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लॉकडाउन में पिता को मुखाग्नि देने देहरादून से पहुंची बिहार की बेटी, डीएम ने की मदद

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देश आज विश्वव्यापी संकट कोरोना वायरस महामारी से जूझ रहा है. कोरोना के बढ़ते प्रकोप को कम करने के लिए देशभर में लॉकडाउन है. इस लॉकडाउन के बीच कुछ ऐसी खबरें आ रही हैं जो समाज के दृष्टिकोण से काफी अच्छा हैं. कुछ ऐसा ही किस्सा बिहार के सुपौल से आया है. जहां, एक बेटी ने समाज की देन कहे जाने वाले बेटा और बेटी के फर्क को मिटाते हुए न सिर्फ अपने पिता का पहले अंतिम संस्कार किया, बल्कि उनके अंतिम यात्रा को सुखद बनाने के लिए देहरादून से सुपौल पहुंच गयी. यह बात सुनने में साधारण लगती है, लेकिन इस लॉकडाउन और कोरोना कहर के मद्देनज़र बहुत बड़ी है.

लॉकडाउन में लौटी बिहार

बता दें कि बिहार के सुपौल में जन्मी योग्यता ने शहर के वार्ड नंबर दस निवासी समाजसेवी और अपने पिता अश्विनी कुमार सिन्हा के निधन बाद उन्हें मुखाग्नि दी. उत्तराखंड के देहरादून में पेट्रोलियम इंजीनियरिंग की शिक्षा ग्रहण कर रही योग्यता को पिता के निधन बाद वहां के डीएम ने घर भेजने में मदद की. लॉकडाउन के कारण सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर बेटी ने अपने पिता का अंतिम संस्कार किया और कोरोना कहर को लेकर समाज में श्राद्ध का भोज न करने का निर्णय लिया.

अपने पिता की 3 संतानों में सबसे बड़ी है योग्यता

अपने पिता के निधन से व्यथित योग्यता ने कहा कि पिता की इच्छा पूरी करने और पारिवारिक जिम्मेदारी संभालने में कसर नहीं रखेगी. योग्यता के चाचा नलिन जायसवाल बताते हैं कि 17 अप्रैल को जब योग्यता के पिता का निधन हुआ तो वह देहरादून में थी और देश में लॉकडाउन था. तीन बहनों में रिया और आकांक्षा से योग्यता बड़ी है. उसका घर आना जरूरी था. स्थानीय जिलाधिकारी से गुहार लगाने के बाद उन्होंने गाड़ी और गार्ड की व्यवस्था कर दी.

गौरतलब है कि 18 अप्रैल की देर रात दो बजे वो घर पहुंची और 19 अप्रैल को उसके पिता का अंतिम संस्कार हुआ. नलीन जयसवाल बताते हैं कि अब देश बदल रहा है औऱ लोगों की सोच भी. अब तो बेटे औऱ बेटी में कोई फर्क नहीं है क्योंकि बेटियां आज हर वो मुकाम हासिल कर रही हैं, जो एक बेटा कर सकता है. पिता का श्राद्ध करने वाली योग्यता बताती हैं कि अब तो बेटियां कहां किसी बेटे से कम हैं.

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