संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजीजू ने हाल ही में घोषणा की है कि सात बार के सांसद भर्तृहरि महताब को लोकसभा स्पीकर प्रोटेम स्पीकर (अस्थायी अध्यक्ष) नियुक्त किया गया है। यह निर्णय महत्वपूर्ण है क्योंकि प्रोटेम स्पीकर का दायित्व नव-निर्वाचित सांसदों को शपथ दिलाना होता है। उनके सहयोग के लिए एक पैनल भी बनाया गया है, जिसमें विभिन्न राजनीतिक दलों के वरिष्ठ नेता शामिल हैं। इस पैनल में कांग्रेस के के. सुरेश, द्रमुक के टीआर बालू, भाजपा के राधा मोहन सिंह और फग्गन सिंह कुलस्ते, और तृणमूल कांग्रेस के सुदीप बंद्योपाध्याय सम्मिलित हैं।
विपक्ष के लोकसभा स्पीकर प्रत्याशी से एनडीए की चुनौतियाँ
लोकसभा चुनावों के परिणाम घोषित होने के बाद से ही विपक्ष ने लोकसभा स्पीकर के पद के लिए अपनी रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। इंडिया गठबंधन के नेता, जिनमें जदयू प्रमुख और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और टीडीपी के चंद्रबाबू नायडू शामिल हैं, ने अपने सहयोगियों से आग्रह किया कि वे लोकसभा स्पीकर का उम्मीदवार खड़ा करें। हालांकि, जब यह रणनीति सफल नहीं हुई, तो दोनों दलों ने स्पष्ट कर दिया कि वे एनडीए के उम्मीदवार का समर्थन करेंगे। इसके बावजूद, विपक्ष सरकार के द्वारा डिप्टी स्पीकर और प्रोटेम स्पीकर के पदों पर लिए गए फैसलों से नाराज है। ऐसी स्थिति में, विपक्ष का लोकसभा स्पीकर पद के लिए उम्मीदवार उतारना लगभग तय है, जिससे संसद में शक्ति परीक्षण की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
लोकसभा में शक्ति परीक्षण की संभावनाएँ
यदि विपक्ष लोकसभा स्पीकर के पद के लिए अपना उम्मीदवार उतारता है, तो यह संसद में शक्ति परीक्षण की स्थिति पैदा कर सकता है। इस स्थिति में मतदान आवश्यक हो जाएगा और इससे स्पष्ट हो सकेगा कि सत्ता पक्ष और विपक्ष के पास कितनी ताकत है। यह प्रक्रिया न केवल राजनीतिक गणित को परखेगी, बल्कि यह भी दिखाएगी कि संसद में सत्ता और विपक्ष के बीच वास्तविक समीकरण क्या हैं।
यह स्पष्ट है कि लोकसभा स्पीकर का चुनाव सिर्फ एक साधारण प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह विभिन्न दलों के बीच शक्ति संतुलन और रणनीतिक गठबंधनों का प्रतिबिंब भी है। इस चुनाव में सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के लिए महत्वपूर्ण दांव लगे हुए हैं, और यह देखना दिलचस्प होगा कि कौन सा दल अंतिम विजेता के रूप में उभरता है।
भर्तृहरि महताब का लोकसभा का अस्थायी अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति और इसके साथ जुड़ी घटनाएँ भारतीय लोकतंत्र के विभिन्न पहलुओं को उजागर करती हैं। यह न केवल संसद की कार्यप्रणाली को दर्शाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि राजनीतिक दल किस प्रकार से अपनी रणनीतियों को अमल में लाते हैं। लोकसभा स्पीकर के पद को लेकर विपक्ष और एनडीए के बीच चल रही खींचतान भारतीय राजनीति के जटिल और गतिशील स्वभाव को स्पष्ट रूप से सामने लाती है। आने वाले समय में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि यह शक्ति संतुलन किस दिशा में जाता है और इससे भारतीय लोकतंत्र पर क्या प्रभाव पड़ता है।
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