महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह का गुरुवार को पटना मेडिकल कॉजेल एवं अस्पताल (पीएमसीएच) में हो गया। उनके शव गुरुवार को पटना से संध्या 5:50 बजे पैतृक गांव सदर प्रखंड आरा के बसंतपुर लाया गया। शुक्रवार को पूर्वाह्न में स्थानीय महुली गंगा घाट पर राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। बता दे कि गुरुवार को पटना से शव के पैतृक गांव पहुंचने से पहले हीं घर पर मंत्री जय कुमार सिंह व पूर्व मंत्री राघवेंद्र प्रताप सिंह के अलावा जिलाधिकारी रोशन कुशवाहा एवं पुलिस अधीक्षक सुशील कुमार पहुंचे गए थे। शव के पहुंचने पर उनके दर्शनार्थ वहां भारी भीड़ उमड़ पड़ी। शुक्रवार सुबह से भी वहां लोगों का तांता लगा रहा।
गुरुवार को पीएमसीएच में हुई थी मौत
वशिष्ठ नारायण सिंह 40 सालों से ‘सिजोफ्रेनिया’ बीमारी से पीड़ित थे। गुरुवार की सुबह तबीयत खराब होने पर उन्हें पीएमसीएच ले जाया गया, जहां उनकी मौत हो गई। आज से 26 साल पहले जब इनकी पहचान हुई थी तो पटना से दिल्ली तक के अखबारों में वशिष्ठ बाबू सुर्खियों में रहें थे। और एक कल का वक्त था जब पीएमसीएच कैम्पस के बाहर स्ट्रेचर पर वशिष्ठ बाबू की डेड बॉडी पड़ी थी। अनके भाई इधर-उधर एम्बुलेंस के लिए भटक रहे आग्रह कर रहे लेकिन अस्पताल प्रशासन एक एम्बुलेंस देने में सक्षम नहीं। एम्बुलेंस न देने की बात मीडिया में फैल गई । यहाँ तक की न्यूज़ चैनल पर भी PMCH के एम्बुलेंस देने से इंकार की बात बताई गई ।फिर लगभग दो घंटे बाद एम्बुलेंस मिला ।
प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, व मुख्यमंत्री ने श्रद्धांजलि अर्पित की
बिहार के इस अनमोल रत्न के निधन पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राज्य्पाल फागू चौहान तथा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सहित केंद्र व राज्य के अनेक मंत्रियों व नेताओं ने श्रद्धांजलि दी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पटना के उनके घर पर पहुंचकर पार्थिव शरीर पर माल्यार्पण भी किया।
वशिष्ठ नारायण सिंह से जुड़ें कुछ रोचक तथ्य
2 अप्रैल 1946 : जन्म।
1958 : नेतरहाट की परीक्षा में सर्वोच्च स्थान।
1963 : हायर सेकेंड्री की परीक्षा में सर्वोच्च स्थान।
1964 : इनके लिए पटना विश्वविद्यालय का कानून बदला। सीधे ऊपर के क्लास में दाखिला। बी.एस-सी. आनर्स में सर्वोच्च स्थान।
8 सितंबर 1965 : बर्कले विश्वविद्यालय में आमंत्रण दाखिला।
1966 : नासा में।
1967 : कोलंबिया इंस्टीट्यूट ऑफ मैथेमैटिक्स का निदेशक।
1969 : द पीस आफ स्पेस थ्योरी विषयक तहलका मचा देने वाला शोध पत्र (पी.एच-डी.) दाखिल। बर्कले यूनिवर्सिटी ने उन्हें “जीनियसों का जीनियस” कहा।
1971 : भारत वापस।
1972-73: आइआइटी कानपुर में प्राध्यापक, टाटा इंस्टीट्यूट आफ फंडामेंटल रिसर्च (ट्रांबे) तथा स्टैटिक्स इंस्टीट्यूट के महत|