बाधाएँ आती हैं आएँ
घिरें प्रलय की घोर घटाएँ,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,
निज हाथों में हँसते-हँसते,
आग लगाकर जलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की कविता ‘कदम मिलाकर चलना होगा‘ की ये पंक्तियाँ बरबस आज कानों को गूंज रही है। भारत के लिए यह वो समय है जब इन पंक्तियों से सीख लेकर, उठ खड़ा होना चाहिए और एक स्वर में सीमा पार से हो रहे इस आतंकवाद जैसे कुकृत्य पर एक साथ कदम से कदम मिलाकर लड़ने का प्रण लेना चाहिए।
पुलवामा हमले में शहीद जवानों को हमारा नमन
जम्मू कश्मीर के #पुलवामा में CRPF पर हुए आतंकी हमले से जहाँ पुरे देश में आक्रोश है वही विविधता में एकता वाले भारत आज कविता के इस पंक्ति को चरितार्थ कर रहा है। हो भी क्यों न, भारत माँ ने अपने 42 वीर सपूतों को जो खो दिया है। यह तो ताज़ा मामला है, ना जाने अब तक कितने ही वीर सपूत अपनी माँ के रक्षा के लिए कुर्बान हो गए होंगे। नमन है ऐसे माँ के कोख को जिन्होंने भारत माँ को ऐसे लाल दिए हैं, और मलाल है अब तक की सरकारों पर जिन्होंने इतना सब कुछ गवाने पर भी इस मुद्दे का कोई हल न निकाल सकी।
पूरी दुनिया में भारत एक कद्दावर देश है, हो भी क्यों न हमारे पास दुनिया में दूसरी सबसे बड़ी सक्रिय सैन्यकर्मीयों की शक्ति है। तीनो सेनाओं को मिलाकर भारत के पास लगभग 14 लाख सक्रिय सैन्यकर्मी है और 11 लाख आरक्षित सैन्यकर्मी की ताकत है। हम विश्व में सातवीं सबसे ताकतवर अर्थव्यवस्था हैं। 2018 के एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की शीर्ष दस अर्थव्यवस्थाओं में भारत का स्थान 7वां है। लेकिन क्या फायदा इन ताकतों का जब हम खुद की जमीन को, खुद के लोगों को ऐसे ही मरते देखें। गनीमत है यह हमला अमेरिका और रूस जैसे देशों पर नहीं हुआ, अन्यथा अब तक हमलावरों के परखच्चे उड़ा दिए गए होते। पूरी दुनिया ने देखा है की 9/11 के हमले के बाद अमेरिका ने किस तरह आतंकवाद के खिलाफ मुहीम छेड़ी थी। भारत को भी अपनी शक्तियों को समझना चाहिए और खुद को सँभालते हुए अपने देश की रक्षा के लिए सही कदम उठाना चाहिए।
राष्ट्रकवी रामधारी सिंह दिनकर के कविता कुरुक्षेत्र के तृतीये सर्ग भाग 1 से ली गयी यह पंक्ति आज हर भारतीयों को चरितार्थ करती है।
दबे हुए आवेग वहाँ यदि
उबल किसी दिन फूटें,
संयम छोड़, काल बन मानव
अन्यायी पर टूटें ।
जागो भारत की सरकार
यह समय है जब भारतीयों की नब्ज़ तेज़ हो चली है और उनके अंदर की ज्वाला तेज़ गति से उबलने लगे हैं। दुनियावालो यह जान लो की हमारी संयम का तुमने बहुत इम्तिहान लिया है, अब और सहन नहीं होता। घर घर पहुंचते शहीदों के शव ने पुरे देश को मर्माहत कर दिया है। आतंक के इस लड़ाई में भारत के साथ विश्व समुदाय खड़ा है। रूस, अमेरिका, ब्रिटेन और इज़रायल जैसे देशों ने आतंकवाद के खिलाफ भारत के साथ अपनी संवेदना व्यक्त की है। पकिस्तान स्थित जैश-ए-मोहम्मद आतंकी संगठन ने हमले की जिम्मेदारी भी ली है। फिर अब किस बात की देरी है, अब तो जागो भारत की सरकार और टूट पड़ो उन अन्यायी पर जिन्होंने अपने नापाक इरादों से हमारे देश की धरती को लहूलुहान किया है।
उखाड़ फेंको आतंक की जड़ें
अब समय नहीं है ट्वीट कर संवेदना व्यक्त करने का, अब समय है अपने खून के बदला लेने का। ऐसा बदला जो आतंक की जड़ को उखाड़ फेंके, ऐसा बदला की फिर ऐसे किसी संगठनों का भारत की ओर नज़र उठाने की हिमाकत न हो।
इतना दुःख, इतनी संवेदना अब सहन नहीं होता। पुलवामा में शहीद जवानों के परिवार में अभी क्या बीत रही होगी यह सोच कर ही रूह कांप उठती है। उन मासूमो की शक्ल जो अब पिता के साये से महरूम हो चुकी है देख कर ही बरबस आंखों में आंसू आ जाते है।
देश के हर क्षेत्र में कार्य कर रहे लोगों ने अपनी ओर से सहायता प्रदान करने की बात कही है, यह एक अच्छी पहल है। यह समय है जब अन्य लोगों को भी आगे आकर देश के हर क्षेत्र में तरक्की में सहयोग करना चाहिए। अगर सक्षम हैं तो हर असक्षम परिवार को चिन्हित कर शिक्षा के क्षेत्र में उनके बच्चों के खर्च वहन करना चाहिए। बस एक कदम से भारत अपने आपको विश्व में सबसे शक्तिशाली देश बनाने की पंक्ति में सबसे आगे खड़ा पायेगा। भारत को विश्वशक्ति बनाने में यहाँ के हर नागरिक को अपनी ओर से मदद करनी होगी।
सवाल फिर वही है क्या अब हम उठ खड़े होंगे अपने मातृभूमि पर दाग लगाने वाले लोगों के खिलाफ?
अपनी कलम की विराम देते हुए, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की कविता “कलम, आज उनकी जय बोल” के इन पंक्तियों के साथ पुलवामा हमले के वीर सपूतों को नमन करता हूँ।
जला अस्थियाँ बारी-बारी
चिटकाई जिनमें चिंगारी,
जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर
लिए बिना गर्दन का मोल
कलम, आज उनकी जय बोल।
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