबल पंप का चलन राज्य में तेजी से बढ़ता जा रहा है। एक तरफ जहां अंधाधुंध दोहन हो रही है तो वही दूसरी और उसकी भरपाई के लिए कोई सकारात्मक उपाय नहीं की गई है। साथ ही जल के अतिदोहन से किसानों को बोरिंग लगवाने के लिए अधिक संसाधन खर्च करने पड़ रहे है। 

बाढ़-सुखाड़ का बिहार की जनता पर प्रभाव

बिहार में हर दूसरा व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे या उसके आसपास है। दो तिहाई से अधिक जनसँख्या को स्वच्छ पौष्टिक आहार एवं स्वच्छ पेयजल उपलब्ध नहीं है। जो लोग गरीबी रेखा से ऊपर भी है उनपर हमेशा खतरा मंडराता रहता है कि यदि मानसून ख़राब रही या प्राकृतिक विपदा आ गई तो पुनः गरीबी के दुष्चक्र में फंस सकते है। अचानक आई बाढ़ से खड़ी फसल तबाह हो जाती है। साथ ही तेज बहाव में कच्चे-पक्के मकान सहित आधारभूत संरचना भी बह जाते है। इन आपदाओं से होनेवाली अप्रत्यक्ष नुक्सान का आकलन नहीं हो पाता है, जिस कारण सम्पूर्ण स्तिथि की भयावहता वर्णित करना असंभव है।

बिहार सरकार ने आधिकारिक रूप से इन 23 जिलों को सूखाग्रस्त घोषित कर दिया है। ये जिले है – पटना, मुजफ्फरपुर, नालंदा, भोजपुर, बक्सर, कैमूर, गया, जहानाबाद, नवादा, औरंगाबाद, सारण, सिवान, गोपालगंज, बांका, भागलपुर, जमुई, शेखपुरा, वैशाली, दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर, मुंगेर, सहरसा। इसके अतिरिक्त बेगुसराई जिले की कुछ हिस्सों की भी सुखाडग्रस्त होने की बात कही जा रही है।

बाढ़-सुखाड़ से निपटने के लिए सरकार की पहल 

सरकार ने फौरी राहत के तौर पर सूखाग्रस्त जिलों में डीजल अनुदान की घोषणा की है। सभी प्रभावित किसानो से 31 अक्टूबर तक आवेदन देने को कहा गया है। वही बाढ़ से निपटने के लिए सरकार ने एस.डी.आर.एफ. की तैनाती की बात कही है। फिलहाल सरकार ने इन समस्याओं के स्थायी समाधान के लिए कोई ठोस योजना पेश नहीं की है। बिहार की जनता को आज़ादी के सत्तर वर्षों बाद भी बाढ़-सुखाड़ जैसी विपदा की स्थायी समाधान की तलाश है।

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