कांग्रेस की प्रदेश चुनाव समिति ने बुधवार को ही बैठक में यह फैसला लिया कि उपचुनाव में पार्टी महागठबंधन की बजाय अकेले मैदान में उतरेगी। पार्टी के इस फैसले की जानकारी बैठक के बाद प्रभारी सचिव वीरेंद्र सिंह राठौर ने देते हुए कहा था कि सभी 5 विधानसभा सीटों के लिए उम्मीदवारों का पैनल केंद्रीय आलाकमान को भेजा जाएगा।
बैठक में क्या हुआ?
बिहार प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल और प्रदेश अध्यक्ष मदन मोहन झा की मौजूदगी में प्रदेश चुनाव समिति की बैठक हुई थी। इस बैठक के बाद बिहार नेतृत्व ने जो फैसला लिया उसका मकसद पार्टी को टूट से बचाना था। दरअसल चुनाव समिति की बैठक में हालात ऐसे बन गए थे कि अगर कांग्रेस का प्रदेश नेतृत्व आरजेडी के साथ चुनाव लड़ने का फैसला करता तो पार्टी का अंदरूनी कलह टूट तक बढ़ सकता था।
कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक लगभग 30 सदस्यों वाली चुनाव समिति में लगभग 18 से 20 सदस्य ऐसे थे जो आरजेडी के साथ गठबंधन का विरोध कर रहे थे। अकेले चुनाव लड़ने के फैसले का समर्थन निखिल कुमार, सदानंद सिंह जैसे वरीय नेताओं के साथ-साथ अनिल शर्मा और अमिता भूषण जैसे नेताओं ने किया। इन की राय थी कि पार्टी को अपने दम पर उपचुनाव में उतरना चाहिए।
महागठबंधन में टूट से बचने के लिए मजबूरी का फैसला
अशोक राम और कौकब कादरी जैसे नेता यह चाहते थे कि पार्टी आरजेडी का साथ ना छोड़े बल्कि उपचुनाव महागठबंधन के साथ लड़ा जाए। शक्ति सिंह गोहिल और मदन मोहन झा ने बारीकी से चुनाव समिति के हालात को समझा और फिर बहुमत के आधार पर यह फैसला हुआ कि पार्टी अपने दम पर चुनाव में उतरे हालांकि कांग्रेस की परंपरा के मुताबिक फैसले का अधिकार केंद्रीय आलाकमान को दे दिया गया।
अब दिल्ली में होगा खेल
कांग्रेस उपचुनाव अकेले लड़ेगी या फिर आरजेडी के साथ, इसका फैसला अब सोनिया गांधी करेंगी। जानकार बताते हैं कि प्रदेश चुनाव समिति की बैठक में चुप्पी साधे रखने वाले कई नेता अब दिल्ली में सेटिंग का असली खेल खेलेंगे। दिल्ली दरबार में रसूख रखने वाले इन नेताओं की कोशिश होगी कि किसी भी हालत में आरजेडी से गठबंधन नहीं टूटे। पिछले लोकसभा चुनाव में बिहार के अंदर महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले नेता बुधवार को बैठक में एक्सपोज तो नहीं हुए लेकिन लालू परिवार के करीबी होने का हक दिल्ली दरबार में जरूर अदा करेंगे। दिल्ली के खेल में अहमद पटेल की बड़ी भूमिका होगी।
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लालू को इग्नोर नहीं कर पाएंगी सोनिया
प्रदेश चुनाव समिति की सिफारिश पर अंतिम फैसला कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को लेना है। सोनिया गांधी राष्ट्रीय राजनीति को ध्यान में रखकर फैसला लेंगी। उन्हें पता है कि कांग्रेस के लिए फिलहाल बीजेपी के खिलाफ लड़ाई में किन-किन सहयोगीयों की जरूरत पड़ेगी। सोनिया खुद लालू यादव के बेहद करीब रही हैं। वह यह बात कभी नहीं भूलेंगी कि जब बीजेपी ने उन पर विदेशी होने का आरोप लगाते हुए हमला किया था तब लालू पहले शख्स थे जो उनके बचाव में उतरे।
उपचुनाव में गठबंधन रहे या फिर पार्टी अकेले चुनाव लड़े इस पर फैसला लेने के पहले सोनिया यह जरूर देखेंगी कि पार्टी की स्थिति जमीनी तौर पर कितनी मजबूत है। कांग्रेस अध्यक्ष का फोकस इस बात पर भी होगा कि गठबंधन के साथ चुनाव लड़के कांग्रेस किशनगंज की सेटिंग सीट बचा ले। ऐसे में यह आसान नहीं लगता कि कांग्रेस आरजेडी से अलग होकर चुनाव मैदान में उतरेगी।