Home विशेष खबर आधुनिकता और भारतीय ज्ञान का समागम है नई शिक्षा नीति- प्रो. परासर

आधुनिकता और भारतीय ज्ञान का समागम है नई शिक्षा नीति- प्रो. परासर

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मानव संसाधन विकास मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक के नेतृत्व में उच्चतर शिक्षा व्यवस्था में प्रगति देश के लिए उपलब्धि रही है। वैश्विक महामारी के दौर में भी देश के शिक्षा व्यवस्था को एक वैकल्पिक दिशा और भविष्य में शिक्षण संस्थानों में तकनीक के प्रयोगों से छात्रों के प्रगति का मार्ग प्रशस्त करने का दृढ़संकल्प सबके लिए अनुकरणीय है। मानव संसाधन विकास मंत्री मंत्रालय संबंधी कार्य मे व्यस्त होने के बावजूद समय निकाल कर विद्यार्थियों और शिक्षकों से सीधा संवाद कर रहे हैं। जिससे कि आज के शैक्षणिक व्यवस्था को समझते हुए नई शिक्षा नीति को और सुदृढ़ बना सकें। इसके अलावा कौशल पूर्ण शिक्षा जो कि आज कि जरूरत बनी हुई है उसको पूरा करने का दायित्व अपने कंधों पर लिए हुई हैं। इसके अलावा शैक्षणिक गतिविधियों के साथ खेल-कूद को जोड़ने का काम किया है। उनके योजनापूर्ण सुधारों की छाया अब हमारे शैक्षणिक व्यवस्था पर दिखने लगी है।

मोदी जी के दूसरे कार्यकाल की प्रथम वर्ष की अवधि विशेष रूप से विश्वास, साहस और प्रतिबद्धता को समर्पित रही है। वर्तमान में राष्ट्र के आत्मनिर्भरता का नया नारा और संदेश उन्हें घोषित किया गया है। अपनी परिवर्तनकारी नीतियों, दृढ़ता एवं टीम इंडिया की भावना के साथ उनके नेतृत्व ने देश के लोकतंत्र को एक नई दिशा दी है। सरकार के प्रत्येक निर्णय में नागरिकों के विकास एवं राष्ट्रीय हित का अभूतपूर्व संयोजन देखा जा सकता है। ‘सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास’ के मंत्र के साथ आज देश विकास के समस्त आयामों के साथ कूच कर रहा है।

सरकार के महत्वपूर्ण निर्णयों में शिक्षा के क्षेत्र में सुधार भी प्राथमिकता के तौर पर शामिल है। सबके शैक्षणिक अवसरों को विस्तार प्रदान करने एवं उसे सुनिश्चित करने हेतु विभिन्न प्रयास आरंभ किए गये हैं। विशेषकर समाज के सभी वर्गों को शैक्षणिक अवसरों की उपलब्धता सुनिश्चित करना मुख्य है। कहा जाता है कि किसी भी राष्ट्र की निर्यात उसकी वर्ग कक्षाओं में तय होती है। इससे प्रेरित मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने नवीन शिक्षा नीति में  सुधारों का संकल्प लिया है। ‘सबको शिक्षा’ के उद्देश्यों के साथ मानव संसाधन विकास मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने इस दिशा में आवश्यक कदम उठाने शुरू कर दिए हैं।

शिक्षा के क्षेत्र को समृद्ध करने के लिए महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं। शिक्षा में गुणवत्ता सुधार हेतु ‘नेशनल इनिसिएटिव फॉर स्कूल हेड्स एडं टीचर्स हालिस्टिक एडवांसमेंट (निष्ठा) नामक योजना एक अगस्त, 2019 को आरंभ किया गया। शिक्षक प्रशिक्षण की इस समन्वित योजना के माध्यम से आधारभूत स्तर पर गुणवत्ता सुधार में बदलाव देखा जा सकता है। सहगामी विकास स्व-सुधार और शैक्षणिक संवृद्धि के उद्देश्य के साथ प्रशिक्षण योजनाओं पर 550 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं। केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के द्वारा 4600 सहभागी प्राचार्यों के लिए विभिन्न प्रशिक्षण योजनाओं का संचालन किया गया है। चार वर्षीय समन्वित शिक्षक प्रशिक्षण को प्रभावी तरीके से सुनिश्चित किया जा सके। इनमें प्रमुख रुप से शिक्षक प्रशिक्षण हेतु पंडित मदन मोहन मालवीय नेशनल, अकादमिक नेतृत्व संवर्धन हेतु एल ई. ए. पी. राष्ट्रीय रिफ्रेसर प्रोग्राम हेतु ए आर पी आई टी एवं परामर्श आदि विभिन्न योजनाएं शामिल हैं। इन योजनाओं की सरकार द्वारा सतत मूल्यांकन और समीक्षा एवं संचालन पर सजग रहने के कारण उच्चतर शिक्षा में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन को देखा जा सकता है। इन परिवर्तनों में मुख्य रुप से शामिल हैं- (1) योग्य शिक्षकों के प्रावधान को सुनिश्चित करना, (2) शैक्षणिक पेशा में योग्य लोगों को आकर्षित करना, (3) विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में शैक्षणिक गुणवत्ता को समृद्ध करना।

