Home पॉलिटिक्स जम्मू-कश्मीर के हालात बदतर, फ़िलहाल आपात जैसी स्थिति

जम्मू-कश्मीर के हालात बदतर, फ़िलहाल आपात जैसी स्थिति

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जम्मू-कश्मीर में 5 अगस्त को लगी धारा 144 और अनुच्छेद 370 में संसोधन का असर फ़िलहाल कायम है। राज्य के हालात पर फ़िलहाल कोई बड़ी बदलाव नहीं आई है। संचार और यातायात के साधन ठप्प पड़े हुए है। दवाओं के किल्लत के कारण मरीज़ों की स्तिथि भी दयनीय होते जा रही है।

बकौल BBC हिंदी

BBC हिंदी के एक रिपोर्ट के अनुसार सुरक्षा बल राज्य में भय का माहौल बनाने में लगे हुए है। कई लोगो को बिना वजह गिरफ्तार कर लिया गया है। इनमे बच्चे भी शामिल है। वही मारपीट और गोलाबारी की ख़बरें आम हो गई है। राज्य में सुरक्षाबलों और आम नागरिको के बीच झड़पों में तेजी आई है। इन झड़पों में मरनेवाले लोगों की संख्या में में वृद्धि की खबरे भी आ रही है।

राज्य के हालात

अनुच्छेद 370 में संसोधन के बाद राज्य के नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया है। इससे नेतृत्वविहीन जनता में अराजकता और भय का माहौल व्याप्त हो गई है। साथ ही लोग राजमर्रा के कामों के लिए भी बाहर निकलने से कतरा रहे है। सबसे अधिक दयनीय स्तिथि बुजुर्गों और बच्चों की है। दूसरी ओर, सरकार राज्य की हालात सामान्य होने की बात कह रही है। लेकिन तमाम विश्वसनीय मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार जम्मू-कश्मीर के हालात अतिचिन्तनीय है।

जम्मू-कश्मीर के हालात पर सरगर्मिया

पूर्व नियोजित योजना के अनुरूप, अनुच्छेद 370 लागू होने के बाद से ही बाहरी नेताओं को जम्मू-कश्मीर में प्रवेश पर रोक लगा दी गई। इसके साथ ही मीडिया संस्थानों की गतिविधियों पर भी रोक लगा दिया गया। इंटरनेट और मोबाइल कनेक्टिविटी पर भी रोक लगा दी गई। सरकार के इन कार्यों के वजह से राज्य का बाकी हिस्सों से संपर्क टूट सा गया। इस संसोधन के खिलाफ आमजनता में एक आक्रोश उभर आया, जिसे दबाने के लिए सरकार बल प्रयोग से भी नहीं हिचकी। लेकिन विपक्ष ने इसका पुरजोर विरोध किया। इसे तानाशाही और हिटलरशाही की संज्ञा भी दी गई। लेकिन सरकार फ़िलहाल टस से मस नहीं हुई है। सरकार अपने फैसले पर अडिग है।

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अनुच्छेद 370 और 35A पर विवाद क्यों

दरअसल ये अनुच्छेद जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देते है। 35A के प्रावधानों के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर से बाहर का कोई भी व्यक्ति राज्य में जमीन नहीं खरीद सकता। इस अनुच्छेद की वजह से अनेक उद्योगपतियों को राज्य में व्यवसाय करने में दिक्कतें आ रही थी। हम सभी जानते है कि भाजपा की छवि अल्पसंख्यक विरोधी और उद्योगपति-हितैषी की रही है। फ़िलहाल यही साबित होती है कि सरकार ने मुट्ठीभर उद्योगपतियों के दवाब में यह फैसला लिया है।

सुप्रीम कोर्ट का मामले पर नज़र

बीतें 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर में धारा 144 लगाई गई थी। तब से वहां के हालात गृहयुद्ध जैसी बनी हुई है। इस मामले में अनेक समाजसेवियों ने सुप्रीम कोर्ट को भी अवगत कराया है। मामले पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश रंजन गगोई ने कहा कि यदि जरूरत पड़ी तो मैं खुद जम्मू-कश्मीर जाऊंगा। साथ ही उन्होंने जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट से राज्य के वर्त्तमान हालात पर रिपोर्ट तलब की है। केंद्र द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट के अनुसार किसी के भी हताहत होने की संभावना नहीं है। हालांकि कुछ बंदिशे लगाई गई है।

राज्य के स्तिथि को देखते हुए निकट दिनों में भी हालात सामान्य होने के आसार नज़र नहीं आ रहे है। ऐसा भी कहा जा रहा है कि इस बिगड़ी कानून व्यवस्था का फायदा चरमपंथी उठा सकते है।

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