Home क्राइम बिहार में अपराध या अपराध में बिहार, खास पेशकश, विशेष श्रृंखला, भाग-2

बिहार में अपराध या अपराध में बिहार, खास पेशकश, विशेष श्रृंखला, भाग-2

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बिहार में अपराध की बढ़ती घटनाएं एक बार फिर हम बिहार वासियों को 20 साल पीछे मुड़कर देखने पर मजबूर कर रही है। बिहार अपने राजनितिक विचारों की वजह से हो या फिर कोई अन्य वजह, यहां के राजनेताओं एवं आमजन की क्रियाकलाप की वजह से ये राज्य हमेशा से चर्चा में रहा है। यह देखा गया है कि कोई भी बड़ी राजनितिक बदलाव बिहार कि धरा से ही आरम्भ होती है।

पार्ट 1 – बिहार में अपराध या अपराध में बिहार

बात चाहे गांधी की उत्थान की हो या जयप्रकाश के सम्पूर्ण क्रांति का, बिहार की धरा ने हमेशा देश को एक नयी दिशा-दशा दी है। साथ ही अपने ऐतिहासिक विरासत से समृद्ध बिहार ने अनेक प्रतिभाशाली सपूतों को जन्म दिया है, जिन्होंने हमारे राज्य का नाम देश-विदेश में रौशन किया है। बिहार में अपराध

अपराधियों के आगे नतमस्तक सरकार

फिलहाल बिहार पुनः अपने राजनेताओं के गलत बयानबाजी के कारण चर्चा में है। और वो राजनेता कोई और नहीं, बिहार के मुख्यमंत्री श्री नितीश कुमार है। महज दो दिन पहले ही बिहार चैंबर ऑफ कॉमर्स के सभागार में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए नीतीश कुमार ने सूबे में बढ़ते अपराध पर बेतुका बयान देते हुए कहा था कि अपराध तो लोगों के स्वभाव में है, किसी को रोक नहीं सकते हैं। कौन जानता है कि किसका कब क्या होगा? मुख्यमंत्री ने कहा कि जो चिंता नहीं करेगा वो बुलंदी पर जाएगा। गड़बड़ करने वाले का अपना स्वभाव है। आप किसी को रोक नहीं सकते हैं। कुछ गड़बड़ करने वाले आदमी हर जगह रहते ही हैं।

इसी के साथ बिहार में अपराध पर तीखी नोंक-झोंक के साथ राजनितिक बयानबाजी आरम्भ हो गई। पलटवार करते हुए नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने ट्विटर पर लिखा कि “बिहार में चहुँओर हाहाकार, हत्या, दुराचार, चीत्कार, बलात्कार, शहर में दहशत, गांव में ख़ौफ़, दिन में औसतन 50 मर्डर, सीएम मस्त, क़ानून व्यवस्था पस्त। मुख्यमंत्री जी, अपराधी आपको खुली चुनौती दे रहे है। पितृपक्ष आने वाला है अपने डिप्टी सुशील मोदी से अपराधियों को विनती करवा दिजीए।”

अपराधियों से सरकार की गुहार

आपको बताते चले कि पिछले वर्ष 24 सितंबर को बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशिल कुमार मोदी ने गया में अपराधियों से हाथ जोड़कर बेतुकी अपील की थी कि पितृपक्ष में अपराध न करें। सुशील मोदी ने कहा था कि, मैं अपराधियों से भी हाथ जोड़कर आग्रह करूंगा कि कम से कम पितृपक्ष में छोड़ दीजिए। बाकी दिन तो आप कोई मना करे न करे, कुछ न कुछ करते रहते हैं और पुलिस वाले लगे रहते हैं। लेकिन कम से कम ये 15-16 दिन, ये जो धार्मिक उत्सव है इस उत्सव में कोई एक काम ऐसा न करिए जिससे बिहार की प्रतिष्ठा, गया जी की प्रतिष्ठा को नुकसान हो और यहां आने वाले लोगों को शिकायत करने का मौका मिले।

किसी राज्य के मुखिया का इस तरह का बेतुका बयान राज्य के छवि को धूमिल करती है। उनके बयान में शामिल “जो चिंता नहीं करेगा वो बुलंदी पर जाएगा” शब्द नितीश कुमार के मंशा पर सवाल उठा रही है। जानकारों का कहना है कि लम्बे समय से सत्तासीन होने की वजह से नितीश कुमार का रवैया एक तानाशाह की तरह होती जा रही है। इस तरह की बयानबाजी नितीश कुमार की हताशा और तानाशाह रवैये को दर्शाती है।

