Wednesday, March 27, 2024
Homeविशेष खबरआखिर किन मुद्दों की जरूरत बनता बिहार चुनाव

आखिर किन मुद्दों की जरूरत बनता बिहार चुनाव

बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा में अब कुछ ही दिन बाकी हैं। इसे लेकर पक्ष विपक्ष में वाक युद्ध चरम पर पहुंच गया है। पक्ष विपक्ष के तमाम नेताओं के तरफ से आरोप प्रत्यारोप का दौर थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। पिछले कई दिनों से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का 84 दिन बाद निवास से निकलना, आरक्षण, प्रवासी मजदूर और भी तमाम मुद्दे चर्चा का विषय बने रहे। लेकिन इन सभी मुद्दों के बीच ऐसे मुद्दे दब गए जिसपर ध्यान जाना समय की जरूरत बन गई है।

सबसे पहले बिहार के स्वास्थ्य व्यवस्था का मुद्दा काफी अहम है। बिहार में लचर स्वास्थ्य व्यवस्था की कहानी किसी से छीपी नहीं है। रह रह कर सरकार की किरकिरी लचर स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए होती रही है। चाहे सरकार महागठबंधन की हो या एनडीए की स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार करने में हर कोई असफल रहा है। महागठबंधन के वक्त भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने चमकी बुखार को लेकर ऐसा बयान दिया था कि स्वास्थ्य विभाग के लाचार होने की बात सामने आने पर सरकार की काफी किरकिरी हुई।

अब कोरोना संक्रमण जब राज्य में लगातार तेजी से फैल रहा है। संक्रमण की गिरफ्त में पूरा राज्य आ चुका है। लगभग 13 करोड़ की आबादी वाले बिहार में रोज पांच हजार जांच कर पाना भी सरकार के लिए संभव नहीं हो रहा है। जांच करना तो दूर संक्रमण के खतरे से अवगत होने के तीन माह से ज्यादा होने के बाद भी हर जिले में जांच की सुविधा उपलब्ध करा पाना संभव नहीं हो सका है।

बिहार चुनाव के लिए स्वास्थ्य व्यवस्था हो मुख्य मुद्दा

रोजगार तो हमारे राजनीतिक मुद्दों के बीच दब सा गया। शायद ही कोई राजनीतिक दल हो जिसके मुख्य एजेंडा में रोजगार हो। हर राजनीति दल तो अपने सिद्धांत की राजनीति को हर मुद्दों से ऊपर रखते हैं। अगर रोजगार के आंकड़ों को देखा जाए तो बिहार में 100 लोगों में केवल 7.2 लोगों के पास ही रोजगार है। राज्य से झारखंड के अलग होने के बीस वर्षों बाद भी हम बिहार में एक भी ऐसी औद्योगिक इकाई स्थापित करने में नाकाम रहे जो कि देश के मुख्य सौ औद्योगिक ईकाईयों में जगह भी बना सके। इसके अलावा राज्य में कुल छोटे एवं लघु उद्योगों का हाल बेहाल है।

बिहार में किसानों का मुद्दा तो कभी विकास धारा से जुड़ा ही नहीं। न ही सरकार के पास किसानों के लिए कोई नीति है। न ही किसानों के अनाज को खरीदने के लिए कोई व्यवस्था। किसान के फसलों की खरीदा हैं भी तो उनकी फसलों का उचित मूल्य देने के लिए कोई तैयार नहीं है। अगर फसल का समय से कोई खरीदार हो और उसका ठीक-ठाक दाम देने को तैयार हो भी गया तो उसे समय से पैसा नहीं मिलता। किसानों के साथ आए दिन खाद और बीज की समस्या तो बनी ही रहती है। राज्य सरकार खाद के कालाबाजारी को रोक पाने में लाचार नजर आती है। आखिर बिहार में खाद की खपत हर साल 8 फीसदी बढ़ रही है। जबकि वर्ष दर वर्ष इसके उत्पादन में गिरावट होती जा रही है।

[inline_posts type=”related” box_title=”” align=”alignleft” textcolor=”#000000″ background=”#c7c7c7″][/inline_posts]

राज्य में महिलाओं के लिए भले ही 50 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था हो पर इनके रोजगार की दर में कुछ खास सुधार नहीं हो सका है। राज्य में महिलाओं के रोजगार की दर 2015-16 के आंकड़ों के अनुसार 17.6 फीसदी है। जो कि हमारे पड़ोसी राज्य झारखंड के 48 फीसदी का आधा भी नहीं है। जबकि सरकारी कर्मचारियों में महिलाओं की हिस्सेदारी केवल 22 फीसदी है। वहीं बिहार महिलाओं को रोजगार देने के मामले में देश के निचले 7 राज्यों में स्थित है।

ऐसे तमाम बड़े मुद्दे हैं जो राजनीतिक सिद्धांतों के सामने दबे पड़े हैं। खैर इस बार भी इन सभी के चर्चा में आने की कोई संभावना नहीं दिखती है। इस बार अभी तक सभी पार्टियां प्रवासी मजदूरों को साधने में लगी हैं। इसके अलावा आपसी कलह से परेशान विपक्ष सही विषयों को उठा पाने में असमर्थ दिखता है। ऐसे में आने वाला वक्त ही बताएगा की कौन से मुद्दे बिहार चुनाव में प्रभावी होते हैं।

 

Badhta Bihar News
Badhta Bihar News
बिहार की सभी ताज़ा ख़बरों के लिए पढ़िए बढ़ता बिहार, बिहार के जिलों से जुड़ी तमाम अपडेट्स के साथ हम आपके पास लाते है सबसे पहले, सबसे सटीक खबर, पढ़िए बिहार से जुडी तमाम खबरें अपने भरोसेमंद डिजिटल प्लेटफार्म बढ़ता बिहार पर।
RELATED ARTICLES

Most Popular