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टूट के कयासों पर जीतन राम मांझी का ‘फुलस्टॉप’, NDA में रहते हुए आवाज उठाते रहेंगे

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पटना: सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री और बिहार एनडीए घटक दल के नेता जीतन राम मांझी बीते कुछ दिनों से चर्चाओं में हैं. हम सुप्रीमो की ट्वीट्स ने सूबे का सियासी पारा बढ़ा रखा है. राजनीतिक गलियारों में ऐसी चर्चाएं हैं कि मांझी फ्लिप मार सकते हैं. वीआईपी सुप्रीमो मुकेश साहनी के बाद से कयासों को और हवा मिल रही थी. लेकिन बुधवार को मांझी ने खुद सभी कयासों पर फुलस्टॉप लगा दी है.

दरअसल, बुधवार को पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में हम अध्यक्ष ने ये स्पष्ट तौर पर कहा कि हम एनडीए में हैं और एनडीए में ही रहेंगे. एनडीए में रहते हुए गरीबों के मुद्दों पर हम अनुरोध पूर्वक आवाज उठाते रहेंगे. इस बात की जानकारी पार्टी के प्रदेश महासचिव और प्रवक्तता अमरेंद्र कुमार त्रिपाठी ने दी है.

इधर, हम प्रवक्ता दानिश रिजवान ने कहा कि मांझी पहले ही कह चुके हैं कि वो आखिरी सांस तक नीतीश कुमार के साथ रहेंगे. ऐसे में खयाली पुलाव पकाने वाले और मुख्यमंत्री बनने का सपना देखने वाले नींद से जग जाएं. बिहार की जनता ने मुख्यमंत्री के तौर पर नीतीश कुमार को चुना है और वो ही जनता की सेवा करेंगे. किसी को जन्मदिन और सालगिरह की बधाई दे देने से सत्ता नहीं डोलती. एनडीए पूरी तरह से इंटैक्ट है.

बदले-बदले हैं मांझी के तेवर

बता दें कि बीते कुछ दिनों से मांझी के तेवर बदले-बदले नजर आ रहे हैं. मांझी लगातार अपने ही सरकार पर सवाल उठा रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तक पर भी निशाना साधने से वे गुरेज नहीं कर रहे हैं. उनके इसी रवैये से ऐसी चर्चाएं शुरू हो गईं थीं कि मांझी पाला बदल सकते हैं. मांझी के इस रवैये को देखते हुए बीते दिनों आरजेडी नेता ने कहा था कि इस मानसून एनडीए की नैया डूबने वाली है.

इधर, लॉकडाउन के बीच पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाए जाने के बाद सूबे की राजनीति में बड़े उलटफेर की आशंका थी. लेकिन अब सभी आशंकाओं और कयासों पर फुलस्टॉप लग गया है. ध्यान देने वाली बात है कि जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी के पास केवल चार-चार विधायक ही हैं. लेकिन ये काफी महत्वपूर्ण हैं. संख्या बल थोड़ा भी इधर-उधर होने से सरकार गिर सकती है. यही वजह से है कि सदन में संख्या में कम होने के बावजूद मांझी और सहनी का सत्ता में रौब है. समय-समय पर दोनों अपनी बेबाक राय देते रहते हैं, जिससे सियासी पारा चढ़ जाता है.

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