दिल्ली विधानसभा के चुनाव परिणाम आने के साथ ही विधानसभा चुनाव कि यह रेलगाड़ी बिहार के लिए प्रस्थान कर चुकी है। नवंबर में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के सत्ता के इस खेल को जितने के लिए सभी पार्टीयां अपना पूरा जोर लगा रही है। एक तरफ NDA के नेता नितीश कुमार है जो 7वी बार मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे है। जबकि वहीं राजद नेता तेजस्वी यादव भी बिहार के मुख्यमंत्री कि कुर्सी पर बैठने का सपना संजोय हुए है।
अन्य भी कई राजनितिक दल है जिनकी अपनी महत्वाकांक्षाएं है। लेकिन बिहार कि सियासत में मुख्य मुकाबला तेजस्वी यादव बनाम नितीश कुमार ही है। NDA ने जहाँ यह घोषणा कर दी है कि वह नितीश कुमार के चेहरे पर विधानसभा चुनाव में उतरेगी। वहीं विपक्षी महागठबंधन के दलों ने अभी तक तेस्जवी को महागठबंधन का नेता नहीं माना है। लेकिन यह भी स्पष्ट है कि विपक्ष के पास तेजस्वी के अलावा कोई दूसरा चेहरा भी नहीं है जो विधानसभा चुनाव में नितीश को टक्कर दे सके। यानि महागठबंधन के सारे दलों को आज नहीं तो कल तेजस्वी को नेता मानना ही पड़ेगा।
पहला बिंदु है हाल के चुनाव परिणाम
पिछले 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में राजद, जदयू और कांग्रेस ने महागठबंधन बना साथ चुनाव लड़ा था। जबकि भाजपा ,लोजपा ,रालोसपा और जीतन राम मांझी कि पार्टी हम NDA गठबंधन से साथ मिलकर चुनाव लड़े। बिहार कि जनता ने NDA को नकारते हुए महागठबंधन को 178 सीटों का भारी बहुमत दिया। हालाँकि 20 महीने महागठबंधन में सरकार चलाने के बाद, जिस NDA को जनता ने नकार दिया था उसी के साथ मिलकर नितीश कुमार ने बिहार में सरकार बनाई। जिसका पुरे बिहार में पुरजोर विरोध हुआ था।
आपको बता दे कि नितीश कुमार के भाजपा से मिलने के बाद से बिहार में विधानसभा के 7 सीटों पर उपचुनाव हुए है। इन 7 सीटों में से 5 सीट उपचुनाव से पहले जदयू की खाते में थी। लेकिन उपचुनाव के बाद मात्र 1 सीट ही उसके पास रह गयी, जबकि 4 सीट उसे गंवानी पड़ी है। ये आंकड़े कहीं-न -कहीं इस ओर संकेत कर रहे है कि बिहार जनता नितीश कुमार के कामों से और उनके फैसलों से खुश नहीं है।
दूसरा बिंदु है वोट शेयर
2015 के विधानसभा चुनाव में JDU और RJD दोनों ने 101 सीटों पर जबकि उन्ही के गठबंधन कि कांग्रेस ने 41 सीटों पर चुनाव लड़ा था। इनके महागठबंधन को कुल पड़े वोट का 41.9 प्रतिशत वोट मिलता जिसमे RJD को सबसे ज्यादा 18.4, JDU को 16.4 वही कांग्रेस को 6.7 प्रतिशत वोट मिला था। जबकि NDA गठबंधन को 34.1 प्रतिशत वोट मिला था जिसमे बीजेपी को पुरे राज्य में सबसे अधिक 24।4 प्रतिशत वोट मिले थे। इसके अलावे लोजपा को 4.8 ,उस समय NDA में रही रालोसपा को 2.6, जबकि जीतन राम मांझी कि पार्टी “हम” को 2.3 प्रतिशत वोट मिले थे।
लेकिन अगर अभी के वर्तमान गठबंधन के आधार पर इन वोट शेयर को को जोड़ कर देखा जाये तो नीतीश कुमार के नेतृत्व में NDA का पलड़ा भारी होता दिख रहा है। हालाँकि यहाँ बात गौर करने वाली है कि पिछली बार बीजेपी ने 157 सीटों पर चुनाव लड़ा था। लेकिन इस बार जब JDU के साथ जब वह चुनाव मैदान आएगी तो वह लगभग 100 सीटों पर ही चुनाव लड़ेगी जिसका मतलब उसके वोट प्रतिशत में गिराव आना तय है। लेकिन यह भी स्पष्ट है कि बीजेपी के वजह से JDU के वोट शेयर में जरूर बढ़ोतरी हो सकती है जो NDA गठबंधन को थोड़ा फायदा दे सकता है।
तीसरा बिंदु और सबसे महत्वपूर्ण बिंदु है अभी का राजनितिक माहौल
