Home शिक्षा और नौकरी बिहार के विकास की नई बयार बहातीं डिजिटल गांवों की स्मार्ट बेटियां

बिहार के विकास की नई बयार बहातीं डिजिटल गांवों की स्मार्ट बेटियां

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गांव की पगडंडियां अब सिर्फ खेतों तक नहीं जातीं, ये कंप्यूटर ट्रेनिंग सेंटर और बीपीओ (बिजनेस प्रोसेस आउटसोसिर्ंग) तक भी जाती हैं। इन कंप्यूटर ट्रेनिंग सेंटर में बेटियां पढ़ रही हैं। नौकरी कर रही हैं। तो किसान एक क्लिक पर आयुष्मान कार्ड बनवा रहा है। ये सुनहरी तस्वीर बिहार के डिजिटल गांवों की है। फतुहा का अलावलपुर और बख्तियारपुर का लखनपुरा ऐसे डिजिटल गांव हैं, जो बदलते बिहार के विकास की तस्वीर पेश कर रहे हैं।

आइये चलें अलावलपुर गांव की ओर। मोनी, नंदिनी, ज्योति, प्रियंका, लवली, अलका, चांदनी और रीतू। ये आठ लड़कियां गांव में चल रहे रूरल बीपीओ में काम करती हैं। सभी अलावलपुर गांव की रहने वाली हैं। नंदिनी और रीतू कहती हैं, डिजिटल गांव बनने के बाद मुफ्त कंप्यूटर की ट्रेनिंग दी गई। फिर इंटरव्यू के बाद बीपीओ में नौकरी मिल गई। लवली कहती हैं, शुरुआत में घर वालों ने टोका, अब नौकरी मिलने पर सभी खुश हैं।

3,500 रुपये मासिक वेतन

फिलहाल इन लड़कियों को 3,500 रुपये मासिक वेतन मिल रहा है। रूरल बीपीओ के तहत ये प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान के लाभान्वितों के डाटा सत्यापन का काम करती हैं।

कुछ ऐसा ही अनुभव लखनपुरा गांव की बेटियों का है। यहां के रूरल बीपीओ में 10 लड़कियां हैं। लक्ष्मी दो किलोमीटर दूर ससुराल से बीपीओ में काम करने आती है। कहती है, पति और सास खुश हैं। सोनम और सुगंधा कहती हैं, पहले कंप्यूटर सीखने के लिए भी पटना जाना होता था अब तो गांव में ही कंप्यूटर सीखने की सुविधा है और रोजगार के भी।

बिहार के विकास में डिजिटल गांव बनाने की आधारशिला

केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने पिछले साल अलावलपुर और लखनपुरा को डिजिटल गांव बनाने की आधारशिला रखी थी। इसके तहत दोनों गांवों में कॉमन सर्विस सेंटर (सीएसएस) की शुरुआत की थी। सीएसएस चलाने वाले दीपक कहते हैं, डिजिटल गांव बन जाने के बाद लोगों को आधार कार्ड, आयुष्मान कार्ड, पैन कार्ड की सुविधा और फसल बीमा योजना का लाभ ऑनलाइन मिलने लगा है। ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए स्त्री स्वाभिमान नाम से सेनेटरी पैड बनाने की योजना भी डिजिटल गांव का हिस्सा है।

अलावलपुर गांव में लवली सिंह आठ महिलाओं के साथ पैड बनाती हैं। वह बताती हैं कि एक पैकेट में आठ पीस आते हैं। पैकेट की कीमत 40 रुपये है। इसे जीविका दीदी के माध्यम से ग्रामीण दुकानों में बेचा जा रहा है। स्कूलों में हर माह मुफ्त वितरण भी होता है। एक के बदले एक रुपये मेहनताना मिलता है।

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