Home त्योहार और संस्कृति ऐतिहासिक धरोहर सुल्तान पैलेस (परिवहन भवन) अब बनेगा हेरिटेज होटल

ऐतिहासिक धरोहर सुल्तान पैलेस (परिवहन भवन) अब बनेगा हेरिटेज होटल

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पटना के वीरचंद पटेल पथ स्थित सुल्तान पैलेस को राज्‍य की नीतीश सरकार हेरिटेज होटल के रूप में विकसित करने जा रही है। इसके पहले यहां चल रहे राज्य पथ परिवहन निगम के मुख्यालय को अन्‍यत्र स्थानांतरित किया जाएगा। मंगलवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में संपन्‍न राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में यह बड़ा फैसला लिया गया। इसके साथ अब उम्‍मीद है कि स्थापत्य कला के नायाब नमूना इस हवेली की पुरानी रौनक लौट आएगी।

बिहार में देश की कई ऐतिहासिक धरोहरें हैं। यहां के किले, हवेलियां और महल स्थापत्य कला के नायाब नमूने हैं। अनदेखी के कारण वक्त के साथ इनमें कई की चमक-दमक कम हो गई है। लेकिन अब इनके दिन बहुरने वाले हैं। पटना के वीरचंद पटेल पथ स्थित ‘सुल्तान पैलेस’ को पांच सितारा हेरिटेज होटल में तब्दील करने की कवायद के साथ इसकी शुरुआत हो रही है। मंगलवार को बिहार कैबिनेट की बैठक में इसे स्‍वीकृति दी गई।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार की ऐतिहासिक धरोहरों को निखारने के निर्देश दिए हैं। मुख्‍यमंत्री मानते हैं कि बिहार में हेरिटेज पर्यटन की बड़ी संभावनाएं हैं। इन संभावनाओं पर काम करने की जरूरत है। सुल्तान पैलेस इसकी पहली कड़ी है। यह काम पर्यटन और परिवहन विभाग संयुक्त रूप से करेंगे।

सौ साल पहले 22 लाख में बनी हवेली

सुल्तान पैलेस करीब-करीब सौ साल का हो चुका है। इसका निर्माण 1922 में सर सुल्तान अहमद ने कराया था। वे पटना हाईकोर्ट के पूर्व जज और पटना विश्वविद्यालय के पहले भारतीय कुलपति थे। करीब 10 एकड़ में निर्मित इस हवेली के वास्‍तुकार अली जान थे। इसकी अद्भुत नक्काशी प्रसिद्ध कारीगर मंजुल हसन काजमी ने की थी।

सजावट में पश्चिमी स्थापत्य कला की उत्कृष्टता दिखती है। हालांकि, इंडो-सारसेनिक शैली में बनी इस हवेली में सुल्तान अहमद ने मुगल व राजपूत शैलियों को खास जगह दी। सर सुल्‍तान अहमद ने इसके बनाने में पैसा पानी की तरह बहाया। उस जमाने में इसके निर्माण में 22 लाख रुपये खर्च हुए थे।

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हवेली के पिछले हिस्‍से में महिलाओं के लिए जनाना महल बनवाया गया तो आगे का भाग पुरुषों के लिए बनाया गया। निर्माण में सफेद संगमरमर का खूब प्रयाेग किया गया। इसके मुख्य हॉल व डाइनिंग रूम की छत व दीवारों की नक्काशी में 18 कैरेट सोने का उपयोग किया गया। उपरी मंजिल पर जाने के लिए बनाई गई नक्काशीदार सीढ़ी के लिए लकड़ी बर्मा से मंगाई गई।

इसकी दीवारों को फूल-पत्तियों की चित्रकारी से सजाया गया। नक्काशी पर हल्‍के पीले रंग का उपयोग किया गया। दरवाजों और रोशनदानों में लगाए गए रंगीन शीशे विदेशों से मंगाए गए।

सजती थीं गीत-संगीत की महफिलें

सर सुल्तान अहमद कला के बड़े कद्रदान माने जाते थे। उस वक्‍त शास्त्रीय संगीत की प्रसिद्ध गायिका बेगम अख्तर ने कहा था कि जिसने सुल्तान अहमद के सामने अपनी कला का प्रदर्शन नहीं किया, वह कलाकार नहीं। कहना न होगा कि सुल्तान पैलेस में गीत-संगीत के तत्‍कालीन बड़े कलाकारों की महफिलें सजतीं थीं। यहां के मुख्‍य हॉल में उस्ताद अलाउद्दीन खां, उस्ताद बिस्मिल्लाह खांए अब्दुल करीम खां, रसूलन बाई, रौशन आरा बेगम, गिरजा देवी व उस्ताद फैयाज खां आदि की महफिलें सजतीं रहतीं थीं।

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लेकिन वक्‍त एक समान नहीं रहता। सर सैयद सुलतान अहमद इसके अपवाद नहीं रहे। आजादी के बाद उनकी वकालत की आय कम होती गई। स्थिति यहां त‍ि‍ बिगड़ी कि बढ़ते ख़र्च ने उन्हें सुल्तान पैलेस छोड़ने को मजबूर कर दिया। वे जहानाबाद स्थित अपने पुश्तैनी घर चले गए, जहां 27 फ़रवरी 1963 को उनका देहांत हो गया।

स्रोत- जागरण समाचार

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