सुशासन की खुलती पोल

इन सबके साथ ही बिहार कि कानून व्यवश्था और अपराध पर जनमानस में चर्चा की विषय बन गई है। हाल फिलहाल में कई ऐसी आपराधिक वारदातें हुई है जो सरकार की कानून व्यवस्था एवं सुशासन की पोल खोलती नज़र आती है। तो आइए हम बिहार में अपराध के कुछ आधिकारिक आंकड़ों पर नज़र दौड़ाते है।

हमने इन आंकड़ों के लिए बिहार पुलिस के आधिकारिक वेबसाइट की मदद ली। जहाँ बिहार के विभाजन पश्चात् की जानकारी उपलब्ध थी। इस आलेख के लिखे जाने तक मई 2019 तक के आंकड़े बिहार पुलिस द्वारा उपलब्ध कराइ गई है। हम यहां वर्ष 2018 तक के अपराध का आंकलन कर रहे है। बिहार पुलिस के अनुसार वर्ष 2001 में बिहार में घटित कुल संज्ञेय अपराध की संख्या 95942 थी, जो वर्ष दर वर्ष बढ़ती गई।

Comparative Crime Data of Bihar from 2001 to 2018

यह आंकड़ा 2004 में 1 लाख को पार कर गई। वर्ष 2005 में अपराध में कुछ कमी आई। तत्पश्चात इसमें निरंतर वृद्धि होती गई। वर्ष 2018 में संज्ञेय अपराध के कुल संख्या 2 लाख को पारकर 262802 हो गई। इस वर्ष मई, 2019 तक संज्ञेय अपराधों की कुल संख्या 1 लाख को पार कर चुकी है। ऐसा अनुमान जताया जा रहा है कि बिहार में अपराध की जो रफ़्तार है। यदि यह उसी रफ़्तार से बढ़ती रही तो यह जल्द ही 3 लाख के आंकड़े को पार कर लेगी।

जंगलराज नहीं तो और क्या

विभाग द्वारा, आधिकारिक आंकड़ों में कुछ मामलो का क्षेत्रवार आंकड़ा भी दिया गया है, जिसका अध्ययन करने पर हम पाते है कि लूटपाट, छिनतई जैसे घटनाओं में धीरे-धीरे ही सही, कमी होती जा रही है। वही चोरी, अपहरण जैसे मामलों में तेजी देखी जा रही है।बलात्कार के मामले भी 2001 की तुलना में करीब दोगुने हो चुके है। जहाँ 2001 में ह्त्या के कुल 3619 मामले दर्ज हुए थे, वही, 2018 के आखिर में यह घटकर 2933 हो गई है।

बिहार में आपराधिक घटनाओं में लगातार वृद्धि हुई है। इस बात को स्वयं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी कई बार माना है। यही वजह रही है कि बिहार सरकार कानून-व्यवस्था को लेकर सरकार कठघरे में खड़ी है। ग्राउंड लेवल की आंकलन बतलाती है कि आमजन में सत्ता के प्रति 2005 में जगी ललक अब मद्धिम होती नज़र आ रही है। अनेक, मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने भी बिहार सरकार को फटकार लगाईं है।

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पिछले वर्षों उजागर हुई शेल्टर होम जैसी अमानुषिक घटना बिहार में सरकारी-तंत्र एवं कानून व्यवस्था की पोल खोलने को काफी है। क्रूरतम सांस्थानिक अपराध का बाहर आना राज्य के साथ-साथ लोकतान्त्रिक व्यवस्था के माथे भी धब्बा है। राज्य में बेख़ौफ़ अपराधी सरकारी तंत्र को मुंह चिढ़ाते नज़र आती है। साथ ही, बिहार के मुखिया भी अपराधियों से अपील कर पुलिस के मनोबल को तोड़ने का काम कर रही है।

आपको बताते चले की नितीश कुमार नीत राजग लगातार राजद के 1990 से 2005 के शासनकाल को जंगलराज बताते आई है। आधिकारिक आंकड़ों को ही आधार मानकर कानून-व्यवस्था का आंकलन करने पर पाते है कि तमाम उपायों के बावजूद बिहार की कानून व्यवस्था आज भी अपराधियों के सामने लाचार है। तमाम उपायों के बावजूद नितीश सरकार कानून-व्यवस्था को सुधारने में विफल रही है।

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