वैसे तो बिहार रोज़गार के मामले में निचले पायदान पर है, परन्तु बिहार में हाल ही के दिनों में कुछ रोज़गार के अवसर बहुत तेज़ी से बढ़े हैं। इतनी तेज़ी से कि आप कल्पना भी नही कर सकते। धन्यवाद है बिहार सरकार का, जिन्होंने बिना मदद किये ही ऐसे रोजगारों से बिहार के लोगों को एक मौका दिया है। रोज़गार भी ऐसे जिससे आप पलक झपकते ही सफलता की सीढ़ी चढ़ सकते हैं।
हालांकि इस तरह के फटाफट रोज़गार में थोडा रिस्क है, परन्तु बिना रिस्क के तो कोई भी काम पूरा नही होता ना साहब। अगर आपको जल्दी अमीर बनना है तो थोड़ी सी जान पहचान और हिम्मत से आप भी क्षण भर में अपने सपनो का महल तक बना सकते हैं। आप सब सोच रहे होंगे की आखिर कौन सा ऐसा रोज़गार के अवसर है जिससे बिहार के लोग इतनी अच्छी आमदनी कर रहे हैं या कर सकते हैं। तो आइये आपको रूबरू कराते हैं, बिहार में फलीभूत हो रहे गोरखधंधे से।
शराब होम डिलीवरी
अप्रैल 2016 में हुई संपूर्ण शराब बंदी से पहले जहाँ आपको शराब खरीदने के लिए नजदीकी शराब की दूकान पर जाना होता था, वही अब आपको कही जाने की जरुरत नही, बस एक फ़ोन पर होम डिलीवरी की सुविधा उपलब्ध है। हालांकि पहले जहाँ शराब की कीमत उसपे छपे मूल्य के अनुसार होता था वही अब लगभग 2-3 गुना ज्यादा देना होता है।
पिछले लगभग 5 वर्षो में अन्य रोज़गार के अवसर को पीछे छोड़ते हुए सबसे तेजी से उभरे शराब होम डिलीवरी के रोज़गार ने अन्य सभी रोज़गार को पीछे छोड़ दिया है। इतना पीछे की आप इस कारोबार में लगे लोगों का टर्नओवर एक साथ मिला ले तो देश की जानी मानी ई-कॉमर्स कंपनी के टर्नओवर को भी पीछे छोड़ दे। थोड़े से गोखिम और नजदीकी थानों से परिचय आपको इस कारोबार में ढेर सारे लाभ दे सकती है।
जल्दी और आसान तरीके से कमाना किसे अच्छा नही लगता। कानून के रक्षको के भी घर-परिवार, बाल-बच्चे हैं, जिनकी परवरिश और पढाई-लिखाई में हो रहा खर्च सिर्फ सैलरी से कर पाना मुश्किल होता होगा। इसलिए आलम ये है कि अब इन कानूनों के रखवालों ने भी इसे अपना लिया है। हाल ही में प्रदेश के अखबारों ने इसे प्रमुखता से जगह भी दी थी।
शराब डिलीवरी करने वालो में युवा और बच्चे भी शामिल होते हैं। उन्हें भी अपने खर्चे या गर्लफ्रेंड को घुमाने के लिए एक मोटी रकम चाहिए होती है। इसके लिए डिलीवरी बॉय बनने से जल्दी और आसान तरीका और कुछ भी नहीं।
इस कारोबार में शामिल लोगों के जीवन में अद्भुत बदलाव आया है। लगभग २-३ साल मे ही उन्होंने अपने और परिवार के लिए काफी धन इक्कठा कर लिया है। उनका शराबबंदी पर लगे कानून का भी डर लगभग समाप्त हो गया है। थोड़े से पैसे हर महीने सम्बंधित थानों को देकर यह रोज़गार आसानी से किया जा रहा है। इस कारोबार में लिप्त एक व्यक्ति ने अपने लिए राजधानी में कई मंजिला मकान भी बना लिया। शायद एक सामान्य सरकारी व्यक्ति अपने लिए छत की जुगत में अपनी पूरी जिंदगी लगा देता हो और फिर भी उसकी यह आस पूरी होगी या नहीं इसकी कोई गारंटी नही है। हाँ लेकिन अगर आप इस कारोबार में शामिल होते है तो गारंटी पक्की है।
धन्यवाद हो बिहार सरकार का, वाकई बढ़ रहा है बिहार।
रोज़गार के अवसर में नशे का कारोबार
बिहार में शराब बंद होने के बाद दुसरे सबसे बड़े रोज़गार के अवसर में है सुखा नशा। सुखा नशा से अभिप्राय है गांजा। बियर खोलने वाले लोगों में यह नशा तेज़ी से फैला है। पहले जहाँ यह नशा कुछ लोगों तक सीमित था, अब यह लगभग हर दुसरे मोड़ पर उपलब्ध है। सस्ते और आसानी से मिलने के कारण यह युवाओ में बहुत ही पोपुलर है। हालाँकि यह पहले से भी चलन में रहा है परन्तु इसकी बिक्री शराबबंदी के बाद से बहुत तेज़ी से बढ़ने लगी है।
