Thursday, December 26, 2024
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राष्ट्रीय पोषण मिशन, देश निर्माण की वैज्ञानिक सोंच

न्यूटन की भांति एक सटीक सिद्धांत विकसित नहीं हो पाया
शशिभूषण कुंवर,
पत्रकार व लेखक
पटना। देश और राज्य मेंपोषण का मामला कुछ ऐसा है जिसे गिरते हुए सभी देख रहे थे पर गिरते सेव को देखकर उसके आधार पर न्यूटन की भांति एक सटीक सिद्धांत विकसित नहीं हो पाया। केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गयी राष्ट्रीय पोषण अभियान कुछ इसी प्रकार का एक सटीक प्रयास प्रतीत होता है। समाज में बच्चे बौने हो रहे हैं, जन्म के समय बच्चे का कम वजन का होना, माताओं की मौत प्रसव के दौरान होना, मां बनने के पहले किशोरियों के स्वास्थ्य की समस्या, बच्चों के बौना होने, जन्म के समय वजन कम होने जैसी घटनाओं को ईश्वरीय मान लिया जाता था। वैज्ञानिक सोंच कहती है कि यह सब अवरोध सही पोषण नहीं होने के कारण होता है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 47 को आधार मानते हुए केंद्र सरकार ने अपने संवैधानिक दायित्वों के निर्वहन के लिए राष्ट्रीय पोषण मिशन की शुरुआत सितंबर माह में राजस्थान के झुनझुनू से की। यह अनुच्छेद कहता है कि राज्य अपने लोगों के पोषण स्तर को ऊंचा करने और लोक स्वास्थ्य के सुधार को अपना प्राथमिक कर्तव्य मानेगा। अब पूरा देश सितंबर महीने को राष्ट्रीय पोषण मिशन के रूप में मना रहा है।

आंकड़े बताते हैं कि मिशन को लाने की आवश्यकता क्यों पड़ी

आंकड़े बताते हैं कि मिशन को लाने की आवश्यकता क्यों पड़ी। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-चार के अनुसार जो बातें सामने आयी वह बताती है कि राष्ट्रीय स्तर पर उम्र के अनुपात में 38.4 प्रतिशत बच्चों की लंबाई कम है। वे नाटेपन के शिकार हैं। इसी प्रकार से लंबाई के अनुपात में 21 प्रतिशत बच्चों की वजन कम है। यानी जितनी लंबाई है उसके अनुसार बच्चे का वजन नहीं है। तीसरा आंकड़ा यह बता रहा है कि जितनी उम्र है उसके अनुपात में 35.8 प्रतिशत बच्चों का वजन कम है। बिहार में देखा जाये तो नाटापन के मामले में उम्र के अनुपात में 48.3 फीसदी बच्चे की लंबाई कम है। दुबलापन की श्रेणी जिसमें लंबाई के अनुपात में 20.8 प्रतिशत बच्चों का वजन कम है। अल्पवजनी बच्चे जिसमें उम्र के अनुपात में वजन कम होता है, वैसे बच्चों की संख्या 43.9 प्रतिशत है।

भारत में 16 संस्कारों में अन्नप्राशन संस्कार भी शामिल होता है

हमारा देश संस्कारों से भरा है। भारत में 16 संस्कारों में अन्नप्राशन संस्कार भी शामिल होता है। यह संस्कार बच्चों को अन्न खिलाने के साथ शुरू होता है। इसी प्रकार भारत का चर्वाक दर्शन है। उसका मूल वाक्य है-जब तक जीओ सुख से जीओ, कर्ज़ लेकर भी घी पीओ। ये हमारी परंपराएं हैं जो किसी न किसी रूप में पोषण की ओर इंगित करती है। इस योजना की पृष्ठभूमि यह है कि बच्चों में बौनापन, अल्प पोषण, किशोरियों और माताओं में खून की कमी (एनीमिया) और वजन को ध्यान में रखते हुए इसकी शुरुआत की गयी। इसके पहले वर्ष 1975 में आइसीडीएस कार्यक्रम आरंभ किया गया। वर्तमान में पोषण व स्वास्थ्य मानकों में सुधार के लिए संचालित सभी योजनाओं को एक सिंगल प्लेटफॉर्म पर लाने के लिए इसकी शुरुआत की गयी। इस मिशन का उद्देश्य कुपोषण से संबंधित विभिन्न योजनाओं का खाका बनाना, सूचना प्रौद्योगिकी आधारित रीयलटाइम मॉनिटरिंग प्रणाली की व्यवस्था करना, लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए राज्य संघ शासित प्रदेशों को प्रोत्साहित करना, आईटी आधारित उपकरणों का उपयोग करने के लिए आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहित करना था। इस योजना के तहत आंगनबाड़ी केंद्रों पर बच्चों की लंबाई को मापा जाना, जन आंदोलन या अन्य गतिविधियों के माध्यम से लोगों की भागीदारी के लिए पोषण संसाधन केंद्रों की स्थापना किया जाना है। राष्ट्रीय पोषण मिशन तीन चरणों में 2017-18 से लेकर 2019-20 तक अमल में लाया जाना है।