विभिन्न फ्लैगशिप योजनाओं जैसे धृव, दीक्षा आदि के अंतर्गत विद्यालयों एवं उच्चतर शिक्षा में अनेक नियुक्तियाँ की गई। मानव संसाधन विकास मंत्रालय के पोर्टल पर विद्यमान आंकड़े के अनुसार व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करने वाले विद्यालयों की संख्या 2015-16 में 3945 से बढ़कर 2019-20 में 11434 हो गई है। शैक्षणिक क्षेत्र में हो रहे सकारात्मक बदलाव का यह एक महत्वपूर्ण संकेत है। ‘पढ़े भारत और बढ़े भारत’ जैसे विभिन्न योजनाओं ने शैक्षणिक विस्तार को सकारात्मक दिशा दी है। बच्चों में पढ़ने की आदत को विकसित करने हेतु विद्यालयी पुस्तकालयों को सुदृढ़ करने के आवश्यक प्रयास किए गए हैं। 2019-20 में मंत्रालय ने विभिन्न कोटि के विद्यालयों के पुस्तकालय संवर्धन हेतु 711.64 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है। अल्पसंख्यकों हेतु विशेष रुप से शिक्षा के प्रसार हेतु मदरसों के लिए ‘स्पेय’ योजना लागू की गई है जिसके लिए 119.90 करोड़ रुपए का बजटीय प्रावधान किया गया है।

छात्रों के चतुर्दिक विकास को सुनिश्चित करने हेतु खेल एवं शारीरिक शिक्षा पर भी समान रुप से बल दिया गया है। इसके लिए ‘खेले इंडिया और खिले इंडिया एवं जीव कौशल’ योजनाओं को प्रभावी किया गया है। ज्ञान एवं शिक्षा के संप्रेषण हेतु एवं इनमें गति प्रदान करने के लिए कई फ्लैगशिप योजनाएं जैसे स्वंयम्, नीट, एनडीएल, ई-शोध, सिन्धु आदि लागू की गई हैं। उच्चतर शिक्षा में निजी क्षेत्र में बाद्ध व्यावसायिक ऋण एवं विदेशी प्रत्यक्ष निवेश का प्रावधान किया गया है। सरकार का उद्देश्य दूरवर्ती एवं ग्रामीण अंचलों तक शिक्षा एवं शैक्षणिक आधारभूत ढांचे को विस्तारित करने का है। इस दिशा में 15 केन्द्रीय विश्वविद्यालयों की स्थापना को महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा जा सकता है। इस प्रयास के सफल व्यवहारिक परिणाम के उदाहरण के रुप में गया में स्थापित दक्षिण बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय को देखा जा सकता है।

नई शिक्षा नीति में सरकार की प्राथमिकता है उच्चतर शैक्षणिक सुधार

एन सी ई आर टी और एम एच आर डी के पोर्टल पर उपलब्ध आंकड़ों से यह तथ्य भी स्पष्ट होता है कि सरकार के प्रयासों के कारण देश ने अनुसंधान के क्षेत्र में भी काफी प्रगति हुई है। 2015-16 में आई आई टी के द्वारा पैंटेट आवेदनों की संख्या 599 से बढ़कर 2019-20 में 726 हो गई है। दक्षिण बिहार केन्द्रीय विश्व विद्यालय जैसे नए केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में भी अकादमिक और अनुसंधानात्मक प्रगति उल्लेखनीय रही है। स्टार, इम्प्रेस, इर्मप्रिन्ट, स्पार्क एवं स्ट्राइड जैसी योजनाओं के माध्यम से विज्ञान एवं अन्य अनुशासनों में अनुसंधान एवं भारत केन्द्रित अनुसंधानों को प्रोत्साहित करने का प्रयास किया जा रहा है। इसके तहत नौ जवाहर नवोदय विद्यालयों, एवं 18 केन्द्रीय विद्यालयों की स्थापना को उदाहरण के तौर पर देखा जा सकता है। उच्चतर शिक्षा में ‘हेफा’ के अन्तर्गत 30 हजार करोड़ रुपए की उपलब्धता भी उल्लेखनीय है।

