गत दिनों बिहार में सत्तासीन जदयू द्वारा बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के मद्देनज़र पोस्टर जारी किया गया। इस पोस्टर के माध्यम बिहार की जनता से नितीश कुमार को पुनः मुख्यमंत्री बनाने की अपील की गई। इस पोस्टर के माध्यम से लिखा गया कि “क्यूं करें विचार, ठीके तो है नितीश कुमार”। विपक्ष द्वारा इस पोस्टर का काफी जोरशोर से विरोध किया गया। राष्ट्रीय जनता दल ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से लिखा कि “ठीके है मतलब कामचलाऊ है, समझौता है, मजबूरी है! होगी किसी की मजबूरी! बिहारी समझौता नहीं करेंगे, दूरदर्शी सर्वप्रिय कर्मठ युवा चुनेंगे!” इसी के साथ सत्तापक्ष एवं विपक्ष के बीच जुबानी जंग तेज हो गई। दोनों पक्षों के सोशल प्लेटफॉर्म्स इन मुद्दों से सम्बंधित आलेखों से भरे हुए दिख रहे है।
महागठबंधन में सभी पार्टी प्रमुख एकजुट
इसी के साथ राजनैतिक हलकों में यह चर्चा छिड़ गई कि बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में शायद नितीश कुमार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे। कुछ लोग इसे सिर्फ जदयू की मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवारी अपने पास रखने की एक कोशिश भर मान रहे है। दूसरी और, महागठबंधन की मुख्य घटक दल राजद द्वारा तेजश्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया जा चूका है। अभी हाल ही में महागठबंधन की महत्वपूर्ण बैठक में सभी पार्टी प्रमुखों ने एकजुट होकर 2020 का चुनाव लड़ने की बात कही।
सूत्रों का कहना है कि राजग इस चुनाव को तेजश्वी यादव बनाम नितीश कुमार बनाना चाहती है। जदयू के जानेमाने रणनीतिकारों का मानना है कि यदि यह चुनाव दो विचारधारा की न होकर दो व्यक्तित्वो के बीच हो तो इसका फायदा स्पष्ट रूप से राजग को होगी। सत्ता पक्ष का स्पष्ट मानना है कि 2019 का लोकसभा चुनाव दो विचारधारा की लड़ाई से अधिक नरेंद्र मोदी एवं राहुल गाँधी क बीच की लड़ाई बन गई थे। भाजपा ने मीडिया के माध्यम से राहुल गाँधी की छवि ख़राब करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। इस सबका प्रत्यक्ष फ़ायद भाजपा सहित राजग के तमाम घटक दलों को मिला था। साथ ही मुख्यधारा की मीडिया का भाजपा की तरफ झुकाव का भी नितीश कुमार को फायदा मिलने की बात कही जा रही है।
उम्मीद की एक नयी किरण
वही कुछ विश्लेषकों का मानना है कि पिछले 15 वर्षो से सत्तासीन जदयू का नितीश कुमार के बल पर चुनाव जितना नामुमकिन है। पिछले 5 सालों में नितीश कुमार के शासनकाल में घटित अनेक ऐसी अनेक घटनाए है जो कि नितीश कुमार के छवि को नुकसान पंहुचा रही है। उनका ये भी मानना है कि राजग ने 2019 का लोकसभा नरेंद्र मोदी के दमदार छवि एवं भ्रामक प्रचार तंत्र के माध्यम से जीती थी। लेकिन समय के साथ ये हथकंडे प्रभावहीन होते जा होते जा रहे है। चुनाव के तुरंत बाद बेरोजगारी की वजह से छाई मंदी ने बिहार सहित पुरे देश को आगोश में ले चुकी है।
जानिए क्यूं करें विचार, कितना ठीक है नीतीश कुमार
इन परिस्तिथियों में राज्य का युवावर्ग तेजश्वी यादव में उम्मीद की एक नयी किरण देख सकते है। दूसरी और तेजश्वी यादव करीब 5 वर्षों से राजनीती में है। विपक्ष में होने की वजह से, उनपर फिलहाल कोई बड़ा आरोप नहीं लगा है। विश्लेषको का मानना है कि नितीश कुमार के खिलाफ बलवती होती एंटी इंकम्बेंसी एवं तेजश्वी यादव के साफ़ छवि का फायदा कहीं न कही महागठबंधन को ही होगा। साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि युवाओं का जो समर्थन 2019 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के लिए था, वही समर्थन 2020 के चुनाव में तेजश्वी यादव के लिए हो सकती है।
छिड़ी जुबानी जंग
आपको याद दिलाते चले कि लोकसभा चुनाव के बाद केंद्र में जदयु-भाजपा के बीच कैबिनेट में सीटों की संख्या को लेकर मची खींचतान के बीच कुछ राजद नेताओं ने नितीश कुमार को पुनः राजद में शामिल होने की पेशकश की थी, जिसे जदयू द्वारा एकसिरे से नकार दिया गया था। फिलहाल इनदोनों दलों में समझौते की कोई गुंजाईश दूर-दूर तक नहीं दिख रही है। कम से कम दोनों दलों के बीच छिड़ी जुबानी जंग तो यही दर्शाती है।
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