इसके तहत हर वर्ष बौनापन में दो प्रतिशत, कुपोषण में दो प्रतिशत, खून की कमी में तीन प्रतिशत और वजन की कमी में दो प्रतिशत के आधार पर कमी लायी जानी है। यानी कि बौनापन, वजन की कमी और खून की कमी को दूर कर तीन प्रतिशत के लक्ष्य को हासिल करना है। मिशन के तहत सभी राज्यों और सभी जिलों को चरणबद्ध तरीके से कवर करना है। इसके तहत 2017-18 में 315 जिले, 2018-19 में 235 जिले और 2019-20 में शेष सभी जिलों को शामिल करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया। तीन वर्षों के दौरान इस योजना में 9046.17 करोड़ खर्च किये जायेंगे। योजना के लिए फंड का 50 प्रतिशत सरकारी बजट सहायता और 50 प्रतिशत आईबीआरडी (इंटरनेशनल बैंक फॉर रिकंस्ट्रक्शन एंड डेवलपमेंट) या अन्य बहुपक्षीय विकास बैंक एमडीबी द्वारा वित्त पोषित किया जाना है। केंद्रशासित, पूर्वोत्तर एवं हिमालय राज्यों के लिए राशि का आवंटन 90:10 के अनुपात में करने का प्रावधान किया गया। बिना विधायिका वाले केंद्र शासित प्रदेशों के लिए 100 फीसदी वित्तीय आवंटन का प्रावधान किया गया। पोषण को बढ़ावा देने के लिए कई कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं। इसमें गर्भावस्था के दौरान स्तनपान का परामर्श दिया जा रहा है।

इसमें मामूली रूप से कुपोषित से लेकर औसत दर्जे की कुपोषित एवं अति-कुपोषित माताओं सहित सभी माताएं सफलता पूर्वक स्तनपान करा सकती हैं। गर्भवती महिलाओं, विशेषकर उन महिलाओं को, जिन्हें स्तनपान कराने में कठिनाई का सामना करना पड़ा हो, शुरू से ही स्तनपान की शुरूआत करने व केवल स्तनपान कराने हेतु प्रेरित तथा तैयार किया जाना आवश्यक है। शिशु जन्म के शुरूआती पहले घंटे के भीतर स्तनपान कराना और छह माह तक केवल स्तनपान कराने एवं दो साल तक स्तनपान जारी रखने की सलाह दी जा रही है। इससे शिशु के शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता का विकास तो होता ही है, डायरिया एवं निमोनिया से भी बच्चे का बचाव होता है। छह माह की आयु के बाद से बढ़ते हुए शिशु की बढ़ती हुई आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पूरक आहार अत्यन्त आवश्यक है। जन्म के छह माह बाद ही शिशु का वजन तीन किलोग्राम की जगह दोगुना हो जाता है और एक वर्ष पूरा होने तक उसका वजन तीन गुना हो जाता है। जन्म के पहले छह माह के दौरान शिशु की सभी पोषण आवश्यकताएं स्तनपान से ही पूरी हो जाती है।

केयर इण्डिया द्वारा कराये गये सर्वेक्षण में  खुलासा

केयर इण्डिया द्वारा कराये गये सर्वेक्षण में यह खुलासा हुआ कि बिहार में छह माह पूरा होने के बाद केवल 40 प्रतिशत बच्चे ही स्तनपान की शुरुआत कर पाते हैं। ग्यारह माह तक पहुंचने के बाद भी अधिकतम 80 प्रतिशत बच्चों द्वारा ही अनुपूरक आहार की शुरुआत हो पाती है। सिर्फ अनुपूरक आहार की शुरुआत ही पर्याप्त नहीं होती।

बल्कि इसकी गुणवत्ता भी मायने रखती है। सर्वेक्षण के आंकड़े यह बताते हैं कि बिहार में लगभग 40 प्रतिशत बच्चे अनुपूरक आहार की शुरुआत बिस्किट खाकर करते हैं। जबकि बिस्किट को पौष्टिक खाद्य समूहों में शामिल नहीं किया गया। अनुपूरक आहार में भोजन की विविधिता जरुरी है ताकि बच्चों को समान रूप से कार्बोहायड्रेट, प्रोटीन, विटामिन एवं सूक्ष्म पोषक तत्व प्राप्त हो सके। बच्चों को एक ही तरह के भोजन देने से ही बच्चे नाटेपन ( उम्र के हिसाब से लम्बाई का नहीं बढ़ना) के शिकार होते हैं। नाटापन केवल उम्र के हिसाब से ऊंचाई का कम हो जाना ही नहीं है, बल्कि इससे बच्चों का शारीरिक,मानसिक एवं बौद्धिक विकास भी अवरुद्ध होता है।

बच्चों के सम्पूर्ण मानसिक एवं शारीरिक विकास के लिए उनके आहार में न्यनूतम चार खाद्य समूहों को शामिल करने की जरूरत होती है। कुल सात खाद्य समूहों में अंडा, दूध के प्रोडक्ट, अनाज, दाल, हरी पत्तेदार सब्जियां, अन्य सब्जियां, फल तथा फ्लेश (मिट एवं मछली) को शामिल किया गया। पोषण को बढ़ावा देने के लिए बिहार सरकार द्वारा सभी आंगनबाड़ी केंद्रों पर पोषण वाटिका निर्माण की पहल शुरू की गयी। जिसमें कृषि विश्वविद्यालय,सबौर के द्वारा तकनीकी सहयोग प्रदान किया जा रहा है। पोषण वाटिका के माध्यम से भोजन में पोषक तत्वों को शामिल करने की महत्ता को उजागर करने एवं प्रत्येक घर में किचन गार्डन निर्माण का लक्ष्य भी पोषण वाटिका में शामिल है।

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