बच्चों के सर्वांगीण विकास हेतु कौशल एवं जागरूकता विविध लोकप्रिय योजनाओं जैसे ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ स्वच्छ भारत अभियान, फिट इंड़िया कैंपेन, नागरिक कर्तव्य पालन अभियान एवं जलशक्ति अभियान को सफलता विश्वविद्यालयों में संचालित किया गया है। प्रधानमंत्री की दूरदृष्टि परीक्षार्थियों की मानसिक उलझनों के समाधान तक भी जाती है। उनके द्वारा संचालित ‘परीक्षा पर चर्चा’ नामक कार्यक्रम से परीक्षार्थियों की मनोदशा को सीधे-सीधे लक्षित किया गया। इसका परिणाम अत्यंत सकारात्मक रहा। लड़कियों की शिक्षा में विस्तार और सुधार भी सरकार की उपलब्धियों में उल्लेखनीय रही है। लड़कियों की शिक्षा का सीधा संबंध लैंगिक समानता और उनके सशक्तिकरण से है। इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु लगभग 5930 कस्तुरवा गांधी बालिका विद्यालयों की स्थापना हुई है। यहाँ लड़कियों को आत्मरक्षा हेतु प्रशिक्षण भी दिया जाता है। स्कूली शिक्षा और उच्चतर शिक्षा को वैश्विक परिदृश्य से जोड़ने के लिए ‘स्टडी इन इंडिया’ योजना के तहत एशियन और अफ्रिकन देशों में ‘इंडसैट’ कार्यक्रम संचालित किया जा रहा है। भारत को विदेशी छात्रों के लिए एजुकेशन हब बनाने के उद्देश्य से डी आई ए एन, एशियान फेलोसिप एवं डी यू ओ इंडिया फेलोसिप जैसे कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।

रोजगार परक शिक्षा पर भी सरकार ने अपना ध्यान केन्द्रीत किया है। इसके लिए मार्च 2021 तक लगभग 150 उच्चतर शिक्षा केन्द्र अप्रेन्टसिप सहित डिग्री और डिप्लोमा पाठ्यक्रम संचालित करने जा रहा है। भारत के युवा वर्ग को कौशल और अवसरों से युक्त करने के उद्देश्य से 75 शैक्षणिक केन्द्रों के आधुनिकीकरण का लक्ष्य रखा गया है। इसके लिए 37000 करोड़ रुपए का बजटीय प्रावधान किया गया है। स्टार्ट-अप इंडिया कार्यक्रम के अन्तर्गत 27000 नए स्टार्ट-अप को मान्यता दी गई है। स्वरोजगार के प्रशिक्षण हेतु ‘राष्ट्रीय अप्रेन्टसिप प्रोमोसन स्कीम’ के तहत फंड उपलब्ध कराया जा रहा है।

आज कोविड-19 वैश्विक महामारी एवं इसके कारण राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की परिस्थिति ने शैक्षणिक प्रक्रिया एवं कार्यकलापों पर विराम लगा दिया है। मानव संसाधन विकास मंत्री श्री निशंक के अथक प्रयासों एवं उनके द्वारा निर्देशित फ्लैगशिप योजनाओं के तहत शिक्षक-शिक्षार्थी समुदाय को सक्षम बनाया जा रहा है। इसके लिए पी एस ई-विद्या और युक्ति जैसे वेब पोर्टल को स्थापित किया गया है। बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को सुदृढ़ करने की सामयिक आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए विभिन्न योजनाओं को समाहित कर ‘मनोदर्पण’ जैसे कार्यक्रम आरंभ किए जाते हैं।

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गौतम बुद्ध, स्वामी दयानन्द, राजा राम मोहन राय एवं ईश्वरचन्द्र विद्यासागर जैसे भारत में शिक्षा के अग्रदूतों का स्वप्न आज साकार होता हुआ दिख रहा है। हमारी शैक्षणिक योजन की मुख्य विशिष्टता समग्र विकास और सांस्कृतिक जड़ों के प्रति प्रतिबद्धता रही है। हमारी शिक्षा पद्धति आज सुखद परिवर्तनों से गुजर रही है। अंततः हम पुराने मॉडल के स्थान पर अपना एक स्वदेशी मॉडल स्थापित करने में सक्षम हो सकेंगे। जिसकी मुख्य विशेषता राष्ट्र निर्माण, राष्ट्रीय एकता, सांस्कृतिक पुनर्जागरण, सर्वसमावेशी शिक्षा, नैतिकता, व्यवहारिकता, समानता और सतत विकास की प्रतिबद्धता होगी। अंततः सार रुप में यह मॉडल नितांत भारतीय होगा जिसका एकमात्र उद्देश्य ‘भारतोदय’ होगा।

प्रोफेसर आतिश परासर, छात्र कल्याण अधिष्ठाता एवं विभागाध्यक्ष मीडिया विभाग, दक्षिण बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यायलय।

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