गत दिनों भाजपा-जदयू में छिड़ी जुबानी जंग के बाद बिहार की राजनीति में एक गर्माहट सी आ गई है। आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र राजनेताओं में चूहे-बिल्ली का खेल जारी है। तुलनात्मक रूप से, भाजपा-जदयू के नेतागण विपक्ष से अधिक मुखर नज़र आ रहे है। ध्यान देने की बात ये है कि इस तरह के जुबानी हमले के क्या मायने रखते है। आख़िरकार, इस तरह की जुबानी जंग बिहार की राजनीती में क्या रंग ला सकती है। आइये, हम कुछ घटनाओं के विश्लेषण से इन जुबानी जंगो में छिपी राज को जानने की कोशिश करते है।
दिल की धड़कनो की तरह पल पल बदलता राजनीति
गत सोमवार को भाजपा MLC संजय पासवान ने कहा कि बिहार की सत्ता को डिप्टी सीएम के हवाले कर देना चाहिए। साथ ही, उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को नयी दिल्ली की राजनीति करनी चाहिए। इसके पश्चात् राजद नेता शिवानंद तिवारी ने भी सीएम नितीश कुमार पर हमला बोला। उन्होंने फेसबुक पोस्ट करते हुए लिखा कि मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश का पंद्रहवां वर्ष शुरू होने जा रहा है। लेकिन, इस बीच नीतीश जी अपनी छवि या काम के बदौलत अपने बलबुते मुख्यमंत्री बनने लायक ताक़त नहीं बना पाए। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि भाजपा नीतीश कुमार पर अचानक आक्रामक क्यों हो गई है। यह आक्रामकता क्या बग़ैर ऊपर के इशारे के मुमकिन है।
लेकिन, उपमुख्यमंत्री सुशिल कुमार मोदी ने ट्वीट कर भाजपा-जदयू में किसी भी मतभेद से इंकार किया है। हालाँकि बाद में उन्होंने यह ट्वीट डिलीट कर दी। अब यह प्रबल सम्भावना जताई जा रही है कि 2020 में नितीश अगुवाई करते नज़र नहीं आएंगे।
@NitishKumar is the Captain of NDA in Bihar & will remain its Captain in next assembly elections in 2020 also.When Captain is hitting 4 & 6 & defeating rivals by inning where is the Q of any change.
— Sushil Kumar Modi (@SushilModi) September 11, 2019
वर्ष 2010 के विधानसभा चुनाव के मायने
हाल के घटनाक्रम से पहले हम वर्ष 2010 के विधानसभा चुनाव की स्तिथि जान लेते है। सौ बात की एक बात ये है कि इस चुनावी रिजल्ट के बिहार की राजनीती में एक गहरी छाप है। वर्त्तमान विवाद की जड़ भी कही न कही इसी रिजल्ट में छिपी हुई है।
ध्यान देने की बात ये है कि वर्ष 2010 में भाजपा-जदयू ने एक साथ विधानसभा चुनाव लड़ी थी। जदयू अपने हिस्से की 141 सीटों में से 115 सीटें जितने में सफल रही थी। कुल मिलाकर जदयू ने 22.61% वोट पाकर 47.33% सीटों पर कब्ज़ा की थी। जदयू की सफलता दर 81.56% रही थी। दूसरी ओर, भाजपा ने अपने हिस्से की 102 सीटों में से 91 पर सफलता पाई थी। भाजपा ने 16.46% मतों पर कब्ज़ा करते हुए 37.45 % सीटों पर कब्ज़ा किया था। भाजपा की सफलता दर 89.22% रही थी।
“ठीके है” वाले पोस्टर पर घिरे JDU ने जारी किया नया पोस्टर
जुबानी जंग की कड़वाहट
चुनाव परिणाम के बाद ये आकलन किया जाने लगा कि अब राजद समेत तमाम विपक्षी दल निपटाए जा चुके है। फलस्वरूप, विपक्ष को राजनीति से दूर करने की रणनीति के तहत दोनों सत्तासीन दल एक दूसरे पर आरोप लगाने लगे। इसके विपरीत, ये जुबानी जंग कड़वाहट का रूप ले चुकी थी। इस फैलते कड़वाहट का विश्लेषण करने में भाजपा-जदयू पूरी तरह नाकाम थी। साथ ही, नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवारी को लेकर दोनों दलों में विवाद काफी बढ़ गई।
फलस्वरूप, 16 जून 2013 को नितीश कुमार ने गठबंधन तोड़ने का ऐलान कर दिया। नितीश कुमार ने कहा कि हमारे लिए सिद्धांत ही सर्वोपरि है। इस फैसले से राज्यपाल को भी 16 जून को ही अवगत करा दिया गया। हालांकि बाद में नितीश कुमार अपने ही सिद्धांतों से समझौता करते नज़र आये थे। उन्होंने गठबंधन सारी राजनितिक नैतिकताओं को तक पर रखते हुए भाजपा से हाथ मिला लिया था।
पुराने घटनाओ का हाल के घटनाओं से क्या है सम्बन्ध
गौरतलब है कि लालू प्रसाद यादव फ़िलहाल चारा घोटाले के मामले में जेल में है। वर्ष 2019 का लोकसभा चुनाव उनकी अनुपस्तिथि में लड़ा गया। लालूजी के अनुपस्तिथि में राजद 0 सीटों पर क्लीन बोल्ड हो गई। फलस्वरूप , राजद के सफायें और लालूजी की अनुपस्तिथि को राजग अपने लिए एक संजीवनी मान रही है। इनका मानना है कि अपने बीच जुबानी जंग से विपक्ष को मीडिया की सुर्खियां बनने से रोक सकते है।
राजग के रणनीतिकार भी तेजी से इस ओर कदम बढ़ा रहे है। साथ ही ये भी विश्लेषण जारी है कि जदयू-भाजपा के अलग-2 चुनाव लड़ने पर क्या परिणाम हो सकते है। निष्कर्षतः , निकट भविष्य में आपको वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव सरीखे गठबंधन भी देखने को मिल सकती है। वर्तमान परिस्तिथियों के मद्देनज़र यदि ऐसा हो तो किसी को कोई आश्चर्य न होगी।
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