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नालंदा विश्वविद्यालय में किसने लगाई आग: खिलजी का प्रकोप या ब्राह्मणों का षड्यंत्र?

नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना का इतिहास , विध्वंश का प्रमाण और इतिहास , social media पर viral वैचारिक मतभेद का कारण :

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 जून को नालंदा विश्वविद्यालय के नए कैंपस का उद्घाटन किया। उन्होंने लगभग 15 मिनट तक 1600 साल पुराने प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहर का दौरा किया। इसके बाद प्रधानमंत्री प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय पहुंचे और उसके नए स्वरूप को देश को समर्पित किया। लेकिन इस अवसर पर, देशभर में लेफ्ट लॉबी ने इसके विध्वंस को लेकर सोशल मीडिया पर बहस छेड़ दी कि आखिर नालंदा विध्वंस का जिम्मेदार कौन था: ब्राह्मण या खिलजी?
नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास
नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना पांचवीं शताब्दी ईस्वी में गुप्त काल (Gupta Era) के दौरान हुई थी। यह विश्वविद्यालय 427 ईस्वी में सम्राट कुमारगुप्त प्रथम द्वारा स्थापित किया गया था। 12वीं शताब्दी तक, यानी 800 से अधिक वर्षों तक यह विश्वविद्यालय संचालित होता रहा। नालंदा विश्वविद्यालय प्राचीन और मध्यकालीन मगध काल में एक प्रसिद्ध बौद्ध महाविहार था। यह दुनियाभर में बौद्ध धर्म का सबसे बड़ा शिक्षण केंद्र था।

नालंदा विश्वविद्यालय में करीब 10 हजार छात्र पढ़ते थे, जिनके लिए 1500 अध्यापक थे। अधिकतर छात्र एशियाई देशों जैसे चीन, कोरिया, जापान, भूटान से आने वाले बौद्ध भिक्षु थे। वे मेडिसिन, तर्कशास्त्र, गणित और बौद्ध सिद्धांतों का अध्ययन करते थे। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने 7वीं शताब्दी में नालंदा की यात्रा की थी और बाद में इस विश्वविद्यालय में एक विशेषज्ञ प्रोफेसर के रूप में कार्य किया था। ह्वेन त्सांग ने नालंदा की शिक्षा, पुस्तकालय, और वहां के वातावरण का विस्तृत वर्णन किया है।

नालंदा विश्वविद्यालय में तीन मुख्य पुस्तकालय थे: रत्नसागर, रत्नोदधि और रत्नरंजक। ये पुस्तकालय अत्यंत समृद्ध थे और इनमें लाखों पुस्तकें थीं। नालंदा विश्वविद्यालय के पुस्तकालयों में बौद्ध धर्म, तंत्र, वेद, दर्शन, व्याकरण, और आयुर्वेद के साथ-साथ विज्ञान और गणित के विषयों पर भी पुस्तकें थीं।

नालंदा विश्वविद्यालय का विध्वंस: कारण और प्रमाण
नालंदा विश्वविद्यालय का विध्वंस 12वीं शताब्दी में हुआ था। 1193 ईस्वी में तुर्की शासक बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय पर हमला किया और उसमें आग लगा दी। कहा जाता है कि विश्वविद्यालय में इतनी पुस्तकें थीं कि पुस्तकालय में आग तीन महीने तक धधकती रही। खिलजी ने अनेक धर्माचार्यों और बौद्ध भिक्षुओं को मार डाला था। इतिहासकारों के अनुसार, बख्तियार खिलजी ने अपनी बीमारी के उपचार के लिए नालंदा विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विभाग के प्रमुख आचार्य राहुल श्रीभद्रजी को बुलवाया था और शर्त रखी थी कि वह हिंदुस्तानी दवाई का सेवन नहीं करेगा।

आचार्य राहुल श्रीभद्र ने कुरान के कुछ पृष्ठों पर एक दवा का अदृश्य लेप लगा दिया था, जिसे खिलजी ने चाट लिया और ठीक हो गया। इसके बाद, उसने नालंदा विश्वविद्यालय को जलाकर तहस-नहस कर दिया। खिलजी के इस कृत्य के पीछे कई कारण माने जाते हैं, जिनमें धार्मिक असहिष्णुता, शिक्षा का विरोध, और सांस्कृतिक धरोहरों को नष्ट करने की प्रवृत्ति शामिल है।

