सहवाग और धोनी भारत के उन खिलाड़ियों में से हैं जिन्होंने भारतीय क्रिकेट की रूपरेखा बदल दी। विजय मर्चेंट और सुनील गावस्कर ने भारत को फास्ट बॉलिंग खेलने की कला सिखाई, कपिल देव ने फास्ट बोलिंग करके दिखाया, सचिन ने भारतीय क्रिकेट और बल्लेबाजी को एक अलग ही मुकाम पर पहुंचाया। गांगुली ने भारत को लड़ना सिखाया। सहवाग और धोनी ने भारतीय बल्लेबाजी की सोच को पूरी तरह से बदल दिया। पहले लोग भारत के बल्लेबाजों को रिकार्ड्स के लिए खलने वाले खिलाडी मानते थे, पर इन दोनों महारथियों ने इस धारणा को पूरी तरह से भारतीय क्रिकेट से दूर कर दिया। आज के ज्यादातर युवा खिलाड़ियों में हम इस बदली हुई सोच को देख सकते हैं।
मीडिया में पहली बार सहवाग और धोनी के बीच विवाद की खबरें 2007 T20 वर्ल्ड कप के दौरान आई थी, और उसके बाद कप्तान ने पूरी टीम को मीडिया के सामने लाकर टीम बॉन्डिंग दिखाई। लेकिन फिर इसी वर्ल्ड कप के फाइनल मैच से एक दिन पहले सहवाग ने बीसीसीआई को अपनी चोट के बारे मे बताया और वो फाइनल नहीं खेल सके। जिसकी बाद फिर से धोनी और सेहवाग की अनबन की खबरे आने लगी। इसके बाद सहवाग जब भी टीम से ड्रॉप होते तो मीडिया में धोनी और सहवाग के बारे में अलूल जलुल खबरें चलती रहती थी।
सीबी सीरीज 2012 के दौरान जब धोनी ने ऊपरी क्रम पर रोटेशन पॉलिसी अपनाई, तो मीडिया को एक बार फिर से काम मिल गया। धोनी ने तय किया है कि सचिन, सहवाग और गंभीर को एक साथ नहीं खिलाएंगे और रोहित शर्मा को मध्यम क्रम में मौका देंगे। किसी नए खिलाड़ी को मौका देना कोई बुरी बात नहीं है लेकिन उस वक्त बहुत सारे खेल प्रेमियों को रोटेशन पॉलिसी पसंद नहीं आई थी। क्योंकि सहवाग ने कुछ ही महीने पहले 219 रन बनाए थे और वह अच्छी फॉर्म में थे पर इसके बावजूद कप्तान ने यह फैसला किया कि वह उन्हें और बाकी दो सीनियर खिलाडियों को इस के श्रंखला में एक साथ एक ही मैच में नहीं खिलाएंगे। लेकिन कुछ मैच हारने के बाद धोनी ने अपना प्लान बदल दिया और एक करो या मरो के एक मैच में इन तीनों को एक साथ खिलाया। उस वक़्त बहुत सारे लोगों के मन में फिर से एक थॉट आया कि अगर आपने कुछ फैसला किया है तो चाहे परिणाम जो भी हो आपको अपनी सोच नहीं बदलिनी चहिए।
इस श्रृंखला के दौरान मीडिया को सबसे बड़ी कहानी तब मिली जब एक मैच के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में धोनी ने यह कहा कि सीनियर खिलाडी स्लो फील्डर हैं। जिसके बाद भारत में खूब विवाद हुआ और कुछ ही मैचों के बाद सहवाग ने एक उड़ता हुआ कैच पकड़ लिया और जब वह मैच के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनसे किसी पत्रकार ने धोनी के उस स्लो फिल्डर वाले बयान पर सवाल पूछा तो उन्होंने कहा कि आपने मेरा कैच देखा। और इसमें जोड़ते हुए उन्होंने आगे कहा कि मैं और सचिन पिछले 10 सालों से इसी तरह बिल्डिंग करते आ रहे हैं और हममें कुछ नहीं बदला है। सहवाग के इस बयान ने मीडिया के लिए आग में घी का काम किया और कुछ महीने इसपर खूब कहानियां बनाई गई।
इसके बाद दोनी साथ मे 2012 टी20 वर्ल्ड कप खेलें, जिसमें भारत ज्यादा दूर तक नहीं जा सका। 2013 में ऑस्ट्रेलिया भारत मे टेस्ट श्रृंखला खेलने के लिए आया, जिसके पहले दो मैचों में सहवाग को टीम में जगह दी गई। लेकिन इन दोनों ही मैचों में वो नाकाम रहे। पहली बार चश्मा लगा कर बल्लेबाजी की पर तब तक उनके बल्ले और किस्मत ने उनका साथ छोड़ दिया था। इस सीरीज के दौरान जब प्रेस कॉन्फ्रेंस में धोनी से सहवाग के प्रदर्शन से जुड़ा सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा था कि वीरू पा को ओर मौके मिलने चाहिए। लेकिन शायद चयनकर्ताओं ने उनके इस बात को नहीं सुना और उन्हें बाकी बचे मैचों में टीम से निकल दिया गया। इसके बाद सहवाग कभी भारत के लिए नहीं खेले और फिर 2015 अक्टूबर में सन्यास ले लिया।
धोनी और सहवाग के बीच विवाद हो या न हो, लेकिन मीडिया ने अपनी रोटियां खूब सेकी। जब दो बड़े खिलाड़ी एक कप्तान एक उप कप्तान टीम मीटिंग में होते होंगे,तो दोनों के विचार जरूर अलग-अलग होते होंगे। ऐसा होना स्वाभाविक है। यह टीम के हित मे भी होता है। हमे लगता है की वैसा ही कुछ सहवाग और धोनी के साथ भी होता होगा। धोनी हमेशा से ही सहवाग की बल्लेबाजी के कायल रहे हैं, उन्होंने सहवाग के सन्यास के बाद ट्वीट किया था कि उन्होंने कभी विव रिचर्ड्स को बल्लेबाजी करते नहीं देखा लेकिन सहवाग को दुनिया के बेहतरीन गेंदबाजों की धजिया उड़ाते देखा है।
धोनी ने मीडिया के इस बनावटी विवाद का पर्दाफाश 2016 में सहवाग के स्कूल में जाकर किया। यह काफी था, यह बताने के लिए की उनके दोनो के बीच कभी कोई विवाद नहीं था। दोनों ही मजबूत विचार और भारतीय क्रिकेट का हित सोचने वाले वयक्ति हैं। दोनो ने भारतीय क्रिकेट की दिल से सेवा की है। इनमें से किसी एक से नफरत किए बिना हमें दोनों का जश्न मनाना चाहिए।