इस कोरोना वायरस के कहर ने जहां एक औऱ रिश्तों की गर्माहट और अपनेपन को छीन लोगों को आपस में ही एक-दूसरे से अलग-थलग कर दिया। वहीं दूसरी ओर रिश्तों और प्यार की कुछ ऐसी मिसाल कायम की, जिसे सुनकर औऱ जानकर ऐसा लगा जैसे आज भी रिश्तें पूरी तरह बंजर नहीं हुये हैं। इस पंक्ति को सार्थक करती ऐसी ही कुछ कहानी एक दिव्यांग मां और उसके 11 वर्षीय बेटे की है। बता दें कि एक 11 वर्ष के बालक ने 550 किलोमीटर का सफर, ठेले पर घायल पिता और एक आंख से दिव्यांग मां को बैठाकर तय किया। इस 11 वर्षीय बालक का नाम मोहम्मद तबारक है, जो अपने पिता और मां को ठेले पर बैठाकर वाराणसी से बिहार के अररिया जिले के जोकीहाट ले आया। रास्ते में जिसने भी इस दृष्य को देखा, तबारक की हौसला-आफजाई की। कइयों ने वीडियो बनाई और उसे आज के श्रवण कुमार का नाम दे दिया। सफर आसान नहीं था। नौ दिन का सफर, और इस का पड़ाव बना पेट्रोल पंप। जहां पर कलयुग के इस श्रवण कुमार अपने माता-पिता के साथ रातें गुजारी।
तबारक ने बचपन में पढ़ी श्रवण कुमार की कहानी को किया ताजा
इस बारे जब मोहम्मद तबारक से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि उनके पिता मोहम्मद इसराफिल बनारस में ठेला चलाने के साथ मजदूरी भी करते थे। मजदूरी के दौरान पैर पर पत्थर गिर गया जिसकी वजह से उनका पैर चोटिल हो गया और काम करने से वे असमर्थ हो गए। ऐसे में अपने बीमार पति को देखने के लिए तबारक की मां बेचैन थीं। मां की बेचैनी देखकर तबारक लॉकडाउन से पहले ट्रेन से मां को लेकर बनारस चला गया। इसके लगभग एक सप्ताह बाद लॉकडाउन शुरू हो गया। लॉकडाउन में पहले से ही संकट में घिरा तबारक का परिवार बनारस में एक-एक दाने को मोहताज हो गया। एक दिन तबारक ने अपने बीमार पिता और दिव्यांग मां को ठेले पर बिठाया और घर की ओर चल पड़ा।
मो. तबारक का कहना है कि ठेले पर माता-पिता को लेकर चलने के बाद उसे काफी तकलीफें हुईं। सफर की जितनी भी रातें थी, वो रास्ते में मिलने वाले पेट्रोल पंप पर गुजरती थीं। इस दौरान किसी रात खाना बनता तो किसी रात कोई खाना दे जाता। नौ दिनों के सफर के बाद आखिरकार 11 साल का बच्चा तबारक अपने माता-पिता को लेकर अपने घर जोकीहाट पहुंचा। उसे परिवार समेत उदा हाई स्कूल में क्वारंटाइन कर दिया गया।
तबरीक ने श्रवण कुमार की प्राचीन ऐतिहासिक कहनी की यादें की ताजा
इस ग्यारह वर्षीय नन्हें तबारक के कठिन सफर की कहानी जोकीहाट के विधायक के कानों तक पहुंती तो विधायक ने तबारक को 5 हजार रुपये और अंगवस्त्र देकर इन्हें सम्मानित किया। विधायक ने बताया कि तबारक का हौसला वाकई चकित कर देने वाला है। तबारक कक्षा दो का छात्र है। पढ़ाई में उसकी रुचि है, लेकिन गरीबी मार्ग में बाधक बनकर खड़ी है। ग्रामीणों की इच्छा है कि बिहार सरकार तबारक की पढ़ाई का खर्च उठाए।
गौरतलब है कि इससे पहले ऐसा ही एक वाक्या उस वक्त मीडिया और लोगों के बीच चर्चा का विषय बन गया था। जब बिहार के दरभंगा की स्थानीय निवासी की तेरह वर्षीय बेटी ज्योति कुमारी ने 1000 से ज्यादा किलोमीटर तक का सफ़र अपने पिता को बैठाकर तय किया था। दरअसल, बिहार के दरभंगा के मोहन पासवान गुड़गांव में ऑटो रिक्शा चलाने का काम करते थे। एक्सीडेंट में घायल मोहन पासवान को कोरोना के चलते हुये लॉकडाउन में उनकी 15 वर्षीय बेटी ने उन्हें साइकिल पर बैठाकर दस दिनों में लगभग हज़ार किमी से अधिक की दूरी तय कर दरभंगा पहुंची थी।
बिहार में बढ़ी कोरोना संक्रमितों मरीजों की संख्या, लॉकडाउन 5.0 में छुट दी गई