नई वाहन अधिनियम बनी आफत, सरकार का तानाशाही रवैया कायम

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बीते 1 सितम्बर से केंद्र सरकार ने नई वाहन अधिनियम (MVA ) लागू कर दी है। तत्पश्चात, इस अधिनियम से सम्बंधित अनेक मामले पुरे देश में चर्चा की विषय बनी हुई है।

वास्तव में, परिवहन एक समवर्ती सुची की विषय है। इसके मद्देनज़र, राज्यों को भी सजा के प्रावधानों में बदलाव करने का अधिकार दिया गया है। तदनुरूप, अनेक राज्यों ने इसके अंतर्गत सजा के प्रावधानों को कम कर दिया है। लेकिन, बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे कुछ राज्यों में यह यथारूप लागू है। जिस कारण यहां की जनता में सरकार के प्रति आक्रोश का माहौल है। इन राज्यों के अनेक हिस्सों से MVA से संबंधित तरह-2 की घटनाएं सामने आ रही है।

नई अधिनियम से सम्बंधित उत्तर प्रदेश की एक घटना काफी चौकाने वाली है। UP के नोएडा में वाहन चेकिंग के दौरान एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर की मौत हार्ट अटैक से हो गई। बाद में, साथ में ही चल रहे माता-पिता ने पुलिस पर जाँच के दौरान बदतमीजी और सख्ती का आरोप लगाया था।

MVA से ही सम्बंधित पटना की एक मामला सुर्ख़ियों में है। दरअसल, वाहन चालक के पास सभी दस्तावेज थे। लेकिन, पुलिस ने चालक को चालान सौंप दी। चालक के लाख अनुरोध के बाद भी पुलिस ने चालान वापस नहीं लिया। बाद में चालक को थाने ले जाया गया।

राजधानी में उपद्रव का माहौल, वकीलों का मार्च

वाहन चेकिंग के दौरान गुरुवार को पटना के एग्जीबिशन रोड चौराहे पर भी जमकर हंगामा हुआ। इस दौरान पुलिस और लोगों के बीच भिड़ंत की स्थिति आ गई। लोगों ने पुलिस के वाहन पर पथराव भी किये। घटना के संज्ञान में आते ही सिविल सोसाइटी जागरूक हो गई। जल्द ही, पटना हाईकोर्ट के वकीलों ने नए नियम के विरोध में मार्च निकाल दिया। मार्च में शामिल अधिवक्ताओं ने पुलिस पर MV एक्ट की आड़ लेकर मनमानी करने का आरोप लगाया।

यह एक वास्तविकता है कि MVA , 2019 एक नई कानून है। फ़िलहाल, आमजन में इससे सम्बंधित जानकारी का पूर्णतः अभाव है। इन परिस्तिथियों में सरकार को अधिक से अधिक आमजन को जागरूक करना चाहिए। वहीं, पुलिस को भी रेगुलेटर से अधिक आमजन के हितैषी की तरह काम करना चाहिए।

वास्तव में, पुलिस की ‘छवि’ ऐसी ही गैर जिम्मेदाराना रवैयों के वजहों से क़ानूनी लुटेरों की बनती जा रही है।

राज्य में हेलमेट की स्तिथि एवं सरकारी निर्देश

सरकार ने सभी जिलों को पत्र जारी कर निर्देश प्रेषित की है। इस पत्र के अनुसार ‘बिहार में मात्र 38 प्रतिशत लोग ही हेलमेट लगाते हैं। इस अनुपात को जल्द से जल्द बढ़ाने की जरूरत है। इसके लिए इस सप्ताह हेलमेट चेकिंग पर विशेष जोर दिया जायेगा। इसमें पुलिसकर्मियों की भी जांच जरूरी रूप से होगी।’ विभाग की ओर से जारी आदेश में कहा गया है कि बिहार पुलिस कर्मी अगर ट्रैफिक नियमों को तोड़ते हैं, तो उन्हें दोगुना जुर्माना भरना पड़ेगा। अधिकारियों के मुताबिक, पुलिसकर्मियों और अधिकारियों द्वारा ट्रैफिक नियमों को तोड़ने पर जुर्माने की राशि सीधे वेतन से काट ली जायेगी।

लेकिन इस सरकारी आदेश की धज्जी स्वयं मुख्यमंत्री के काफिले में उड़ती हुई दिखाई दी है। क्या सरकारी वर्दीधारियों पर नई वाहन अधिनियम का पालन कड़ाई से होगी?

