Sunday, December 22, 2024
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रामधारी सिंह दिनकर: बिहार की महकती बगिया के सबसे कीमती फूल

यूं तो इस जहां में प्रतिदिन करोड़ों लोग जन्म लेते हैं और अपनी ज़िंदगी जी कर चले जाते हैं, लेकिन कुछ लोग जन्म ही इसलिए लेते हैं कि वे अपने किरदार की महक इस धरा पर हमेशा के लिए छोड़ जाए। कुछ इन्हीं महान शख्सियतों में से एक थे रामधारी सिंह दिनकर

आज रामधारी सिंह दिनकर की 111 वीं जयंती है। इनका जन्म आज ही के दिन 1908 ई में बिहार के बेगुसराय जिला के एक छोटे से गांव सिमरिया में हुआ था। दिनकर जब 2 वर्ष के थे तो इनके पिता का स्वर्गवास हो गया। जिसके कारण इनका आगे का जीवन काफी संघर्षों से भरा रहा। दिनकर ने वर्ष 1928 में मैट्रिक की परीक्षा पास की। उसके बाद ये पटना विश्वविद्यालय से इतिहास, दर्शनशास्त्र और राजनीति विज्ञान में बीए किया। इन्होंने संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी और उर्दू का भी गहन अध्ययन किया। ये मुजफ्फरपुर कालेज में हिन्दी के विभागाध्यक्ष रहे। बाद के दिनों में ये भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति भी बनें। उसके बाद ये भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार बने।

राष्ट्रकवि की पहचान

बतौर राष्ट्रकवि अपनी पहचान रखने वाले रामधारी सिंह दिनकर के बारे में आपने पहले ही बहुत कुछ पढ़ा होगा। कभी उनकी जीवनी, कभी उनकी कविताएं, तो कभी उनकी लेखन शैली के बारे में। आज यहां इस लेख में मैं ऐसा कुछ नहीं लिख रही। खुद को बयां करने के लिए दिनकर ने इतनी रचनाएं दी हैं कि उनसे मिले बिना उनके बेहद करीब महसूस किया जा सकता है।

दिनकर ने अपनी प्रारंभिक कविताओं में क्रांति का उद्घघोष करके युवाओं में राष्ट्रीयता व देशभक्ति की भावनाओं का ज्वार फूंक दिया था। आगे चलकर इन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से लोगों में राष्ट्रप्रेम जगाने की पुरजोर कोशिश की। सत्ता के करीब होने के बावजूद भी दिनकर कभी जनता से दूर नहीं हुए। दिनकर का जनप्रेम और जनता के बीच उनकी लोकप्रियता किसी से छुपी नहीं है।

कविताओं में देश के हर कठिन परिस्थिति का वर्णन

देश की हर कठिन परिस्थिति को दिनकर ने अपनी कविताओं में उतारा है। एक ओर उनकी कविताओ में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रान्ति की पुकार है तो दूसरी ओर कोमल श्रृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति है। दिनकर की कविताओं का जादू आज भी उतना ही कायम है। दिनकर किसी एक विचारधारा का समर्थन नहीं करते थे। यही कारण है कि कवि हरिवंश राय बच्चन ने कहा था, दिनकर जी को एक नहीं बल्कि गद्य, पद्य, भाषा और हिंदी के सेवा के लिए अलग-अलग चार ज्ञानपीठ मिलने चाहिए थे। वर्तमान राजनीति में इनकी कविताओं की पंक्तिओं को खूब इस्तेमाल किया जाता है।

जन्मदिन विशेष- बिहार केशरी एवं प्रथम मुख्यमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण सिंह

1972 में ज्ञानपीठ पुरस्कार

गौरतलब है कि कवि दिनकर की पहली रचना ‘रेणुका’ 1935 में प्रकाशित हुई। तीन वर्ष बाद जब उनकी रचना ‘हुंकार’ प्रकाशित हुई, तो देश के युवा वर्ग ने उनकी कविताओं को बहुत पसंद किया। काव्य संग्रह उर्वशी के लिये 1972 के ज्ञानपीठ पुरस्कार सहित अनेक प्रतिष्ठित सम्मान और पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

दिनकर को साहित्य अकादमी पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार, पद्मविभूषण आदि तमाम बड़े पुरस्कारों से नवाजा गया। उन्हें पद्म विभूषण की उपाधि से भी अलंकृत किया गया था। दिनकर की चर्चित किताब संस्कृति के चार अध्याय’ की प्रस्तावना तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने लिखी है। इस प्रस्तावना में नेहरू ने दिनकर को अपना ‘साथी’ और ‘मित्र’ बताया है।

बिहार की धरती पर जन्म लेकर पूरे देश-दुनिया में बिहार को गौरवान्वित करने वाले रामधारी सिंह दिनकर जी के जन्मदिवस पर हमारी टीम की तरफ से उन्हें शत शत नमन।

स्टोरी- सुप्रिया भारती

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