अक्सर पूरी की पूरी किताब एक व्यक्ति को समझाने में नाकाम साबित होती है, इसके उलट विश्व इतिहास में कुछ ऐसे व्यक्ति रहे हैं, जिनका महज नाम ही पूरी मानव जाति को ना जाने कितने किताबों का ज्ञान दे जाती है। उन्हीं नामों में एक नाम महात्मा गांधी का है, जिनकी मुत्यु पर उम्र भर विरोधी रहा अंग्रेज ने कहा कि भारत हिजड़ों का देश है, जिस गांधी को हमने कई वर्षों तक झेला, उस महात्मा को ये देश एक साल नहीं झेल पाया।
जिस गांधी ने सत्य और अहिंसा के बल ईस्ट इंडिया जैसी बड़ी हुकुमतों को झुकाया और खुद को जीतना सिखाया, उस गांधी का जन्म आज ही के दिन यानि 2nd Oct 1869 ई को गुजरात के पोरबन्दर मे हुआ था। मगर उनके जीवन जीने की शैली और त्याग की ढुढ इच्छा शक्ति ने उन्हें गुजरात से निकाल कर विश्व इतिहास के पन्नों पर कभी ना मिटने वाले स्याही से उनका नाम अंकित कर दिया।
हालांकि उनके ज्ञान, अहिंसा और आंदोलन की कहानी दक्षिण अफ्रीका की गलियों से गुजरते हुए भारत में फैली, लेकिन उनके अहिंसक आंदोलन की शुरुआत देश के उस राज्य से हुई, जहां कभी महात्मा बुद्ध और महावीर ने अहिंसा का पाठ पढ़ाया था, वही राज्य जिसने दुनिया को गणतंत्र का मतलब समझाया था।
जी हां हम उसी बिहार की बात कर रहे हैं, जहां से महात्मा गांधी ने अंग्रंजों के घर वापसी का विगुल बजाया था। बात जनवरी 1917 की है। अंग्रेजी जनता का भारतीयों पर अत्याचार अपने चरम पर था। अंग्रेज चंपारण के किसानों को नील की खेती के लिए मजबूर किया करते थे और फिर उनसे भारी लगान वसूलने के लिए तरह-तरह से प्रताड़ित भी किया करते थे।
बिहार से हुए आज़ादी आंदोलन की शुरुआत
सामाचार पत्र प्रताप के संपादक गणेश शंकर विद्यार्थी के सुझाव पर सतवरिया गांव के किसान नेता राजकुमार शुक्ल ने गांधी जी से मिलकर निलहों की स्थिति बताई। फिर महात्मा गांधी का चम्पारण दौरा हुआ और यहीं से भारतीय आंदोलनों की पारी शुरु हुई। आंदोलन का परिणाम यह रहा कि अंग्रेजी हुकूमत को झुकना पड़ा और तिनकठिया प्रथा समाप्त हुई।
चम्पारण सत्याग्रह के बाद गांधी जी के हर कदम के साथ बिहार और बिहार की हर समस्या के साथ गांधी खड़े रहें। चाहे खिलाफत आंदोलन हो, सविनय अवज्ञा आंदोलन या फिर भारत छोड़ों आंदोलन। उनके एक आह्वावान पर बिहार उनके साथ खड़ा होता था। चंपारण सत्याग्रह और भारत छोड़ों आंदोलन के दौरान पटना के गांधी मैदान में उन्होंने कई बार जनता को संबोधित किया था। उनकी क्रुर हत्या के बाद अंग्रेजी हुकुमत में पटना लॉन के नाम से विख्यात मैदान को 1948 में गांधी मैदान नाम दिया गया।
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महात्मा गांधी की मुत्यु अलर्बट आइंसटीन
इस घटना के बाद अलर्बट आइंसटीन ने कहा था- आने वाली पीढ़ी यकीन नहीं करेगी कि गांधी जैसा हाड़-मांस का व्यक्ति कभी इस धरती पर चला था। दक्षिण अफ्रीका में आज भी गांधी की पूजा की जाती है। दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला ने उन्हें अपना गुरु मानते थे। पर अफसोस भारत के लोग उनके मूल्यों को या तो भूला चुके हैं या महज किताबों में जीवंत रखे हैं। मगर हमें यह याद रखना चाहिए कि गांधी को भूलाना गांधी की नहीं, हमारी खुद की हार है क्योंकि गांधी तो जीत और हार से परे थे। उनके बताए रस्ते पर चलने से न सिर्फ हमारा या देश का, बल्कि पूरे मानव जाति का कल्याण होगा।
हमारे लिए यह गर्व की बात है कि महात्मा गांधी जैसे अतुलनीय व्यक्तित्व हमारे भारत देश की धरती पर जन्म लिए और उनके जन्म दिवस को विश्व अहिंसा दिवस के रुप में मनाया जाता है। जहां एक ओर पूरा विश्व गांधी को अपना आदर्श मानता है वही दूसरी ओर अपने ही देश के कुछ लोग उन्हें गालियां देते हैं।
बढ़ता बिहार, परिवार की तरफ से हमारा यही कहना है कि गांधी एक व्यक्ति नहीं एक युग थे- युग त्याग का, न्याय का, अहिंसा का, विश्वास का, मानवता का। आइए हम एक युग के 150वीं जन्म पर उनको सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
प्रेषक- सुप्रिया भारती