Saturday, December 21, 2024
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बिहार आरक्षण: हाईकोर्ट से झटके के बाद सुप्रीम कोर्ट जाएगी बीजेपी

बिहार आरक्षण का दायरा 65% तक बढ़ाने वाले अध्यादेश को पटना उच्च न्यायालय द्वारा असंवैधानिक करार दिए जाने के बाद, बिहार सरकार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने इस फैसले के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करने की बात कही है। यह अध्यादेश SC, ST, और OBC वर्ग के लिए नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण बढ़ाने के लिए था। इस अध्यादेश के कारण सामान्य वर्ग की हिस्सेदारी घटने के कारण पटना उच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई थी, जिसके फैसले में इसे असंवैधानिक करार दिया गया।

बिहार में समान शैक्षिक अवसरों और सरकारी नौकरियों के लिए लंबे समय से संघर्ष किया जा रहा है। बिहार आरक्षण को विशेष रूप से उत्पीड़ित वर्गों द्वारा भेदभाव के खिलाफ सकारात्मक कार्रवाई के लिए एक सफल तंत्र के रूप में देखा जाता है। 1978 में कर्पूरी ठाकुर ने बिहार में सरकारी नौकरियों में पिछड़े वर्गों के लिए 26% आरक्षण मॉडल पेश किया था। इस स्तरित आरक्षण व्यवस्था में, अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को 12%, अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) को 8%, महिलाओं को 3%, और उच्च जातियों में से आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों (EBCW) को राज्य सरकार की नौकरियों में 3% आरक्षण मिला।

बाद में, बिहार में सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में अत्यंत पिछड़ी जातियों (EBC) के लिए 18% और पिछड़ी जाति की महिलाओं के लिए 3% का उप-कोटा जोड़ा गया। आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए 10% आरक्षण 2019 में लागू किया गया था।

हालिया बिहार आरक्षण संशोधन और उच्च न्यायालय का फैसला

21 नवंबर 2023 को बिहार विधानसभा में संविधान संशोधन पारित हुआ, जिसमें SC/ST/OBC/EBC को सरकारी नौकरियों में दिया जाने वाला आरक्षण 50% से बढ़ाकर 65% कर दिया गया। इसके परिणामस्वरूप सामान्य श्रेणी के लिए केवल 35% हिस्सा बचा था, जिसमें EWS के लिए 10% आरक्षण भी शामिल था। इस संशोधन के अंतर्गत आरक्षण का दायरा इस प्रकार बढ़ाया गया था:

  • SC वर्ग की हिस्सेदारी 16% से बढ़ाकर 20% की गई।
  • ST वर्ग की हिस्सेदारी 1% से बढ़ाकर 2% की गई।
  • – OBC वर्ग की हिस्सेदारी 12% से बढ़ाकर 18% की गई।

पटना उच्च न्यायालय ने इसे समानता का अधिकार और अवसर की समता का उल्लंघन मानते हुए असंवैधानिक करार दिया। न्यायालय ने कहा कि यह संशोधन संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 16 (समान अवसर) का उल्लंघन करता है।

बिहार आरक्षण की राजनीति का इतिहास

बिहार में आरक्षण की राजनीति का एक लंबा और जटिल इतिहास है। राज्य ने समान शैक्षिक अवसरों और सरकारी नौकरियों के लिए लंबे समय से संघर्ष किया है। बिहार आरक्षण को विशेष रूप से उत्पीड़ित वर्गों द्वारा भेदभाव के खिलाफ सकारात्मक कार्रवाई के लिए एक सफल तंत्र के रूप में माना जाता था।

1978 में कर्पूरी ठाकुर ने बिहार में सरकारी नौकरियों में पिछड़े वर्गों के लिए 26% आरक्षण मॉडल पेश किया। इस स्तरित आरक्षण व्यवस्था में, अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को 12%, अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) को 8%, महिलाओं को 3%, और उच्च जातियों में से आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों (EBCW) को राज्य सरकार की नौकरियों में 3% आरक्षण मिला।

वर्तमान आरक्षण व्यवस्था और विवाद

2022 के बिहार जाति-आधारित सर्वेक्षण के अनुसार, बिहार की 36.01% आबादी EBC है, और 27.13% OBC हैं। SC के लिए, प्रस्तावित नया कोटा मौजूदा 16% से बढ़ाकर 20% किया गया है। अनुसूचित जाति की आबादी 19.65% अनुमानित है। ST के लिए कोटा 1% से बढ़ाकर 2% करने का प्रस्ताव है। 2000 में बिहार के विभाजन के बाद अधिकांश आदिवासी क्षेत्र झारखंड में चले जाने से, बिहार में आदिवासी आबादी 2% से भी कम है।

9 नवंबर 2023 को, बिहार सरकार ने आरक्षण का दायरा 65% बढ़ाने के लिए गजट अधिसूचना जारी की। यह अधिसूचना SC/ST/OBC/EBC के लिए आरक्षण को बढ़ाने के लिए थी, जिससे सामान्य श्रेणी की हिस्सेदारी घटकर 35% रह गई। इसमें EWS के लिए 10% आरक्षण भी शामिल था।

बिहार सरकार का आरक्षण अधिनियम, 2023 के अनुसार, बिहार आरक्षण की व्यवस्था की श्रेणी और प्रतिशत इस प्रकार है:

  • पिछड़ा वर्ग (BC): 18%
  • अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC): 25%
  • अनुसूचित जाति (SC): 20%
  • अनुसूचित जनजाति (ST): 2%
  • आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS): 10%

इस प्रकार कुल आरक्षण प्रतिशत 75% हो जाता है। यह संशोधन बिहार में आरक्षण की मौजूदा व्यवस्था को पुनः परिभाषित करता है, और इसके प्रभावी होने पर आरक्षण का कुल प्रतिशत 75% हो जाएगा।

बिहार में आरक्षण का मुद्दा एक जटिल और विवादास्पद विषय है। पटना उच्च न्यायालय के फैसले के बाद, बिहार सरकार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करने की बात कही है। इस विवाद का क्या परिणाम होगा, यह समय ही बताएगा। लेकिन यह स्पष्ट है कि बिहार आरक्षण का मुद्दा न केवल बिहार में बल्कि पूरे देश में सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है।

बिहार के इतिहास और वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य को देखते हुए, यह महत्वपूर्ण है कि सभी पक्ष इस मुद्दे पर गहराई से विचार करें और एक संतुलित और न्यायसंगत समाधान निकालें। यह न केवल सामाजिक न्याय के लिए बल्कि राज्य की प्रगति और विकास के लिए भी आवश्यक है।

आरक्षण के मुद्दे पर बढ़ते विवाद और उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका के बीच, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि न्यायालय का अंतिम फैसला क्या होता है। इससे राज्य में सामाजिक और राजनीतिक संतुलन पर भी असर पड़ेगा।

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Vishal Kumar
Vishal Kumar
Law and PSIR Graduate
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