भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति एवं दूसरे राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितम्बर 1888 को तमिलनाडु के चेन्नई से 64 किलोमीटर दूर तिरूतनी गांव में हुआ था। इन्हे भारतीय संस्कृति के संवाहक, प्रख्यात शिक्षाविद एवं महान दार्शनिक के रूप में याद किया जाता है। नोबेल पुरस्कार के लिए इनका नामांकन कुल 27 (सत्ताईस) बार हुई थी। सन 1954 ईस्वी में भारत सरकार ने डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन को भारत रत्न से सम्मानित किया था। आइये जानते है इनके कुछ अनमोल विचार।
पुस्तकें वो साधन हैं, जिनके जरिये विभिन्न संस्कृतियों के बीच पुल का निर्माण किया जा सकता है।
केवल निर्मल मन वाला व्यक्ति ही जीवन के आध्यात्मिक अर्थ को समझ सकता है। स्वयं के साथ ईमानदारी आध्यात्मिक अखंडता की अनिवार्यता है।
उम्र या युवावस्था का काल-क्रम से लेना-देना नहीं है। हम उतने ही नौजवान या बूढें हैं जितना हम महसूस करते हैं। हम अपने बारे में क्या सोचते हैं यही मायने रखता है।
शांति राजनीतिक या आर्थिक बदलाव से नहीं आ सकती बल्कि मानवीय स्वभाव में बदलाव से आ सकती है।
हमें मानवता को उन नैतिक जड़ों तक वापस ले जाना चाहिए जहाँ से अनुशाशन और स्वतंत्रता दोनों का उद्गम हो।
ज्ञान के माध्यम से हमें शक्ति मिलती है। प्रेम के जरिये हमें परिपूर्णता मिलती है।
कोई भी आजादी तब तक सच्ची नहीं होती है, जब तक उसे पाने वाले लोगों को विचारों को व्यक्त करने की आजादी न दी जाये।
भगवान की पूजा नहीं होती बल्कि उन लोगों की पूजा होती है जो उनके नाम पर बोलने का दावा करते हैं।
शिक्षक वह नहीं जो छात्रों के दिमाग में जबरन ठूंसे, वास्तविक शिक्षक वह है जो अपने शिष्यों को आने वाले कल के लिए तैयार करें।
किताबें पढ़ने से हमें एकांत में विचार करने की आदत और सच्ची खुशी मिलती है।
शिक्षक दिवस विशेष: सुपर 30 के संस्थापक आनंद कुमार से सम्बंधित अनजाने तथ्य