एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला जिसे हम सोनपुर मेला के नाम से भी जानते हैं। इस मेला में हम अपने समृद्ध विरासत को समेटे हुए है। प्राचीनकाल से लगनेवाले इस मेले का रूप 21वीं सदी में भले ही कुछ बदला है, लेकिन महत्व आज भी वही है। करीब 20 वर्ग किलोमीटर में फैले इस मेले की भव्यता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मेले के एक छोर से दुसरे छोर तक घूमते- घूमते लोग भले ही थक जाए लेकिन उत्सुकता खत्म नहीं होती है। इस मेले को हरिहर क्षेत्र मेला और चत्तर मेले के नाम से भी जाना जाता है।
सोनपुर मेला से संबंधित पौराणिक कथाएं
पुराणों के अनुसार एक बार एक हाथी (गज) और मगरमच्छ ( ग्राह ) के रूप में दो शापित आत्मा धरती पर उत्पन्न हुए थे। एक बार जहाथी पानी पीने के लिए कोनहरा नदी के तट पत आया तो अचानक मगर ने उसे जकड़ लिया। हाथी ने अपने आपको छुड़ाने की काफी कोशिश की लेकिन विफल रहा और कई वर्षो तक वो उस ग्राह से छुटकारा पाने के लिए लड़ता रहा। हार मानने के बाद उस गज से पुरी श्रद्धा से भगवान विष्णु को याद किया।
प्राचीनकाल में इसी क्षेत्र में एक बार ऋषि मुनियों का एक विशाल सम्मेलन आयोजित हुआ था। उस सम्मेलन में शैव और वैष्णव दोनों जातियों के बीच मन्दिर को लेकर विवाद हो गया था, जिसे बाद में सुलझाया गया। उसके बाद से यहा भगवान शिव और भगवान विष्णु दोनों की मूर्तियों को इस मन्दिर में स्थापित किया हुआ। इसी उपलक्ष्य में यहां कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर विशाल पशु मेला का प्रतिवर्ष आयोजन होता है।
जानें किसने किया इस साल सोनपुर मेला का उद्घाटन
एक महीने तक चलने वाले इस मेले का उद्घाटन बीते रविवार यानि 10 नवम्बर को इस साल किया गया है। इस मेले का उद्घाटन खुद उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने किया है। अनुमान के मुताबिक इस वर्ष 25 लाख से अधिक लोगों के मेले में पहुंचने का अनुमान है। आने वाले लोगों को किसी प्रकार की परेशानी न हो इसलिए जिला प्रशासन और मेला प्राधिकार लगातार चौकसी बरत रहे हैं।
स्वर्णिम इतिहास के बावजूद इस विश्व प्रसिद्ध सबसे बड़े पशु मेला में बीते कुछ वर्षों से बदलाव देखा जा रहा है। एक जमाने में यह मेला हाथियों का सबसे बड़ा केंद्र था, लेकिन कई सालों से इस मेला में हाथियों की संख्या में काफी कमी आयी है। मेले में पक्षियों और कुत्तों से भी बाजार भी गुलजार रहता है। विभिन्न प्रजातियों के कुत्ते यहां एक हजार से 30,000 रुपये तक के मूल्य में आसानी से उपलब्ध होते हैं।
आधुनिकता के रंगों में सरोबोर सोनपुर मेला
आश्चर्य की बात है कि विश्व के सबसे बड़े पशु मेला में पशुओं की संख्या में लगातार कमी आ रही है, लेकिन इस मेला में पशुओं की जगह अब थिएटर, नौटंकियां लेने लगी है। यह मेला थियेटरों, नौटंकियों तथा कई मीना बाजारों में आधुनिक गीतों से सरोबोर रहने लगी है। थियेटरों के कारण शाम होते ही मेले की रौनक बढ़ जाती है। एक दौर में सोनपुर मेले में नौटंकी की मल्लिका गुलाब बाई का जलवा होता था।
इतना ही नहीं इस मेला में पशुओं के अलावा दुकानों और खेल-तमाशे के कार्यक्रमों की भी भरमार हो गई है। इस मेला में ग्रामीण जीवन के सुख-दुख तो नजर आ ही रहे हैं साथ ही आधुनिकता के रंग भी दिख रहे हैं। विदेशियों के लिए यह मेला विशेष आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।
समय के बदलते प्रभाव के असर से हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला, पशु बाजारों से हटकर अब आटो एक्स्पो मेले का रूप लेता भी लेता जा रहा है। पिछले कई वर्षों से इस मेले में कई कंपनियों के शोरूम तथा बिक्री केंद्र यहां खुल रहे हैं। मेले में रेल ग्राम प्रदर्शनी लगी। रेलग्राम में टॉय ट्रेन चलाई जा रही है। सोनपुर मेले के प्रति विदेशी पर्यटकों में भी खास आकर्षण देखा जाता है। जर्मनी, अमेरिका, फ्रांस एवं अन्य विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए स्विस कॉटेजों का निर्माण किया जाता है।
किवंदंतियों के मुताबिक सोनपुर मेले से ही मौर्यवंश के संस्थापक चंद्रगुप्त ने एक साथ 500 हाथी खरीदकर सेल्यूकस को भेंट किए थे। कहा जाता है कि आखिरी मुगल सम्राट बहादुरशाह ज़फर ने भी एक सफेद हाथी यहीं से खरीदा था।
सोनपुर मेला से जुड़ें कुछ रोचक तथ्य
- सोनपुर मेला देश का सबसे पुराना मेला माना जाता है।
- यह एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला हो।
- सोनपुर का मेला एकमात्र ऐसा मेला है जहा बड़ी संख्या में हाथियों की बिक्री होती है।
- इस मेला के बारे में ऐसा माना जाता है कि यहा सुई से लेकर हाथी तक उपलब्ध रहता है।
- 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के लिए बाबू वीर कुंवर सिंह ने इसी मेले से अरबी घोड़े , हाथी और हथियारों का संग्रह किया था।
- सिख ग्रंथो में यह जिक्र है कि गुरु नानक यहा आये थे । बौद्ध धर्म के अनुसार अपने अंतिम समय में महात्मा बुद्ध इसी मार्ग से होकर कुशीनगर की ओर गये थे जहा उनका महापरिनिर्वाण हुआ था।
- सोनपुर की इस धरती पर हरिहरनाथ मन्दिर दुनिया के इकलौता ऐसा मन्दिर है जहा हरि (विष्णु ) तथा हर (शिव) की एकीकृत मूर्ति है। इस मन्दिर के बार में कई धारणाएं प्रचलित है।
- यहा कभी अफ़गान, ईरान, ईराक जैसे देशों से लोग पशुओ की खरीददारी करने आते थे।
- महान मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य ने भी इसी मेले से बैल ,घोड़े ,हाथी और हथियारों की खरीददारी की थी।
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