सोशल मीडिया पर विध्वंस को लेकर वैचारिक मतभेद
नालंदा विश्वविद्यालय के विध्वंस के कारणों पर इतिहासकारों और विद्वानों के बीच मतभेद है। हालांकि, अधिकांश स्रोतों में खिलजी का जिक्र मिलता है, लेकिन कुछ इतिहासकार इसे ब्राह्मणों से जोड़कर भी देखते हैं। इस विषय पर सोशल मीडिया पर भी बहस छिड़ी हुई है। कुछ लोगों का मानना है कि विश्वविद्यालय का विध्वंस ब्राह्मणवादियों ने किया था, क्योंकि वे बौद्ध धर्म के बढ़ते प्रभाव से नाराज थे। विभिन्न स्रोतों के हवाले से ज्ञात होता है कि बौद्ध और ब्राह्मण भिक्षुओं के बीच कई मौकों पर हाथापाई हुई थी।

इस वैचारिक मतभेद का एक कारण यह भी है कि कुछ इतिहासकार मानते हैं कि ब्राह्मणों ने 12 वर्षों तक यज्ञ किया और यज्ञ कुंड के जलते हुए अंगारों को बौद्ध मंदिरों में फेंका था। इससे विश्वविद्यालय की अत्यंत समृद्ध और विशाल पुस्तकालय, जिसे रत्नबोधि कहा जाता था, जलकर राख हो गई थी। इन मतभेदों के चलते नालंदा विश्वविद्यालय के विध्वंस के पीछे की सच्चाई को लेकर अलग-अलग धारणाएं बनी हुई हैं।

हालांकि, ऐतिहासिक साक्ष्य और प्रमुख इतिहासकारों की मान्यताओं के अनुसार, बख्तियार खिलजी का हमला ही विश्वविद्यालय के विनाश का प्रमुख कारण था। इसके बावजूद, सोशल मीडिया पर यह बहस जारी है कि इस विध्वंस के पीछे असली जिम्मेदार कौन था।

नालंदा विश्वविद्यालय के पुनरुद्धार की आवश्यकता
इतिहास के पन्नों में विश्वविद्यालय के विध्वंस के कारण चाहे जो भी रहे हों, यह स्पष्ट है कि नालंदा विश्वविद्यालय भारतीय शिक्षा और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण केंद्र था। इसके पुनरुद्धार की आवश्यकता आज भी महसूस की जा रही है।

नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा विश्वविद्यालय के नए कैंपस का उद्घाटन इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह न केवल हमारे गौरवशाली अतीत की याद दिलाता है, बल्कि भविष्य के लिए शिक्षा के एक नए केंद्र की भी स्थापना करता है।

विश्वविद्यालय की आधुनिक पुनर्स्थापना का विचार पहली बार 2006 में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रस्तुत किया था। इसके बाद, 2010 में भारतीय संसद ने नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए एक अधिनियम पारित किया। 2014 में, विश्वविद्यालय का पहला सत्र शुरू हुआ और इसमें विभिन्न एशियाई देशों से छात्र शामिल हुए।

आधुनिक नालंदा विश्वविद्यालय का उद्देश्य प्राचीन विश्वविद्यालय की तर्ज पर शिक्षा और अनुसंधान को बढ़ावा देना है। यहां पर बौद्ध अध्ययन, इतिहास, पर्यावरण अध्ययन, और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों जैसे विषयों पर विशेष ध्यान दिया जाता है।

नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और शैक्षिक धरोहर है। इसका विध्वंस चाहे बख्तियार खिलजी के हाथों हुआ हो या किसी और के, यह स्पष्ट है कि नालंदा विश्वविद्यालय भारतीय शिक्षा और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण केंद्र था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा विश्वविद्यालय के नए कैंपस का उद्घाटन और इसके पुनरुद्धार का प्रयास एक सराहनीय कदम है। यह हमारे गौरवशाली अतीत की याद दिलाता है और भविष्य के लिए एक नए शिक्षा केंद्र की स्थापना करता है।

विश्वविद्यालय के पुनरुद्धार के साथ, यह महत्वपूर्ण है कि हम अपने इतिहास से सीखें और अपनी सांस्कृतिक धरोहरों को संरक्षित करें। शिक्षा और अनुसंधान के क्षेत्र में विश्वविद्यालय की आधुनिक पुनर्स्थापना एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है और इससे हमें अपने गौरवशाली अतीत को पुनः जीवित करने का अवसर मिलता है।

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