हड़बड़ी क्यों, कुछ समय इंतज़ार क्यों नहीं

दरअसल, राज्य में नई अधिनियम को लेकर जागरूकता की भारी कमी है। साथ ही संशय की स्तिथि भी बरक़रार है। हेलमेट की कमी एवं आमजन द्वारा इसके उपयोग को नकारने की खबरे आम है। इन परिस्तिथियों में, सरकार को अधिक से अधिक जागरूकता फैलानी होगी। साथ ही आमजन को भी सरकार का सहयोग करना चाहिए।

नई मोटर वाहन अधिनियम का व्यापक असर होने की सम्भावना है। दूसरी ओर, सरकार कुछेक मुद्दों पर ही विशेष ध्यान देती नज़र रही है।

अदूरदर्शी फैसला, अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव

सड़क पर दौड़ते वाहन अर्थव्यवस्था के रगों में दौड़ती खून के समान होती है। फ़िलहाल देश बैमौसम मंदी झेल रही है। इसी दरम्यान सरकार द्वारा MVA के तहत जुर्माने की राशि में भारी-भरकम बढ़ोतरी नुकसानदेह साबित हो रही है। इसके प्रतिकूल असर भी आने आरम्भ हो गए है। सितम्बर के प्रथम सप्ताह में राज्यभर में ईंधन के बिक्री में भारी गिरावट देखी गई है। कही-2 यह 55 प्रतिशत से अधिक थी। साथ ही इससे मुलभुत उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतों में उछाल की पूर्ण संभव है।

राज्यों की वस्तुस्तिथि

फ़िलहाल 6 राज्यों ने इस नए अधिनियम को लागु नहीं करने का फैसला किया है। ये राज्य है मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, पंजाब और हिमाचल प्रदेश। ये राज्य मान रहे है कि जुर्माने की राशि में तार्किक बढ़ोतरी नहीं की गई है। कुछ केंद्रशासित प्रदेश असमंजस की स्तिथि में है, तो कुछ इसे वापस लेने की ओर कदम बढ़ा रहे है। अन्य राज्यों में भी इस अधिनियम को वापस लेने की मांग बलवती हो रही है।

नोटबंदी, GST के बाद सरकार की तीसरी गलती

दूसरी ओर, यह भी चर्चा चल पड़ी है कि नोटबंदी और GST के बाद केंद्र की सबसे बड़ी भूल है। इससे न सिर्फ भ्रष्टाचार, अफसरशाही बढ़ेगी, बल्कि बचत पर भी प्रतिकूल प्रभाव होंगे।। राज्य की जनता में इसे वापस लेने की मांग बलवती होती जा रही है। कुछ लोग ये भी मानकर चल रहे है कि आसन्न चुनाव के मद्देनज़र सरकार अपना कदम वापस खींच सकती है। लेकिन सरकार के मौन रवैये से इसके आसार कम ही नज़र आ रहे है।

बिहार की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

राज्य में अधिकांश वस्तुएं बाहर से मंगाई जाती है। मालढुलाई में ट्रकों का बहुत ही बड़ा योगदान है। नई अधिनियम कायम रहने से ट्रक चालकों द्वारा भाड़े में बढ़ोतरी की जा सकती है। इसका अंतिम बोझ आम उपभोक्ताओं पर ही होगी। इससे न सिर्फ महंगाई बढ़ेगी, बल्कि अर्थतंत्र को भी व्यापक नुकसान होगा। बिहार से मिलते-जुलते राज्यों में भी इसी तरह के परिणाम की आशा है।

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