आलम तो यह है की बिहार के गांजे की क्वालिटी के चर्चे पुरे देश में हो रही है। इस कारोबार से भी ढेर सारे पैसे कमाए जा रहे हैं। हर दुसरे चौराहे पर कोई न कोई पान दुकान, चाय दूकान में यह आसानी से उपलब्ध है। तेज़ी से बढ़ते इस व्यापार में भी थोडा रिस्क और जानकारी तो चाहिए होती है। फिर वही बात है साहब बिना रिस्क के आप तेज़ सफलता नही प्राप्त कर सकते।
नौकरी चाहिए तो संपर्क होने हैं जरुरी
बिहार में नौकरी के नाम पर ठगी के वारदात बहुत सारे हैं। पहले जहाँ एडमिशन करवाने वाले कंसल्टेंसी की भीड़ जमी होती थी वही अब सरकारी नौकरी लगाने वालो की जमात है। सरकार द्वारा निकाले जा रहे वेकेंसी में अप्लाई करने वाले बेरोजगार युवाओं की संख्या दिनोदिन बढती जा रही है। साथ ही बढ़ रहा है नौकरी दिलाने का कारोबार।
अब संविदा पर निकलने वाले नौकरियों में भी अगर आपको स्थान पाना है तो आपके संपर्क अच्छे और ऊपर बैठे लोगों से होने चाहिए। वैसे इस कारोबार में संपर्क ज्यादा होने की जरुरत है, इस वजह से ज्यादा लोग इसमें संलिप्त नही हैं। लेकिन जितने भी लोग इसमें शामिल है वो काफी अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। एक साधारण संविदा की नौकरी जिसमे 15-25 हजार की तनख्वाह होती है, उसके लिए 1 से 2 लाख की डिमांड की जाती है। अगर आपको अच्छे पद की नौकरी चाहिए तो आप 40 से 50 लाख तक खर्च कर सर्विस कमिसन की नौकरी तक प्राप्त कर सकते हैं।
यह नौकरी दिलाने का कारोबार बहुत तेज़ी से बढ़ा है। बेरोज़गारी के कारण लोग भी कहीं से जुगाड़ कर अपना करियर बनाने में लगे हैं। हाल ही में मैं भी नौकरी की तलाश में कुछ लोगों से मिला। एक सविदा पर 20 हजार की नौकरी के लिए मुझसे 1.5 लाख की डिमांड की गयी। पर साहब उतने पैसे होते तो कोई पकोड़े की दूकान ही खोल कर रोजी रोटी कमा लेता। अब वैसे भी मोदी जी ने पकोड़े की दूकान को राष्ट्रीय स्तर का कारोबार जो बना दिया है। मरता क्या न करता, बेरोजगार लोग किसी तरह से अपने जीवन को सही रास्ते पर लाने की जुगत में हैं।
एके 47 की खोल सकते हैं दूकान
बिहार में सुशासन राज़ में तेज़ी से बढ़ रहे कारोबार में हत्या, लूट और राइफल कारोबारी की ढेर सारी वेकेंसी है। हिम्मत और नेटवर्क के माध्यम से इनमे संलिप्त लोग भी कम नही हो रहे हैं। हाल के कुछ वर्षो में हर दुसरे दिन हत्या की खबर अखबारों में प्रमुखता से मिल जाएगी। एके 47 जैसे हथियार का तो पूरा एक नेटवर्क तैयार है। बिहार के कई जिलो में मिल रहे इस हथियार की खबर तो आम हो गयी है। इस कारोबार में शामिल होने के लिए नेताओं से जान पहचान होना जरुरी है। अन्यथा पकड़े गये तो भगवान भरोसे।
बिहार में एके 47 तो ऐसे मिल रहा हैं जैसे कोई सब्जी के दूकान पर मिलने वाली गाजर-मूली। भिन्न-भिन्न जिलो में इसके कई नेटवर्क पकडे गये हैं और कितने ही अभी पांव पसार रहे होंगे इसकी कल्पना करना नामुमकिन है।
बात यह भी है की अगर पेट पालना है तो कुछ न कुछ तो करना होगा ना। दुसरे राज्यों से भगाए जाने और अपने ही राज्य में नौकरी न मिलने के चलते लोग इस तरह के गलत रास्तों पर चलने को मजबूर हैं। रास्ते तो और भी है परन्तु इन कारोबार में मुनाफा ज्यादा है। सरकार भी पिछले रास्तों से इनमे मदद कर रही है। कहने का तात्पर्य यह है कि, ना चाहते हुए भी सरकार कही न कही इसमें भागीदार है। राज्य में अच्छे कारोबारी कंपनियों के अभाव के कारण रोज़गार के अवसर उपलब्ध नही हैं। सरकार के पास भी इतनी वेकेंसी नही है। जहाँ है वहां दलालों का बोलबाला है।
ऐसे में युवा अगर फटाफट रोजगार न करे तो क्या करे?? इसलिए शिक्षा और नौकरी के अभाव में क्या ऐसे ही बढ़ता रहेगा बिहार?
पढ़िए इनसे जुड़े कुछ खबरों के बारे में
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AK-47 उगल रहे हैं मुंगेर के नदी-नाले
क्या बिहार सचमुच पूर्ण शराबबंदी की ओर है?
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