बिहार की राजनीति में छोटे बड़े हर चुनाव के लिए एक अजीब से गहमागहमी की स्थिति रहती है। चाहे वह विधानसभा हो या लोकसभा, उपचुनाव में भी राजनीति अपने चरम पर रहती है। शायद इसीलिए कहा जाता है की बिहारियों के खून में बस राजनीती और आईपीएस के सपने होते है। बिहार में अगले वर्ष यानि 2020 में विधानसभा के चुनाव होने है, समय भी ज्यादा नहीं बचा है और सरगर्मी तेज़ी से बढ़ रही है। हाल ही में हुए उपचुनाव में वर्तमान सरकार के जाने के संकेत भी मिले है। ऐसे में कहना मुश्किल लग रहा है की बिहार विधानसभा 2020 का ये 20-20 मैच किसके पाले में जाएगी।
तीन फ्रंट पर लड़ाई की सुगबुगाहट
हाल में बिहार में हुए राजनीतिक गहमागहमी को देखकर यह लग रहा है की आने वाला विधानसभा चुनाव त्रिकोणीय होने की संभावना है। जहाँ एक ओर लालू यादव के जेल में होने की वजह से महागठबंधन की डोर कभी आपस में जुड़ नहीं पायी वहीँ अब बगावत के सुर भी उठने लगे है। दूसरी तरफ एनडीए के सहयोगी दल भी अन्य राज्यों में अलग अलग चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं, इसका बिहार की राजनीती पर असर होना लाजमी सा लगता है। दो फ्रंट की बात तो समझ में आती है परन्तु तेजी से पैर पसार रही पप्पू यादव की पार्टी को भी नाकारा नहीं जा सकता। ऐसे में महागठबंधन से टूटने वाली पार्टी का पप्पू यादव की पार्टी के साथ मिलकर आगामी विधानसभा में बिहार को तीसरे मोर्चे की लड़ाई दे सकती है।
लोकसभा चुनाव में बिहार में महागठबंधन में राजद की स्थिति
कुछ ही महीने पहले की बात है, जब लोकसभा चुनाव 2019 में महागठबंधन में शामिल राष्ट्रीय जनता दल खुद को सबसे मजबूत पार्टी मानती थी। चुनाव का परिणाम आया तो आरजेडी चारों खाने चित्त हो गयी थी। कुल मिलाकर महागठबंधन पूरी तरह फेल रहा। हालांकि कांग्रेस एक सीट जीतने में कामयाब रही थी। लोकसभा चुनाव 2019 का परिणाम आने के बाद से ही महागठबंधन में दरार आनी शुरु हो गयी थी।
महागठबंधन से टूटते दल, बिखरती मजबूती
हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) और लालू यादव की पार्टी आरजेडी के बीच सीएम पद को लेकर लगातार हो रहे तकरार के बाद हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के जीतनराम मांझी ने बीते दिनों एक एलान किया। इस एलान में एचएएम सुप्रीमो और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने कहा है कि वे बिहार-झारखंड में अकेले ही 2020 विधानसभा के चुनावी समर में लड़ेंगे।
बता दें कि पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के गठबंधन से अलग होने का मुख्य कारण लालू यादव के छोटे बेटे और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को आरजेडी की तरफ से बतौर अगले सीएम की दावेदारी के रूप में पेश किया जाना रहा। पूर्व सीएम मांझी का कहना था कि अगर अगले साल चुनाव में गठबंधन की सरकार बनती है तो वह मुख्यमंत्री के दावेदार होंगे। इसके बाद से ही महागठबंधन में बिखराव को लेकर अटकलें तेज हो गई थी। विपक्षी महागठवंधन में छोटी-बड़ी 6 पार्टियां शमिल थी। पूर्व सीएम के अलग होने के बाद अब विकासशील इंसान पार्टी वीआइपी के मुकेश साहनी के अलग होने की भी कवायद है।
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गौरतलब है कि बीते दिनों हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के जीतनराम मांझी और वीआइपी के मुकेश साहनी, जन अधिकार पार्टी जाप के पप्पू यादव से मिले थे। ऐसे में यह कयास लगाई जा रही है कि महागठबंधन से अलग होकर मुकेश साहनी सहित पूर्व सीएम मांझी, पप्पू यादव को विधानसभा चुनाव से पहले अपना समर्थन दे सकते है। बिहार में बीते अक्टूबर में बाढ़ पीड़ितों की मदद को लेकर के पप्पू यादव के दायरे काफी बढ़े हैं। अगर ऐसा हुआ तो बिहार में 2020 के विधानसभा चुनाव में त्रिशंकु मुकाबला देखने को मिल सकता है।