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बिहार के हर घर की कहानी एक पिता की जुबानी

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“अभिषेक, एक मग पानी लाना बेटा”। बरामदे में गमलों को पानी देने के लिए एक मग पानी कम जो पड़ रहा था । पर जैसे ही आवाज़ लगाई, आभास हुआ कि घर में बस मैं और मेरी धर्मपत्नी जी ही थे। दो साल हो गए हैं उस बात को, फिर भी हर दिन, कम-से-कम एक बार ज़रूर, उस दिन की सारी बातें, दिमाग में, किसी फिल्म की तरह चलने लगती हैं।

क्या हुआ था दो साल पहले?

मेरे बेटे अभिषेक का BPSC इंटरव्यू का रिजल्ट आने वाला था । सुबह से ही उसके दोस्तों के कॉल्स आ रहे थे, रिजल्ट जानने के लिए। श्रीवास्तव जी तो सुबह दस बजे से ही घर आये हुए थे। T V पर  ETV बिहार चल रहा था। अभिषेक भी बार बार अपने कमरे में रखे कंप्यूटर में रिजल्ट देखने जाता, फिर आकर बताता कि अभी आयी ही नहीं है लिस्ट।

ये अभिषेक का BPSC का चौथा प्रयास था। पिछले 2 बार में ‘मुख़्य और इंटरव्यू ‘ के संयुक्त नंबर में दस और सत्रह नंबर कम पड़ गए थे । इस बार उम्मीद और घबराहट दोनों अपने चरम पे थी । अभिषेक को बचपन से ही पब्लिक सर्विसेज में जाने की इच्छा थी । उसके इसी जूनून ने उसे कॉलेज प्लेसमेंट में बैठने नहीं दिया था । जबकि उसके कॉलेज के करीबी दोस्त विकास और पिंटू ने कॉलेज से ही प्लेसमेंट ले लिया था और इंजीनियरिंग ख़त्म होते ही बैंगलोर की एक मल्टी नेशनल कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर के पद पर कार्यरत थे।

वैसे मुझे तो ये कतई नहीं सुहाता की बच्चे माँ-बाप से इतनी दूर रहकर नौकरी करें, पर जवान लड़के को घर में बैठै देख लगता था की शायद वही ज़्यादा सुखद हो। मैं कई बार गुस्से में अभिषेक को कह दिया करता था ‘ जाओ 2  पैसे कमाकर देखो‘। उसपर अभिषेक मुझे शांत करते हुए हमेशा यही कहता क़ि ‘हाँ पापा, SDM  बनकर दो पैसे भी कमाऊंगा, और सबलोग आपको मेरे नाम से जानेंगे भी। उसके विश्वास और आश्वासन से मेरा गुस्सा गायब हो जाया करता था।

बिहार से अभिषेक का प्रवास

‘और इस बार के BPSC topper  हैं …..’ 3 बजे दोपहर से T V पर BPSC टॉपर्स के नाम आने लगे। मैंने अभिषेक को आवाज़ लगाई, कोई जवाब नहीं आने पर धर्म पत्नी जी ने भी किचेन से पुकारा, बेटा पापा बुला रहे हैं। फिर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं आने पर मैं खुद ही उठकर अभिषेक के कमरे में गया। देखा क़ि कंप्यूटर पर BPSC रिजल्ट की फाइनल लिस्ट खुली हुयी है और अभिषेक सिर झुकाये, कुर्सी पर बैठा  है। उम्मीद टूट चुकी थी। मन लगाकर पढोगे नहीं तो लिस्ट में नाम कैसे आएगा, गुस्से में बरबराता हुआ मैं कमरे से बाहर आ गया था।

मुझे गुस्से में देखकर श्रीवास्तव जी और धर्मपत्नी जी ने रिजल्ट का अंदाजा लगा लिया था। उसके बाद से अभिषेक का कमरा अंदर से बंद हो चूका था। जब शाम में उसका दोस्त संजीव घर आया, तभी अभिषेक कमरे से बाहर आया था। आँखें सूजी हुयी और चेहरा मायूस था। ‘Tension  क्यों लेता है, इंजीनियर है भाई तू’ कहते हुए संजीव ने अभिषेक की पीठ थपथपाई थी।

रात को डाइनिंग टेबल पर मैंने घर में पसरा सन्नाटा ख़त्म करते हुए कहा ‘ठीक ही तो कह रहा था संजीव, इंजीनियरिंग की डिग्री तो तुम्हारे पास भी है, तुम्हे भी तो विकास और पिंटू की तरह कोई-न-कोई नौकरी मिल ही सकती है। आखिर कब तक घर पे बैठोगे? इस बार अभिषेक ने कोई जवाब नहीं दिया था पर उसके चेहरा सवालिया ज़रूर था।

अगले ही दिन अभिषेक ने बैंगलोर की तत्काल टिकट निकलवा ली थी। बैंगलोर जाकर उसने कोई ट्रेनिंग की थी वहां और फिर विकास की ही कंपनी में उसे सॉफ्टवेयर इंजीनियर के पद पर रख लिया गया था।

पता नहीं क्यों?

इस बात को २ साल  से ज़्यादा हो चुके हैं, उसकी सैलरी भी अब बढ़ गयी है। अब अभिषेक के कमरे में रौनक केवल होली और दीपावली में होती है। बस यही सब सोचते हुए मैंने एक मग पानी लाकर गमलों में दे दिया है। पर पता नहीं क्यों, हर रोज़ शाम के वक़्त जब मैं और मेरी धर्मपत्नी जी बरामदे में चाय पीते हैं, और कॉलोनी के बच्चे हाथ में बैट और बॉल लेकर अपने-अपने घर को लौटते हैं, तब ऐसा लगता है कि हाथ में प्रतियोगिता दर्पण लिए हुए अभिषेक भी अपने कमरे में लौट आएगा।

क्या लगता है आपको कि अभिषेक को बैंगलोर की अपनी अच्छी खासी जॉब को छोड़कर, बिहार अपने घरवालों के पास लौट आना चाहिए? क्या अभिषेक के माता- पिता को भी बैंगलोर चले जाना चाहिए, अगर हाँ, तो क्या वो वहां वैसा ही महसूस करेंगे जैसा वो बिहार में रहकर करते हैं?

आज बिहार की ऐसी हालत क्यों?

ना जाने अभिषेक जैसे कितने ही युवा अपने घर, परिवार से दूर देश या विदेश के किसी शहर में नौकरी करते हैं। क्या कारण है की जो नौकरी बंगलौर, मुंबई और दिल्ली जैसे शहरों में है वो बिहार के किसी शहर में नहीं। याद कीजिये ये वही बिहार है जिसने दुनिया को ज्ञान का मार्ग दिखाया, ये वही बिहार है जहाँ की धरती से निकलकर आर्यभट, महावीर, गौतम बुद्ध जैसे विद्वानों ने पूरी दुनिया को नई राह दिखाई। फिर आज बिहार की ऐसी हालत क्यों?

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