पटना। लोजपा के अध्यक्ष चिराग पासवान के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर लगातार सवाल खड़े करने और भाजपा के प्रति सॉफ्ट रहने पर सवाल खड़े हो गए कि आखिर चिराग के मन मे क्या है? बार-बार पार्टी की बैठकें करने के बाद भी चिराग पासवान अपना स्टैंड क्यों नहीं साफ कर रहे हैं?।
भाजपा से दोस्ती और नीतीश के बैर के मायने क्या
भाजपा से दोस्ती और नीतीश के बैर के क्या मायने हैं? लोजपा बिहार में एनडीए के साथ रहेगी या नहीं? ऐसे में सवाल उठता है कि जदयू पर क्या प्रेशर पॉलिटिक्स बनाने के लिए चिराग तेवर दिखा रहे हैं?। लेकिन, क्या चिराग तेवर से बिहार भाजपा सहज है? कम से कम प्रदेश भाजपा अध्यक्ष संजय जायसवाल के बयान से तो नहीं लगता है।
चिराग क्या बोलते हैं, वो सवाल उन्हीं से पूछिये
इसी सवाल को लेकर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने तल्ख लहजे में कहा कि चिराग क्या बोलते हैं, वो सवाल उन्हीं से पूछिये। पर अब भाजपा की तरफ से चिराग को एक बड़े नेता का साथ मिलता दिख रहा है। केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता आरके सिंह ने कहा कि एनडीए गठबंधन में कोई परेशानी नहीं है। हम सभी पार्टियां एकजुट होकर चुनाव लड़ेंगी। लोजपा और चिराग़ भी हमलोगों के परिवार के सदस्य की तरह हैं और हम पार्टनर भी हैं।
एनडीए में सब ठीक है और सभी मिलकर 200 से ज्यादा सीट जीतेंगे
समय-समय पर जनता की आवाज़ उठाते रहते हैं, पर इससे हमारे बीच में कोई दुराव नहीं है। आरके सिंह ने कहा कि परिवार के किसी सदस्य को लगता है कि कोई बिंदु ओवरलुक हो रहा है तो उसका अधिकार है कि सबका ध्यान आकृष्ट हो। यही काम चिराग़ पासवान कर रहे हैं। इसी लाइन पर भाजपा प्रवक्ता निखिल आनंद ने कहा कि एनडीए में सब ठीक है और सभी मिलकर 200 से ज्यादा सीट जीतेंगे। वहीं, जदयू प्रवक्ता राजीव रंजन ने भी चिराग पर साफ बोलने से इनकार करते हुए सबकुछ ठीक होने कई बात कही।
जाहिर है ये साफ है कि कोई भी पार्टी अलग नहीं होना चाहती, लेकिन मामला अधिक से अधिक दावेदारी और हिस्सेदारी की ही है। इससे जाहिर तौर पर ये साफ हो चुकी है कि आखिर चिराग पासवान क्यों गठबंधन को लेकर पीएम मोदी और भाजपा पर सब छोड़ रहे हैं। चिराग की इस राजनीति को कांग्रेस प्रवक्ता राजेश राठौर ने भाजपा की चाल बताते हुए कहा कि चिराग भाजपा के इशारे पर सबकुछ कह रहे हैं। हालांकि राजनीतिक जानकार अंदरखाने की कुछ और ही कहानी कहते हैं। दरअसल, 2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार महागठबंधन से लड़े थे।
ऐसे में एनडीए की सीट शेयरिंग में लोजपा को 42 सीटें मिली थी। चिराग इस बार भी इतनी ही सीटों पर चुनावी दावेदारी कर रहे हैं, लेकिन सीएम नीतीश की सहमति नहीं है क्योंकि बिहार की 243 सीटों में से भाजपा 100 पर चुनाव लड़ने को तैयार नहीं है तो जदयू भी 110 से 120 सीटों पर अपनी दावेदारी कर रही है। ऐसे में एनडीए में जीतनराम मांझी और चिराग पासवान की पार्टी बचती है। दूसरी ओर एनडीए की सीट शेयरिंग में मांझी की उलझन भी आ गई है।
गौरतलब है कि जीतनराम मांझी को नीतीश लेकर आए हैं तो उन्हें साधकर रखने की जिम्मेदारी उनके कंधों पर है। माना जा रहा है कि वो अपने कोटे से ही मांझी को सीटें देंगे। वहीं लोजपा को लेकर मामला उलझा हुआ है। माना जा रहा है कि इस बार लोजपा को महज दो दर्जन सीटों पर ही चुनाव लड़ने का मौका मिल सकता है। वहीं, एनडीए के सूत्रों से जो खबर सामने आ रही है उसके अनुसार सीट शेयरिंग का जो फॉर्मूला बन रहा है उसके तहत भाजपा 100, जदयू 119 और 24 सीटें लोजपा को दी सकती है।
इस बीच लोजपा के पूर्व सांसद सूरजभान ने कहा कि बिहार में हमारी 36 सीटें बनती है। 123 सीट पर जदयू -भाजपा के सीटिंग विधायक हैं जबकि बाकी की बची 120 सीटों में से हमें पसंद की 20 सीटें चाहिए। सूरजभान ने कहा कि इसके बाद बची हुई 100 सीटों में से बी और सी ग्रेड की 16 सीटें हमें दी जाए ताकि हमारा आंकड़ा 36 को छू जाए।
पार्टी को 25 से भी कम सीट दिए जाने संबंधी खबरों पर प्रतिक्रिया देते हुए सूरजभान ने स्पष्ट तौर पर कहा कि अगर आप किसी की गर्दन दबाइएगा तो उसका असर बहुत खतरनाक होता है। जाहिर है ऐसे में चिराग पासवान ने रणनीति बनाई है कि दबाव बनाकर ज्यादा से ज्यादा सीटें हासिल की जाए। इसीलिए वो एक बाद एक बैठक कर प्रेशर पॉलिटिक्स बनाते नजर आ रहे हैं।