अपने बच्चे की तुलना दूसरों से न करें। स्कूल लाइफ में नंबर जरूरी है प्रिंसिपल और मां बाप को खुश करने के लिए। लेकिन जब हम स्कूल से निकलते हैं तो हमें पता चलता है कि जिंदगी गणित या विज्ञान के नंबरों से बहुत बड़ी है। सच तो ये है कि स्कूल के बाहर की दुनिया में स्कूल और कॉलेज के ग्रेड मायने ही नहीं रखते हैं। हमारे आसपास ऐसे लाखों उदाहरण है जो अपने स्कूल के दिनों में टॉपर थे। पर आज ऐसे ही घूम रहे हैं, यहाँ हम किसी का अनादर नहीं कर रहे पर यही सच है।
हम सभी जब स्कूल मे थे तो हमारे सपने बड़े थे। स्कूल के दिनों में जब भी कोई हमसे पूछता था कि हम आगे चलके क्या बनना चाहते हैं तो हम गर्व से इंजीनियर, डॉक्टर, आईएएस-आईपीएस या वैज्ञानिक इन्हीं कुछ विकल्पों में से किसी एक का नाम सरमाते और मुस्कुराते हुए ले लेते थे। पर आगे चलकर 90% बच्चे जो इस तरह का सपना देखते हुए बड़े होते है, उनके सपने पूरे नहीं हो पाते हैं। सच तो ये है कि बचपन में हम जिन सपनो को हम अपना कहते थे, आगे चलकर हमे पता चलता है कि वो वास्तव मे हमारे सपने थे ही नही।
हम जिस समाज में रहते है, बड़े होते है उस समाज के सफल लोगों के सपनों को हम अपना सपना मान लेते हैं। जैसे अगर किसी रिश्तेदार या किसी पड़ोसी के बेटे या बेटी ने इंजीनियरिंग या डॉक्टरी की है तो माता-पिता बच्चे की तुलना करते हुए भी हमें इंजीनियरिंग या डॉक्टरी करने की सलाह देते है और आज भी भारत के 80% घरों में ऐसा ही हो रहा है।
बच्चे की तुलना करना नहीं है फायदेमंद
अगर मान लीजिए, किसी का बच्चा 10वी क्लास में है तो उसके माता-पिता चाहते हैं कि वो दसवीं क्लास में अच्छा करें, अगर वो ऐसा नहीं कर पाता है तो वो निराश होते हैं और उसे बुरा भला कहते हैं, जो की आम बात है। माता पिता अपने बच्चों का भला चाहते हैं, और अपने बच्चे की तुलना कर उन्हें समझने का प्रयास करते है। साथ ही उनमे प्रतियोगिता की भावना भी लाने की कोशिश करते हैं। शायद इस दुनिया में वही एकमात्र ऐसे दो लोग होते हैं जो निस्वार्थ रूप से अपने बच्चों की भलाई चाहते हैं।
लेकिन कभी कभी अनजाने में वो पने बच्चे की तुलना कर का नुकसान कर जाते हैं, क्योंकि जब आप अपने बच्चों का नंबर दूसरे के बच्चों के साथ मिलाएंगे। तो आपके बच्चे का नंबर किसी न किसी के बच्चे के नंबर से कम या किसी के बच्चे से ज्यादा जरूर होगा। इस नंबर के खेल में हमारे माता-पिता, पड़ोसी और हमारे रिश्तेदारों के बीच मन ही मन एक अनदेखी अनचाही जंग शुरू हो जाती है जो कभी भी किसी को भी फायदा नहीं पहुंचाने वाली।
पाकिस्तान और भारत का वनडे मैच भी कुछ घंटों में खत्म हो जाता है। लेकिन हमारे रिश्तेदारों और हमारे माता पिता के बीच अपने बच्चे को दूसरे के बच्चे से बेहतर सबित करने की जंग सालों से चली आ रहा है, और लगता है आगे न जाने कितने सालों तक ये चलती रहेगी।
ग्रेड से ज्यादा बच्चे को जीवन में बनाये सफल
अपने बच्चे की तुलना दूसरों से न करें, क्योंकि इससे आपका आपके बच्चे के साथ संबंध खराब होता हैं। बच्चे भावनात्मक रूप से बहुत कमजोर होते हैं। अगर आप अपने बच्चे को बार-बार कहते हैं कि दूसरा बच्चा उससे बेहतर है, तो उन्हें लगेगा कि आप उनकी तरफ नहीं हैं। और हां एक बात याद रखें कि सूर्य और चंद्रमा के बीच कोई तुलना नहीं की जा सकती है, वे तब चमकते हैं जब उनका समय होता है। और साथ ही साथ दूसरों के बच्चों को कभी नीचा भी नहीं दिखाना चाहिए। क्योंकि किसी को नीचा दिखा कर या दबाकर सफल होना, सफल होना नहीं है। वास्तव मे सफल तो वो होता है जो सबको साथ लेकर आगे बढ़ता है।
खामी भरे शिक्षा प्रणाली में बच्चे की तुलना खतरनाक
हमारी शिक्षा प्रणाली में कई खामियां हैं, लेकिन इन सभी खामियों के बाद भी अगर हमारे माता-पिता और शिक्षक बच्चों को उनके गणित और विज्ञान के अंकों के आधार पर आंकना बंद कर दें, तो हम एक अच्छा इंसान और एक बेहतर समाज बना सकते हैं। शिक्षा का सही मतलब समाज से अंधकार को दूर करना और सही दिशा दिखाना है। लेकिन हमारी शिक्षा व्यवस्था ने शिक्षा का मतलब रोजगार बना दिया है।
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हमे लगता है बच्चे की तुलना न करते हुए बच्चों को पढ़ने के लिए जरूर बोले, लेकिन उन्हें खेलने के लिए भी भेजे। क्योंकि खेल में व्यक्ति के चरित्र को बनाने की क्षमता है। खेल मे जीवन के अनमोल सिख छुपे हैं। जब आप मैदान पर बल्ला या फुटबॉल लेकर उतरते है तो आप हर रोज जीवन के अलग अलग पहलुओं का अनुभव कर सकते हैं। जैसे अगर आप क्रिकेट खेलों, तो खेलते हुए आप हर रोज खुश होंगे, दुखी होंगे और निराश होंगे। जीवन में भी कुछ ऐसा ही होता है, तो अपने बच्चों को कोई भी टीम गेम खेलने के लिए मैदान पर जरूर भेजें। चाहे हालात जैसे भी हो हमेशा अपने बच्चों का साथ दें।
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