बिहार में पांच साल बाद एक बार फिर वोटरों की बारी आई है। इस समय वे राज्य की बेहतरी के लिए बिहार चुनाव में अगले पांच साल का एजेंडा तय कर सकते हैं। बीते पांच साल के कामकाज का मूल्यांकन फैसला करने में मदद करेगी। अतीत के कार्यो का मूल्यांकन और भविष्य के एजेंडा के आधार पर जो मतदान होगा, उससे राज्य की तकदीर संवरेगी। निर्णय लेने की यह प्रक्रिया जवाबदेह सरकार के गठन में मदद करेगी।
राज्य के लिए यह चुनाव कई कारणों से ऐतिहासिक है। कोरोना जैसी महामारी से विश्व समुदाय का पहली बार मुकाबला हो रहा है। दुनिया के 40 से अधिक देशों में कोरोना के चलते चुनाव टल रहा है। इनमें कई देश ऐसे हैं जिनकी आबादी बिहार से कम है। इस संकट के दौर में मतदान का यह प्रयोग देश में और अपने प्रदेश में हो रहा है। बिहार में ठीक ढंग से चुनाव संपन्न हो गया तो यह अपने आप में राज्य के लिए बड़ी उपलब्धि होगी। यहां के वोटर राजनीतिक तौर पर पहले से परिपक्व हैं।
बिहार चुनाव में जनता को देना होगा परिपक्वता का परिचय
इस चुनाव में उन्हें और अधिक परिपक्वता का परिचय देना होगा। बिना भीड़ जुटाए जनता तक अपनी बात पहुंचाना राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के लिए भी चुनौती होगी। अच्छी बात यह है कि राज्य के आम लोगों ने कोरोना से बचाव के लिए जारी केंद्र और राज्य सरकार के दिशा निर्देश का पालन सहज भाव से किया है। संक्रमण की दर में कमी इसी परहेज का नतीजा है। मुश्किल नहीं है। लोग चुनाव आयोग की ओर से अभी जारी दिशा निर्देश का पालन करें। एहतियात के उपायों पर अमल करें। यकीन मानिए कोरोना की तरह चुनाव के मोर्चे पर भी जीत जरूर हासिल होगी।
चुनाव एक और कारण से ऐतिहासिक है। 2015 के विधानसभा चुनाव में निर्वाचित विधायकों के साथ अजीब संयोग बना। भाकपा माले के तीन और कुछ निर्दलीय विधायकों को छोड़ दें तो अन्य सभी विधायक अपने पांच साल के कार्यकाल में बारी-बारी से सत्ता और विपक्ष में रहे। विधायकों की यह हैसियत आम लोगों को उनके चुनावी वायदे का हिसाब लेने में काफी मदद करेगी। हिसाब लेने का यह दौर दिलचस्प भी हो सकता है।
यह हो सकता है बिहार का चुनावी एजेंडा
राज्य में आधारभूत संरचना का विकास हुआ है। सड़क, बिजली, सिंचाई आदि के क्षेत्रों में अभूतपूर्व उपलब्धि हासिल हुई है। स्वास्थ्य और शिक्षा से जुड़ी आधारभूत संरचनाएं विस्तृत हुई हैं। इस चुनाव का एक एजेंडा यह हो सकता है कि विकसित आधारभूत संरचना का उपयोग उत्पादन के साधन बढ़ाने और रोजगार के अवसर सृजित करने में कैसे हो। विलंब से चलने वाले विश्वविद्यालयों के सत्र को नियमित करने का करार भी वोटरों के एजेंडा में हो सकता है।
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