ये वही नेता हैं जो लोकसभा चुनाव से पहले बिहार की सियासत में महागठबंधन का मास्टरस्ट्रोक माने जा रहे थे क्योंकि इन्होंने एनडीए छोड़ महागठबंधन का दामन थाम लिया था। महज चंद महीनों में ऐसा क्या बदल गया कि ये तीनों नेता अब हाशिए पर पहुंच चुके है।
बिहार में 5 विधानसभा और एक लोक सभा की सीट पर उपचुनाव होने जा रहा है और इसके लिए 21 अक्टूबर को वोटिंग होगी। इलेक्शन कैंपेन में महागठबंधन की ओर से तेजस्वी यादव काफी सक्रिय नज़र आ रहे हैं क्योंकि 5 में से 4 असेंबली सीटों पर उनकी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के उम्मीदवार खड़े हैं। कांग्रेस भी एक विधानसभा और समस्तीपुर लोकसभा सीट पर चुनावी संघर्ष में टक्कर दे रही है और उनके नेता भी काफी सीरीयस दिख रहे हैं। इन सब के बीच महागठबंधन के ही तीन नेता हाशिये पर नज़र आ रहे हैं। हम यानि हिन्दुस्तान आवाम मोर्चा के अध्यक्ष जीतन राम मांझी, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा और विकासशील इंसान पार्टी के अध्यक्ष मुकेश सहनी सियासी तस्वीर में कहीं भी नहीं दिख रहे हैं।
महागठबंधन के मास्टरस्ट्रोक
बता दें कि ये वही नेता हैं जो लोक सभा चुनाव से पहले महागठबंधन के लिए मास्टरस्ट्रोक माने जा रहे थे क्योंकि ये सभी एनडीए छोड़ महागठबंधन का दामन थाम लिए थे। महज कुछ महीनों में ऐसा क्या हो गया कि ये तीनों ही नेता अब हाशिये पर चले गए हैं? गौरतलब है कि 2015 के बिहार विधान सभा चुनाव में इनकी बड़ी लोकप्रियता थी। इन नेताओं ने भी एनडीए अपनी पूछ कम होती देख लोकसभा चुनाव के पहले अपना दल बदल कर महागठबंधन के साथ हो लिए लेकिन, यहां भी कुछ ऐसा ही हुआ। इन तीनों नेताओं का साथ मिलने के बावजूद महागठबंधन लोकसभा चुनाव में चारों खाने चित हो गया।
जाहिर सी बात है कि इसके बाद इन तीनों नेताओं की महागठबंधन में भी पहले की तरह मान-सम्मान नहीं रही। इसके बाद बिहार की सियासत में इन्होंने भी तेवर दिखाने की कोशिश की और बिहार विधानसभा 2020 के चुनाव की तैयारी करने लगे और ज्यादा से ज्यादा सीटों पर अपनी दावेदारी ठोकने लगे। हालांकि यहां इनका तेवर किसी काम न आया, तेजस्वी यादव ने विधानसभा और लोकसभा उपचुनाव में इन तीनों ही दलों को एक भी सीट नहीं दी।
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दो दो हाथ आजमा रहे
बिहार की सियासत में इतने इग्नोरेन्स के बाद भी उपेन्द्र कुशवाहा तो चुप रहे, लेकिन जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी ने खुल कर तेजस्वी यादव का विरोध किया और मनमानी करने का आरोप लगा दिया। मांझी ने तो नाथनगर से अपने उम्मीदवार उतार कर दो दो हाथ आजमा लेने की जेहमत उठाई। बावजूद इसके इन्हें तवज्जो नहीं मिली, खबरों की माने तो आरजेडी और कांग्रेस इन तीनों नेताओं को अब और भाव नहीं देगी।
राजद नेता मृत्युंजय तिवारी इन तीनों नेताओं को इशारों ही इशारों में उनकी हैसियत बता रहे हैं। उनका कहना हैं कि जितना मान सम्मान इन्हें महागठबंधन में मिला उसके बावजूद राजद के ख़िलाफ़ उम्मीदवार उतार कर इन्होंने राजनीति की मर्यादा को गाली दी है।
ज्ञात हो कि हाल ही में राम मनोहर लोहिया की पुण्यतिथि पर महागठबंधन में शामिल दलों के नेता एक मंच पर इकट्ठा हुए थे, लेकिन वहां भी रिश्तों में गर्मजोशी नही दिखी। हम पार्टी के प्रवक्ता विजय यादव ने आरोप लगाते हुए कहा कि तेजस्वी यादव बीजेपी से मिल कर महागठबंधन को कमज़ोर कर रहे हैं। दूसरी ओर इन नेताओं की सियासी स्थिति को देखते हुए जेडीयू के प्रवक्ता संजय सिंह ने कहा कि तीनों नेता राजनीतिक रूप से किसी के भी सगे नहीं है। न तो नीतीश कुमार के और न ही लालू यादव के, यही कारण है कि बिहार की राजनीति में अब ये लोग अप्रासंगिक होने लगे हैं।