एक हाथ में बांसुरी तो दूसरे हाथ में कलम। कभी थरथराते हाथों से कलम थामे मोटी डायरी पर टेढ़ी-मेढ़ी लकीरें खींचते तो कभी सब छोड़कर बांसुरी बजाने लगते। रह-रहकर कुछ-कुछ बड़बड़ाते भी है। कभी फिजिक्स से सूत्र बोलते तो कभी हाथ आगे कर कुछ जोड़ने-घटाने लगते। अगर कोई टोकता तो डांट भी देते। कभी खुद ही मुस्कुराते भी। गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह ऐसे ही हो गए हैं।
देश-दुनिया में गणित के फॉमरूले का लोहा मनवाने वाले ‘वैज्ञानिक जी’ की बीमारी आज खुद चिकित्सकों के लिए चुनौती बनी हुई है। बरसों से इलाज हो रहा मगर हालत जस की तस है। सिजोफ्रेनिया बीमारी से ग्रसित वशिष्ठ बाबू फिलहाल अपने भाई अयोध्या सिंह के साथ राजधानी के एक अपार्टमेंट में रह रहे हैं। पर्व-त्योहार पर भोजपुर स्थित अपने घर भी जाते हैं। इस दुर्गापूजा भी जाने वाले थे मगर उनकी तबीयत खराब हो गई।
नहीं पहुंचा कोई नेता, मिलने आए पप्पू यादव
भाई अयोध्या सिंह बताते हैं कि एक सप्ताह पूर्व अपार्टमेंट में ही चक्कर खाकर गिर पड़े। आनन-फानन में पटना मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (पीएमसीएच) में भर्ती कराया गया। लगभग एक सप्ताह तक भर्ती रहे मगर कोई मंत्री-विधायक मिलने नहीं पहुंचा। हां, बीच-बीच में हल्ला जरूर उड़ता कि फलां मंत्री आ रहे हैं। फलां सांसद आ रहे हैं।
वशिष्ठ बाबू के भतीजे राकेश कुमार कहते हैं, एक दिन अस्पताल में पूर्व सांसद पप्पू यादव मिलने आए थे। उनकी पत्नी और कांग्रेस सांसद रंजीत रंजन की पहल पर ही 2013 में चाचा जी (वशिष्ठ नारायण सिंह) को बीएन मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा में विजिटिंग फैकल्टी नियुक्त किया गया था मगर इसका कुछ लाभ नहीं मिल सका। जब पप्पू यादव को इस बारे में टोका तो वे कुछ सार्थक जवाब नहीं दे पाए।
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नेतरहाट के पूर्ववर्ती छात्र कर रहे मदद
अयोध्या सिंह कहते हैं, वशिष्ठ बाबू को सबसे ज्यादा सहयोग नेतरहाट ओल्ड ब्वॉयज एसोसिएशन (नोबा) के सदस्यों ने की है। पटना में रहने और इलाज का सारा खर्च पूर्ववर्ती छात्र ही उठाते हैं, इसमें उनके कई सहपाठी भी हैं। वे जब भी मिलने आते हैं, वशिष्ठ बाबू चहककर मिलते हैं। वे बीमार जरूर हैं, मगर अब भी घर के लोगों या हमेशा आने-जाने वालों को पहचान लेते हैं।
जिंदा रहते सम्मान मिल जाए तो अच्छा लगेगा
अयोध्या सिंह कहते हैं, वशिष्ठ बाबू का इतना नाम है। पटना विश्वविद्यालय से लेकर अमेरिका के बर्कले विश्वविद्यालय तक चर्चा में रहे। आइआइटी में पढ़ाया। गणित की थ्योरी को लेकर दुनिया भर में चर्चा में रहे मगर बिहार के लाल को यहां के लोग ही भूल चुके हैं। आज तक एक भी सम्मान नहीं मिला। बिहार रत्न तक देना किसी ने जरूरी नहीं समझा। इस बार पद्मश्री के लिए कई संस्थाओं ने नाम प्रस्तावित किया है। जिंदा रहते सम्मान मिल जाए तो अच्छा लगेगा।