बिहार विधानसभा 2020 चुनाव के नज़दीक आने के साथ ही बिहार कि राजनीती में बड़े भूचाल आते दिखाई दे रहे है। पहले सीपीआई के युवा नेता कन्हैया कुमार ने पुरे बिहार में सरकार के खिलाफ जन-गण-मन यात्रा निकाल चुनावी बिगुल फूंक दिया है। तो वही जदयू के पूर्व उपराष्ट्रिय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर ने भी नीतीश कुमार के खिलाफ पुरे बिहार में “बात बिहार की ” कार्यक्रम के माध्यम से बिहार भर के युवाओं को जोड़ कर सरकार के खिलाफ भड़काने और बिहार में एक नयी राजनीती कि पहल शुरू कर दी है।
हालाँकि इन यात्राओं से NDA का नुकसान तो दिख रहा है। लेकिन साथ ही यह सोचना कि महागठबंधन को इससे ज्यादा फायदा होगा तो आप गलती कर रहे है। क्यों की कन्हैया कि यात्रा में पहुँचने वाली भीड़ में सबसे ज्यादा संख्या पिछड़ी जातियों और मुस्लिम समुदाय की है जो कि राजद और कांग्रेस के परम्परागत वोटर्स है ,जबकि प्रशांत किशोर के साथ जो लोग जुड़ रहे है उनमे निश्चित तौर पर जदयू के समर्थक तो है। लेकिन यह बात भी तय है कि जब वोट देने कि बात आएगी तो ये नितीश के विकल्प के तौर पर राजद को कभी नहीं देखेंगे, यानि ये वोट NDA को ही करेंगे। महागठबंधन के 2 प्रमुख दल राजद और कांग्रेस के लिए एक अन्य समस्या ओवैसी कि पार्टी AIMIM बनती दिख रही है।
अभी तक बिहार में मुस्लिम वोटो पर राजद और कांग्रेस का एकाधिकार बना हुआ था। लेकिन जिस तरह से उपचुनाव में AIMIM ने किशनगंज में बड़े अंतर से जित दर्ज की उससे यह तो साफ हो गया है कि अब मुस्लिम समुदाय भी कांग्रेस के अलावा दूसरे विकल्प कि ओर बढ़ रहा है, जो महागठबंधन के लिए अच्छे संकेत नहीं है।
चौथा और आखरी है जातिगत आधार
वैसे तो लगभग पुरे भारत में ही जातीवाद कि जड़े गड़ी हुई हैं। लेकिन बिहार कि राजनीती और सत्ता के खेल में जाती कि भूमिका हमेसा से ही सबसे अधिक रही है। बिहार में सबसे ज्यादा संख्या यादव जाती कि है जो कि राजद का परम्परागत वोटर है। आप बिहार कि राजनीती में यादवों का वर्चस्व इसी से लगा सकते है कि बिहार विधानसभा में हर चौथा विधायक यादव जाती का है। हालाँकि पिछले कुछ चुनावो में देखा गया है कि वोटर्स ने जाती से बाहर निकल कर वोट किये है। लेकिन इसका यह मतलब यह बिलकुल नहीं कि बिहार में जाती आधारित मतदान खत्म हो गए है।
महागठबंधन में शामिल नेताओं के आधार पर देखा जाए तो इसमें लगभग सभी जातियों के नेता शामिल है जो महागठबंधन को थोड़ा मज़बूत बनाते है। वही NDA में बीजेपी ही है जिसका अपना जातिगत आधार वोट है, माना जाता है कि अगड़ी जातियां बीजेपी को वोट करती है। JDU के वोटर्स में कुर्मी तो आते ही है लेकिन इसका सबसे बड़ा वोट बैंक नितीश कुमार का नाम है जो विकास का चेहरा है। साथ ही लोजपा भी NDA में है जिसका थोड़ा बहुत महादलित तबके से जुड़ा हुआ है। बिहार में मुस्लिम वोटर्स जो पहले नितीश कुमार को वोट करते थे वे अब काफी काम हो गए है। परन्तु देखना यह दिलचस्प है कि वे महागठबंधन को वोट करते है या फिर बिहार में उभर रही ओवैसी कि पार्टी AIMIM को। जातीय गणित में तो बिहार विधानसभा 2020 महागठबंधन का पलड़ा भारी दिख रहा है।
ये 4 बिंदुएं साफ इशारा कर रही है कि बिहार में इस बार बिहार विधानसभा 2020 में सत्ता कि लड़ाई काफी तगड़ी है। लेकिन एंटी इंकम्बेंसी, बढ़ रहे अपराध के ग्राफ और नितीश कुमार बन रही खराब छवि इस बार बिहार कि जनता को दूसरा विकल्प देखने के लिए मज़बूर कर चुकी है। बिहार कि जनता शायद इस बार युवा नेता कि तरफ देख रही है।
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